लेबर कोड के ख़िलाफ़ आगे आए केरल, महाराष्ट्र और प. बंगाल, बताया मज़दूर विरोधी

workers protest general strike

लेबर को लागू करने की मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना लागू होने में अभी और वक़्त लग सकता है।

बीते साल 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर  केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए चार लेबर कोड्स, जिसके तहत वेतन के पुनर्गठन और कर्मचारियों के काम के घंटे बढ़ाने के प्रस्ताव को लागू करने में ट्रेड यूनियनों के सुर में कुछ राज्यों ने भी अपने सुर मिला दिए हैं।

केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल सहित कई दूसरे राज्यों ने लेबर कोड का विरोध करने के संकेत दिए हैं। उनका कहना है कि औद्योगिक संबंधों, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति और मज़दूरी पर कोड में कई श्रम विरोधी प्रावधान हैं।

केंद्र सरकार ने कोड को लागू करने के लिए 1 अप्रैल की समय सीमा तय की थी, लेकिन पहले ही ये समय सीमा ख़त्म हो चुकी है क्योंकि अधिकांश राज्य सरकारों ने नियम नहीं बनाए थे।

दरअसल 29 केंद्रीय और 100 से अधिक संबंधित राज्य श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समेकित करने की परिकल्पना की गई लेकिन अधिकांश राज्य सरकारों ने नियम नहीं बनाए थे।

गौरतलब है कि श्रम क़ानून राज्यों के अधिकार के दायरे में आते हैं और जबतक राज्य अधिसूचना जारी नहीं करते उन्हें राज्यों में लागू करना मुश्किल है।

पश्चिम बंगाल के श्रम विभाग ने इस सप्ताह की शुरुआत में विभिन्न ट्रेड यूनियनों के साथ एक परामर्श बैठक के बाद संकेत दिया था कि वह “मजदूर विरोधी” कोड नहीं लागू करेगा।

इस बारे में द फ्रेडल से बात करते हुए पश्चिम बंगाल के लेबर मिनिस्टर बेचाराम मन्ना ने कहा, ”चूंकि हमने प्रोविजन में कई प्रवाधानों को मजदूर विरोधी पाया इसलिए मैंने सभी ट्रेड यूनियनों को एक जुलाई तक संहिताओं पर अपनी आपत्तियों को निर्दिष्ट करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। आखिरी फैसला लेने के लिए हम उनकी रिपोर्ट मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भेजेंगे।”

मन्ना ने आगे बताया कि ट्रेड यूनियनों कोड्स पर अपनी आपत्तियों पर लगभग एकमत है। हमने इन कोडों को श्रमिकों के हित के अनुकूल भी नहीं पाया है। बहुत से राज्य उनका समर्थन नहीं करेंगे। कोड में सबसे आपत्तिजनक प्रावधान काम के घंटे को 12 घंटे तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।

तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों ने भी कथित तौर पर ट्रेड यूनियनों को कोड्स को समग्र रूप से अपनाने के बारे में अपनी आपत्ति से अवगत कराया।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के जनरल सेकेट्री अमरजीत कौर ने कहा कि केरल और तमिलनाडु सरकार ने भी अभी तक अपने नियमों का मसौदा तैयार नहीं किया है। उन्होंने कहा है कि वे ट्रेड यूनियनों की राय से आगे बढ़ेंगे। इसी तरह महाराष्ट्र भी ट्रेड यूनियनों की राय को अधिक महत्व दे रहा है

अब तक मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेशों जैसे कुछ ही राज्यों ने सभी चार कोड्स के तहत मसौदा नियमों को प्रकाशित किया है।

(साभार- द फ्रेडल)

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