वाशिंगटन में भारतीय मूल के राहुल दुबे ने जीता प्रदर्शनकारियों का दिल

By आशीष सक्सेना

पुलिस क्रूरता से जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या की वजह से उबल रहे अमेरिका में इंडो-अमेरिकी राहुल दुबे भी चर्चा में आ गए हैं। उन्होंने कल रात वाशिंगटन डीसी में 70 शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को पुलिस से बचाया। उन्हें घर में पनाह देने को दरवाजा खोला और खाने से लेकर कानूनी मदद तक को दौड़े।

घटनाक्रम केटलिंग के दौरान हुआ। केटलिंग लोगों को चारों ओर से घेरने की सैन्य तकनीक है, जिसकी वजह से लोग छोटी-छोटी जगह में सिमट जाते हैं और पीछे नहीं हट सकते, बच नहीं सकते। अमेरिकी पुलिस इस तकनीक को इस्तेमाल कर हजारों लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है।

असल में ये तितर-बितर करने की तकनीक नहीं, इसका उलटा तरीका है। इसकी वजह से कई बार बहुत जानमाल का नुकसान होता है। चारों ओर से घेरकर हमले जैसी कार्रवाई होती है, जिसमें हिंसा भड़क जाने की आशंका ज्यादा होती है।

वाशिंगटन डीसी की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को केटलिंग से घेर रही थी कि इस मंजर को देख रहे पड़ोसी राहुल दुबे ने अपने घर के सामने के दरवाजे खोल दिए। राहुल की दरियादिली पर कुछ अन्य पड़ोसियों ने भी अपने घर के दरवाजों को खोले तो प्रदर्शनकारी मदद का इशारा समझ गए।

कल रात आठ घंटे तक जिन लोगों को उन्होंने पनाह दी, वे काफी भावुक हो गए। क्योंकि जब भी प्रदर्शनकारी अपने घरों की ओर जाते, पुलिस तरह-तरह से घर को घेरकर खड़ी हो रही थी और उनपर शिकंजा कसने की कोशिश कर रही थी।

राहुल और उनके पड़ोसियों ने घेराबंदी के दौरान भोजन, चिकित्सा सहायता और वकीलों से भी संपर्क किया, जिससे प्रदर्शनकारी सुरक्षित रहें।

इस बारे में जब राहुल से पत्रकारों ने पूछा तो उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि मेरा 13 वर्षीय बेटा उतना ही अद्भुत होगा जितना वे (प्रदर्शन करने वाले) हैं । देश को इनके जैसे लोगों की जरूरत है।‘

असल में ये संदेश भारत के लिए ज्यादा है। राहुल भले ही अमेरिका के हो गए हों, लेकिन जिस तरह उन्होंने नस्लभेद के कलंक को महसूस किया है, उससे कहीं ज्यादा घृणित भारत की जाति व्यवस्था है, जो पूंजीवाद की पीठ पर सवार होकर लोगों को मौत के कुएं में धकेल रही है।

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