ट्रेड यूनियनों का 9 अगस्त को जेल भरो आंदोलन, 18 अगस्त को कोयला खनिकों का प्रदर्शन

masa strike delhi

केंद्रीय श्रम संगठनों, क्षेत्रवार फेडरेशन और एसोसिएशनों के राष्ट्रीय मंच ने 9 अगस्त को “भारत बचाओ दिवस ” (SAVE INDIA DAY ) के तहत जेल भरो आंदोलन का आह्वान किया है।

इसके अलावा केंद्रीय श्रम संगठनों और अन्य सार्वजनिक कंपनियों के मज़दूरों से 18 अगस्त को कोयला क्षेत्र की हड़ताल के साथ एकजुटता ज़ाहिर करने की भी अपील की गई है।

ग़ौरतलब है कि आत्मनिर्भरता के नाम पर मोदी सरकार की सारे सरकारी संस्थान बेच देने की नीति के ख़िलाफ़ ट्रेड यूनियनें पिछले कुछ समय से आंदोलन के लिए कमर कस रही हैं।

मंच की बैठक में बीते दिनों देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों को लेकर चर्चा हुई और आगे की रणनीति पर विचार हुआ।

जारी बयान

मंच के अनुसार, तीन जुलाई को हुआ प्रदर्शन पूरे देश में, सभी कार्यस्थलों और केंद्रों में एक बड़ी सफलता थी। यह कर्मचारी-विरोधी, किसान-विरोधी, जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के लिए असहयोग और अवहेलना का एकजुट संघर्ष था।

राज्यों में लगभग एक लाख जगहों पर कार्य स्थानों, श्रम संघ कार्यालयों, जुलूसों, साइकिल और मोटरबाइक रैलियों, सार्वजनिक सभाओं के रूप में कार्यक्रम आयोजित किए गए।

केंद्रीय श्रम संगठनों, स्वतंत्र क्षेत्रवार फेडरेशन और एसोसिएशनों के संयुक्त मंच ने  कोयला श्रमिकों को बधाई दी, जिन्होंने 2-3  जुलाई 2020 को तीन दिनों के लिए सफलतापूर्वक हड़ताल का आयोजन किया।

इस हड़ताल के चलते एससीसीएल और कोल इंडिया की कोयला खदानों और प्रतिष्ठानों में काम पूर्ण रूप से ठप्प  हो गया। कोयले का उत्पादन और प्रेषण नहीं हुआ।

हड़ताल का आह्वान कोयले के अनियमित वाणिज्यिक खनन और विदेशी संस्थाओं सहित निजी क्षेत्र द्वारा कोयले के  व्यापार के माध्यम से कोयला क्षेत्र का पूरी तरह से निजीकरण करने के सरकार के फैसले के विरोध में किया गया था,  जो राष्ट्रीय हितों और आत्मनिर्भरता के लिए हानिकारक है।

कोयला संघों का 18 को हड़ताल

कोयला संघों ने एक बार फिर 18 अगस्त 2020 को हड़ताल पर जाने का फैसला किया है जो निजी खनन के लिए कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए बोली लगाने का आखिरी दिन है।

बैठक में संज्ञान लिया गया कि लॉकडाउन के बाद कुछ औद्योगिक इकाइयों के खुलने के साथ, सभी श्रमिकों को वापस नहीं लिया जा रहा है, केवल एक छोटा प्रतिशत नौकरियों में अपनी जगह पा रहा है और वह भी कम मजदूरी पर।

लॉकडाउन अवधि के वेतन से वंचित किया जा रहा है। रोजगार और मजदूरी में कमी की इस चुनौती का सामना हमें एकजुट संघर्ष के माध्यम से करना  होगा।

20,000 कर्मचारियों को छह महीने तक बिना वेतन के छुट्टी पर जाने का नोटिस देने का एयर इंडिया अधिकारियों का हालिया फैसला, जिसमें बिना वेतन के अनिवार्य (जबरन) छुट्टी का प्रावधान शामिल है, जिसे 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है,  मौजूदा क़ानूनों का घोर उल्लंघन है।

14 करोड़ से अधिक लोग बेरोज़गार हैं और यदि हम दैनिक वेतन / अनुबंध / आकस्मिक मज़दूरों को  जोड़ते हैं, तो लगभग 24 करोड़ से अधिक लोग वर्तमान में आजीविका से बाहर हैं।

एमएसएमई  स्वयं रिपोर्ट कर रहे हैं कि 30% से 35% इकाइयों के लिए अपनी गतिविधियों पुनः शुरू करना मुश्किल हो सकता है।  बेरोज़गारी की दर अधिक है।

