गृह मंत्रियों का चिंतन शिविरः पूरे भारत को पुलिस राज में बदने की कोशिश- नज़रिया

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By पी जे जेम्स

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में 27 और 28 अक्टूबर को फरीदाबाद में राज्यों के गृह मंत्रियों का दो दिवसीय ‘चिंतन शिविर’ (विचार-मंथन सत्र) जिसे मोदी ने अंतिम दिन वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया था, यह भगवा-फासीवादी एजेंडा को आगे बढ़ाने की दिशा में एक और कदम है।

यद्यपि इस तथाकथित चिंतन शिविर का घोषित उद्देश्य राष्ट्रीय महत्व से संबंधित नीति के बेहतर नियोजन, समन्वय और कार्यान्वयन के लिए एक मंच का निर्माण करना था, जिसे “मोदी की टीम इंडिया” कहा जाता है।

लेकिन असल उद्देश्य तो संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए संघीय पुलिस व्यवस्था के खिलाफ राज्यों पर अखिल भारतीय पुलिसिंग थोपने की परिकल्पना को साकार बनाना था।

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विपक्षी शासित राज्यों के सीएम गैरहाज़िर

चिंतन शिविर के निर्णयों में फासीवादी, एकात्मक हिंदुराष्ट्र के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में मोदी द्वारा पहले से लाए गए एन आई ए और यूएपीए अधिनियमों में कठोर संशोधनों के अलावा उन्हें और ज्यादा निरंकुश व आक्रामक बनाना शामिल था ।

आश्चर्यजनक रूप से, पंजाब और केरल के मुख्यमंत्रियों को छोड़कर, विपक्षी शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री, जैसे कि बंगाल, बिहार, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जिनके पास गृह विभाग भी हैं, इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की उपस्थिति आश्चर्यजनक नहीं थी, क्योंकि आप द्वारा स्वयं को भाजपा की तुलना में हिंदुत्व के एजेंडे के प्रति अधिक प्रतिबद्ध साबित करने का प्रयास किया जा रहा है।

उसी तरह, सीपीआई (एम) के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन के पहले कार्यकाल के दौरान, केरल में 145 यूएपीए मामले दर्ज किए गए थे।

और यह इस स्थिति के अनुरूप है जो केरल में अब भी बिना किसी रुकावट के जारी है, केरल के सीएम, जिनके पास गृह विभाग है, ने राज्यों के गृह मंत्रियों की बैठक में भाग लिया, जिसमें यूएपीए की प्रशंसा की गई।

चिंतन शिविर के केंद्रीय विषय पर आते हुए, केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने कानून और व्यवस्था पर एक समान अखिल भारतीय नीति के साथ “एक डेटा, एक प्रविष्टि” के सिद्धांत के आधार पर 2024 तक प्रत्येक राज्य में एक एनआईए कार्यालय बनाने का आह्वान किया।

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एक राष्ट्र एक पुलिस वर्दी

इसी तारतम्य में मोदी ने ‘एक राष्ट्र, एक पुलिस वर्दी’ का प्रस्ताव रखा और “आतंक के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहन” प्रदान करने के लिए यूएपीए की प्रशंसा की।

यूएपीए पर मोदी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की जांच कर रहा है जिसमें यूएपीए कानून की वैधता को ही चुनौती दी गई है। केवल 2018-20 के दौरान, जब यूएपीए के तहत 4690 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, केवल 3 प्रतिशत को ही दोषी ठहराया गया था।

यह यूएपीए के कठोर सारवस्तु का प्रमाण है जो राज्य को बिना किसी जवाबदेही के बेलगाम शक्ति देता है, अपने राजनीतिक विरोधियों, असंतुष्टों और अलग या असहमत लोगों को जेल में डालने और प्रताड़ित करने के लिए।

वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मोदी का भाषण, जिसमें “बंदूक” और “पेन” के माध्यम से सरकार के विरोध की व्याख्या समान रूप से की गई थी, स्वतंत्र राय और स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर ‘देशद्रोही’ और ‘राष्ट्र-विरोधी’ के रूप में मुहर लगाने के उनके फासीवादी इरादों को प्रकट करता है।

कई कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञ, मानवाधिकार कार्यकर्ता और जागरूक नागरिक पहले ही बता चुके हैं कि कैसे एनआईए भारतीय संविधान का उल्लंघन है।

यह राज्य सरकारों के संघीय अधिकारों को छीन लेता है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की प्रक्रियाओं के खिलाफ है। यह न्यायिक प्रणाली को मात्र एक दर्शक बनाता है और जिला सत्र न्यायालयों की अनदेखी करते हुए विशेष न्यायालयों की स्थापना कर सकता है।

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हिंदू राष्ट्र थोपने का एजेंडा?

संक्षेप में, चिंतन शिविर और उसके विचार संसदीय लोकतंत्र के सभी संस्थानों के खिलाफ हैं।

यह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और कश्मीर को टुकड़ों में तोड़ने, और भारतीय संघ में इसके जबरन एकीकरण, उसी स्थान पर राम मंदिर का निर्माण, जहां बाबरी मस्जिद स्थित थी, की निरंतरता में सीएए और अन्य कदमों के माध्यम से मुसलमानों को द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनाना और एनईपी -20 के माध्यम से भारतीय शिक्षा का कॉरपोरेटकरण व भगवाकरण करने के व्यापक फासीवादी एजेंडा का हिस्सा है।

यह बहु-सांस्कृतिक, बहुभाषी, बहु-जातीय और बहु-धार्मिक भारत पर बहुसंख्यक हिंदुराष्ट्र को थोपने की दिशा में उठाए जा रहे बहुआयामी कदमों से जुड़ा हुआ है।

हम सभी जनवादी ताकतों से आह्वान करते हैं कि वे मोदी शासन की ओर से किए जा रहे इस नवीनतम फासीवादी हमले के खिलाफ आगे आएं और जल्द से जल्द उसे इस जघन्य कदम से पीछे हटने के लिए मजबूर करें।

(लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं।)

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