मज़दूर वर्ग क्यों नहीं बन पाता इस देश का प्रमुख मुद्दा?

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एक दौर अब है कि मज़दूर होने को आपराधिक बना दिया गया है।

मज़दूर की मांगों को दलित होने, मुस्लिम होने, महिला होने, ट्रांसजेंडर होने की पहचान में बांट दिया गया है। यहां तक कि मज़दूर वर्ग को अपराधी घोषित किए जाने की भारी साजिश हो रही है।

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मज़दूर की दिक्कतें क्यों नहीं बन पा रहीं मुद्दा

पर मजदूर वर्ग हमसे अलग नहीं है और न ही ये कोई अलग मुद्दा है बल्कि मजदूरी वर्ग की समस्या भी हमारे समाज में उतनी जरूरी है जितने की बाकी मुद्दे जरूरी हैं।

लेकिन क्रेंद सरकार व राज्य सरकार किसी ने भी इन मुद्दों की ओर अपना ध्यान केंद्रित करने की जहमत उठाना भी जरूरी नहीं समझा और तो और समाज के लोगों के सामने भी इसे कभी भी एक आवश्यक मुद्दे की तरह भी पेश नहीं किया गया।

इसके बाद वो बताते है कि किस प्रकार से केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के सफाई कर्मचारियों को नालों की सफाई के लिए 200 मशीनें मुहैया कराई ये मशीनें इस तरह डिज़ाइन की गई हैं कि वो संकरी गली या व्यस्ततम इलाके में जा सकें।

इसके बाद किसी भी मजदूर को नाले में उतर कर सफाई करने की जरूरत न पड़े इस को हटाने के लिए ये कदम उठाया गया।

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पर क्या है इसकी सच्चाई

प्रो. गिरी बताते है कि एक प्रकार से मजदूरो को नाले में उतरने की समस्या का समाधान करना तो ठीक है लेकिन यहां पर सरकार ये बात भूल जाती है कि वे मजदूर भी है।

यहां मजदूरी की पहचान को भूल कर इन मजदूरों का सबंधं सालो-साल से चली आ रही जाति प्रथा से जोड़ दिया गया लेकिन जब भी मजदूरों के अस्तिव को लेकर सरकार की कोई चिंता या कर्तव्य नजर नहीं आता।

सरकार द्वारा मजदूर वर्ग को हाशिए पर रखा जाता है।

उनकी परेशानियों और मुद्दों को कोई मुद्दा ही नहीं समझा जाता जब भी उनके लिए कुछ करने की बारी आए तो प्रशासन को वे नज़र ही नहीं आते।

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वे बताते है की सरकार ने किस तरफ से मजदूर वर्ग की परिभाषा को ही बदल डाला, अब सरकार नें मजदूरों की परिभाषा को बदल कर आज के समय में मजदूर को व्यवसायी बना दिया है।

हमारी सरकार कहती है की मजदूरों को आगे बढ़ने देना चाहिए उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं है आज मजदूर की कोई पहचान नहीं है।

सरकार अपने अलग-अलग प्रकार के कॉन्सेपट ला कर मजदूर शब्द का नाम तक मिटा देना चाहती है।

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सरकार द्वारा लाए कॉन्सेपट्स ने छिना मजदूरों का हक

उन्होंने लोगों को बताया कि किस तरह से सरकार के लाए इन नए कॉसेपट्स ने मजदूरों को उनकी पहचान भूलने पर मजबूर कर दिया है मजदूर को एक व्यवसायी के झोल में बांधकर उनका हक भी उनसे छिना जा रहा है।

प्रो. गिरी ने केजरीवाल सरकार के इस कदम पर कटाक्ष करते हुए बताया कि कैसे सरकार कुछ आधिकार दे कर मजदूरों को मजदूर वर्ग से ही हटा देती है जैसा की केजरीवाल सरकार के इस फैसले में देखने को मिलता है।

ये कॉन्सेपट मजदूर वर्ग की पहचान पर बड़ा हमला है।

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मजदूर वर्ग की मुक्ति में ही पूरे समाज की मुक्ति है

वे बताते है कि किस तरह हम समाज के अन्य कामो को मजदूर वर्ग से इतर कर देते है क्योंकि शिक्षा जैसे संस्थानों में अस्थाई शिक्षकों को भी उतना ही वेतन दिया जाता है जितना की स्थाई शिक्षकों को दिया जाता है।

लेकिन फैक्ट्रियों में अस्थाई कर्मचारियों को उतना वेतन नहीं दिया जाता जितना स्थाई कर्मचारियों को दिया जाता है हालांकि काम उतना ही लिया जाता है।

वे काल मार्क्स का हवाला देते हुए कहते हैं कि मजदूर वर्ग की मुक्ति में ही पूरे समाज की मुक्ति है यानि ये कोई अलग लड़ाई नहीं बल्कि पूरे समाज की लड़ाई है।

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मजदूरों पर हो रहे अन्याय की किसी को भी खबर नहीं

प्रो. बताते है की ये एक चिंता का विषय है कि कैसे एक मारुती गाड़ी जिसमें सब चढ़ते है लेकिन जब उसी मारूती कंपनी के मजदूरों पर अत्याचार होता है, अपने हक की लड़ाई के लिए उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता है तो इस बात की खबर किसी को नहीं होती और न ही देश का मीडिया इसे लोगों तक पहुंचाने का विषय समझता है।

आज मजदूर की ये हालत सिर्फ इस कारण है की लोग अलग-अलग बंटे हुए हैं, जिस वजह से हम खुद के लिए एकजुट नहीं हो पाते इसी कारण आज मजदूर को आपराधियों की श्रेणी में रख दिया गया है।

ऐसा भी इसलिए है क्योंकि हमारे संघर्ष का दायरा भी संकुचित है हम मजदूर-मजदूर में भेद कर रहे हैं जबकि हमें एकजुट होकर बड़े स्तर पर सघंर्ष करने की जरूरत है।

मजदूर की आज एक मजदूर के रूप में कोई पहचान ही नहीं रह गई है।

(रिकवरी-    )

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