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 40 करोड़ से अधिक लोगों के गहरी गरीबी में धकेले जाने की संभावना है।

कमज़ोरों पर बढ़ी मार

जाने माने वैज्ञानिकों और चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि कुपोषण बढ़ेगा, भूख से मौतें रोज़ाना की हकीक़त बन जाएंगी, और अवसाद  के कारण मज़दूरों द्वारा आत्महत्या का खतरा उत्पन्न होगा। इन सभी मुद्दों पर मज़दूर गुस्से में हैं।

सरकार न केवल  महामारी को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने में विफल रही बल्कि इसने अचानक अनियोजित लॉकडाउन लागू किया, जिससे लोगों विशेष रूप से प्रवासी मज़दूरों को गंभीर यातनाएं सहनी पड़ीं।

सरकार स्वास्थ्य प्रणाली के उन्नयन और अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में भी विफल रही और उसने चार महीनों का कीमती समय जाया कर दिया।

सरकार न केवल रेलवे, रक्षा, बैंकों, बीमा, दूरसंचार, डाक और अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों द्वारा प्रदान की जाने वाली अपार सेवाओं को पहचानने में विफल रही, जो लॉकडाउन की अवधि के दौरान आवश्यक सेवाएं प्रदान कर रहे थे, वरन उसने  उनको हो रही समस्याओं की भी उपेक्षा की।

सरकार ने कोविद 19 की समस्या से निपटने के लिए इसे मानव और समाज के लिए चिकित्सा आपात काल की बजाय कानून और व्यवस्था के मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया।

सरकार ने लाखों श्रमिकों, किसानों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों को भारी कष्ट पहुँचाया है और वह  केवल कॉर्पोरेट्स और बड़े व्यवसायों के साथ खड़ी हुई है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश और थोक निजीकरण , सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों – भारतीय रेल, रक्षा, बंदरगाह और डॉक, कोयला, एयर इंडिया, बैंक, बीमा सहित निजी क्षेत्रों में  100 प्रतिशत तक एफडीआई के प्रवेश की अनुमति के विरोध केंद्रीय श्रम संगठनों  ने अपना विरोध दोहराया।

संवेदनशील अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान भी नहीं बचे

अंतरिक्ष विज्ञान और परमाणु ऊर्जा आदि के क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, बीमा और अन्य वित्तीय क्षेत्रों को भी बड़े पैमाने पर निजीकरण के लिए लक्षित किया जा रहा है।

भारतीय और विदेशी ब्रांडों के कॉरपोरेट्स के पक्ष में सरकार के कदम देश के प्राकृतिक संसाधनों और व्यापार को बर्बाद  करने के लिए हैं।  आत्मनिर्भर भारत का नारा एक ढकोसला है।

48 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों के महँगाई भत्ते और 68 लाख पेंशनरों की महँगाई राहत को फ्रीज करने का फैसला, जो राज्य सरकार के कर्मचारियों पर भी प्रभाव डाल रहा है, सरकारी कर्मचारियों और केंद्रीय श्रम संगठनों  के विरोध के बावजूद वापस नहीं लिया गया है।

न ही सभी गैर-आयकर करदाताओं को रु .7500 / – के नकद हस्तांतरण की मांग को स्वीकार किया गया है।

लॉकडाउन अवधि की मजदूरी के भुगतान और मजदूरी में कोई कटौती नहीं करने के संबंध में अपने स्वयं के आदेशों को लागू करने में विफल होने के बाद, जब कुछ नियोक्ता कोर्ट में गए तो, सरकार ने बेशर्मी से भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपने स्वयं के आदेश को वापस ले लिया।

सरकार निजीकरण और सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री के साथ आगे बढ़ने के अपने अभिमानी रवैये पर कायम  है। रक्षा उत्पादन जैसे अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी निवेश को खतरनाक रूप से 49 से 74% तक उदार बनाया गया है।

सरकार निजीकरण के लिए 41 आर्डनेंस फ़ैक्ट्री (आयुध कारख़ानों) के निगमकरण,  भारतीय रेलवे के चरणबद्ध निजीकरण की अपनी परियोजना के साथ आगे बढ़ रही है।

भारतीय रेलवे का निजीकरण

हाल ही में सरकार ने भारतीय रेलवे के बुनियादी ढांचे और मानव शक्ति का उपयोग कर भारी लाभ कमाने के लिए निजी खिलाड़ियों को सुविधा प्रदान करने के लिए अत्यधिक आय वाले मार्गों में 151 ट्रेन सेवाओं के निजीकरण का  विनाशकारी फैसला लिया है।

