खरी-खरी सुनने के बाद केंद्र सरकार ने कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट में दायर किया हलफ़नामा

केंद्र सरकार ने कृषि क़ानूनों पर अपना पक्ष रखते हुए आनन-फ़ानन में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दायर किया है।

केंद्र सरकार के कृषि क़ानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को फ़ैसला सुनाएगा।

इस मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार से अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी थी।

अदालत ने सख़्त तेवर दिखाते हुए कहा कि सरकार ने किसी राय-मशविरे के बिना इस क़ानून को पारित किया है जिसका नतीजा है कि किसान एक महीने से भी ज़्यादा समय से धरने पर बैठे हुए हैं.।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे ने सर्दी और कोविड-19 महामारी के मद्देनजर कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत वृद्ध किसानों, महिलाओं और बच्चों से अपने घरों को लौटने का आग्रह किया।

उन्होंने किसानों को समझाने का आग्रह करते हुये कहा कि लोग सर्दी और महामारी की स्थिति से परेशानी में हैं। किसानों के लिये सर्दी से न सही, लेकिन कोविड-19 का खतरा तो है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुये सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक वार्ता पर गहरी निराशा व्यक्त की।

उन्होने कहा, ‘‘केन्द्र ने बगैर पर्याप्त सलाह मशविरे के ही ये कानून बना दिये। पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर किसी प्रकार की हिंसा और लोगों की जान जाने की संभावना को लेकर चिंतित है।’’

इससे पहले कृषि क़ानूनों को लेकर सरकार और आंदोलनरत किसानों के बीच जारी गतिरोध को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए गठित किसी भी कमेटी का हिस्सा बनने से किसानों ने इनकार कर दिया है ।

सोमवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि इन कृषि क़ानूनों के अमल पर रोक लगाने पर विचार किया जा रहा है ।

सोमवार को अदालत ने सख़्त तेवर दिखाते हुए कहा कि सरकार और किसानों के बीच अब तक की बातचीत से कोई हल नहीं निकला है, इसलिए अदालत इस मसले के हल के लिए एक कमेटी का गठन कर सकती है लेकिन किसानों ने ऐसे किसी भी कमेटी का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।

इस बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार की सुनवाई पर कहा, “कृषि क़ानूनों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और मैं इस पर टिप्पणी करना ज़रूरी नहीं समझता. किसान नेताओं के साथ 15 जनवरी को अगले दौर की बातचीत होनी है. मुझे उम्मीद है कि हम कोई हल निकाल लेंगे। “

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