टीकरी बॉर्डर: हरियाण-पंजाब में फूट डाल आंदोलन तोड़ने की कोशिश कर रही भाजपा सरकार: भाग-2

dalit extends support to farmers movement -2

 By एस. वी. सिंह

दूसरा मोर्चा: टीकरी बॉर्डर

टीकरी बॉर्डर पहुँचने के लिए मेट्रो से जाना बेहतर है। ब्लू लाइन पर कीर्ति नगर स्टेशन से ग्रीन लाइन जो बहादुरगढ़ जाती है उस पर टीकरी बॉर्डर स्टेशन है।

धरना बिलकुल 100 मीटर दूर से ही शुरू हो जाता है जिसे हालाँकि पुलिस ने बीच रास्ते में अपने तम्बू लगाकर दुर्गम बना दिया है,‘इतनी आसानी से पहुंचना चाहते हो, हम किस लिए हैं’ कुछ इस अंदाज़ में!

सबसे पहले सभा स्थल ही है। आप पहले सिंघु बॉर्डर जा चुके हैं तो तुरंत समझ आ जाएगा कि यहाँ का जमावड़ा वहाँ से छोटा है लेकिन क़ब्ज़ा पूरी रोड पर जमाया हुआ है।

यहाँ चलना और भी मुश्किल है क्योंकि शुद्ध भारतीय परम्परानुसार सड़क पर दोनों ओर से अतिक्रमण है।

सबसे पहली बात जो यहाँ प्रमुखता से नज़र आती है वो है यहाँ ‘पंजाब-हरियाणा भाईचारा रेखांकित करते अनेकों बैनर, बोर्ड नज़र आते हैं। हरियाणा कि पहचान बताते खाप पंचायतों के भी अनेकों बोर्ड नज़र आए।

सभा में भी हर वक्ता ने ये सन्देश ज़रूर दिया। अगर वक्ता पंजाब से है तो ‘हरियाणवी भाईयों को राम राम और हरियाणवी वक्ता है तो ‘सबी पंजाबी भाईयांनू सत श्री अकाल से ही शुरुआत हुई।

कुछ ही देर में इसका रहस्य समझ आ गया। किसानों को बदनाम करने के लिए सरकार ने उन्हें ‘आतंकी,खालिस्तानी,माओवादी, पाकिस्तान, चीन, विपक्ष के इशारों पर नाचने वाले तो कहा ही, साथ में पंजाब और हरियाणा को बाँटने वाली कुत्सित चालें भी खूब चलीं।

विवादस्पद मुद्दा ‘सतलज-यमुना लिंक’ समझौते में हरियाणा को ज्यादा पानी दो, इस विषय को हरियाणा सरकार द्वारा उठाया गया।

इस मुद्दे पर भाजपा ने गुडगाँव में मोर्चा भी निकाला। ये आन्दोलन पंजाबियों का है, ये दुष्प्रचार भी इस्तेमाल किया।

किसान, दरअसल,टीकरी बॉर्डर पर हरियाणा सरकार को अपना जवाब दे रहे थे, वो भी जुबान से नहीं बल्कि अपने काम से।

मानो ऐलान कर रहे थे;‘खट्टर सरकार देख ले, हरियाणवी-पंजाबी एक हैं’ बात दिल को गहरे तक छू गई।

कोई महामूर्ख ही ये बक़वास कर सकता है कि किसानों को बहकाया,बरगलाया गया है।

18 दिसम्बर को जिस दिन ये रिपोर्टर किसान आन्दोलन कि ऊर्जा महसूस करने टीकरी बॉर्डर गया था,‘जनवादी महिला संघ, हरियाणा’ की महिलाएं किसान आन्दोलन को अपना पूर्ण समर्थन देने वहाँ मौजूद थीं।

खिल भारतीय ट्रांसपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन’ का किसानों को समर्थन का बैनर दूर से नज़र आता है।

उसी तरह कई मज़दूर ट्रेड यूनियनों के किसानों से एकजुटता के पोस्टर-बैनर सभा स्थल पर भी सजे हुए हैं।

सभा में किसान वक्ताओं के निशाने पर वही त्रिमूर्ति है; ‘मोदी-अडानी-अम्बानी’। कोई भ्रम नहीं, कोई मुगालता नहीं।

सत्ता का चरित्र इतना स्पष्ट पहले कभी नहीं हुआ।काँग्रेसी अपनी कॉर्पोरेट परस्ती को छुपाने में हमेशा क़ामयाब रहे हैं।

महेंद्रगढ़ जिले के एक गाँव के रहने वाले, 6 फुट से भी ज्यादा लम्बे छतरसिंह ने भी बिलकुल वही उदगार व्यक्त किए जो मोहिंदर सिंह सैनी जी ने सिंघु बॉर्डर पर किए थे।

वर्ग आधार पर किसान आन्दोलन से किनारा करने को उचित ठहराने वालों को एक सवाल खुद से ज़रूर पूछना चाहिए, वर्गीय सोच पैदा करने के लिए उन्होंने मार्क्स-लेनिन के उद्धरण चेपने के अतिरिक्त उन्होंने क्या किया?

भोजन के, चाय पकौड़ों के लंगर,मुस्कुराकर कर आमंत्रित करते और सेवा कर मगन होते किसान, अपने मक़सद के लिए किसी भी क़ुरबानी को तत्पर और सबसे आगे हैं।

धरना कब तक चलेगा इस चिंता से बे-खबर, बे-दस्तूर है जैसा सिंघू बॉर्डर पर। 30 तारीख को तापमान शून्य डिग्री तक गिरा लेकिन टीकरी बॉर्डर के वीर किसानों ने सारे कपडे उतारकर नंगे बदन प्रदर्शन किया।

इन किसानों को कौन बहका सकता है, कौन डरा सकता है? ग्रागी प्रकाशन और इंक़लाब मज़दूर आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का ज़िक्र किए बगैर ये रिपोर्ट पूरी नहीं हो सकती जिन्होंने वहाँ बुक स्टाल लगाए हुए हैं।

किसान शहीद-ए-आज़म भगतसिंह और मार्क्स-लेनिन को शिद्दत से पढ़ रहे हैं, उनकी नज़र साफ हो रही है, बहुत दूर तक जा रही है।

6 बजे अपने डेरे में पहुँचने के लिए मेट्रो स्टेशन जाते हुए भी ये संवाददाता उस हर्बल चाय का ज़ायका महसूस कर रहा था, जिसे जाने कितनी हरी पत्तियों को उबालकर गुड से बगैर दूध के बनाया गया था और जिसे बहन अमृत कौर जी ने आग्रह कर दो कप पिलाया;‘ना नईं करदे,लै लौ प्राह जी ठंडी नईं लगेगी’

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