विभिन्न सरकारी विभागों में नई नौकरियों के सृजन के लिए स्वीकृत पदों पर प्रतिबंध और नौकरियों के लिए युवा उम्मीदवारों के लिए प्रतिबंध जारी है।

पिछले दो महीनों में 22 मौकों पर  पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों को एक और बड़ा झटका दिया है।

ऐसी सरकार जिसके पास श्रमिकों और लोगों के अधिकारों और बुनियादी अस्तित्व-अधिकारों के प्रति कोई सम्मान और चिंता नहीं है, वह किसी भी सहयोग के लायक नहीं है।

आज सहमारे संगठित होने , सामूहिक सौदेबाजी, काम करने की स्थिति, मजदूरी और भविष्य की सुरक्षा आदि के हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए हम मज़दूरों/ कर्मचारियों और ट्रेड यूनियनों को एकजुट रहने के लिए हर संभव प्रयास करने की ज़रूरत है।

इस सरकार ने श्रमिकों और लोगों की बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं के प्रति क्रूर असंवेदनशीलता का प्रदर्शन किया है। इसका समर्थन और सहयोग नहीं किया जा सकता है।

इसलिए केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और संघों / संघों के संयुक्त मंच ने लगातार  क्षेत्रवार  और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के जन-विरोधी, श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्वान किया है। यह तय किया गया है कि;

1.       9 अगस्त-“भारत छोड़ो दिवस” को “देश बचाओ दिवस” के रूप में मनाया जाए और  सभी कार्यस्थलों / औद्योगिक केंद्रों / जिला मुख्यालयों और ग्रामीण क्षेत्रों आदि में देशव्यापी सत्याग्रह / जेल भरो-या किसी अन्य प्रकार के आंदोलन का आयोजन किया जाए।

2.       18 अगस्त 2020 को कोयला श्रमिकों की हड़ताल के दिन सभी कार्यस्थलों और विशेष रूप से सार्वजनिक उपक्रमों में एकजुटता की कार्रवाई; जहां भी संभव हो, हड़ताल की कार्रवाई की संभावना तलाश की जानी चाहिए।

3.       रक्षा क्षेत्र के संघों / महासंघों ने संयुक्त रूप से 99 प्रतिशत से अधिक श्रमिकों द्वारा अनुमोदित स्ट्राइक बैलट के आधार पर हड़ताल के लिए नोटिस देने की योजना बनाई है।

वे सितंबर 2020 के मध्य में किसी भी समय हड़ताल के लिए जा सकते हैं। केंद्रीय श्रम संगठनों और महासंघों के संयुक्त मंच ने रक्षा क्षेत्र की हड़ताल के साथ सरकार की नीतियों के खिलाफ देशव्यापी आम हड़ताल  की योजना बनाई है और सभी संबंधितों को उस दिशा में तैयारी शुरू करने का आह्वान किया है ।

4.       स्कीम के श्रमिक संघ  (आंगनवाड़ी, आशा, मिड डे मील आदि) ने संयुक्त रूप से 7 और 8 अगस्त 2020 को दो दिनों की हड़ताल का फैसला किया है। यह हड़ताल 9 अगस्त 2020 को देशव्यापी सत्याग्रह / जेल भरो / आंदोलन के साथ आयोजित की जाएगी।

केंद्रीय श्रम संगठनों  और संयुक्त मंच ने सर्वानुमति से योजना कार्यकर्ताओं के साथ एकजुटता व्यक्त की है ।

5.       रेलवे क्षेत्र के साथ यूनियनों / संघों के समन्वय में रेलवे निजीकरण पर सरकार के कदम के खिलाफ देशव्यापी अभियान जारी रखने का भी निर्णय लिया गया है। रेलवे फेडरेशन ने बताया कि वे उचित समय पर अपनी प्रतिक्रिया/कार्यों की योजना भी बना रहे हैं।

6.       यह सहमति व्यक्त की गई कि एक अभियान के रूप में भारत के राष्ट्रपति के नाम एक याचिका को  change.org अभियान के रूप में शुरू किया जाएगा।

विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए एक और पृथक याचिका का भी सुझाव दिया गया।

यह भी तय किया गया कि 9 अगस्त के कार्यक्रम की तैयारियों पर विस्तृत चर्चा के लिए केंद्रीय श्रम संगठनों  का मंच एक बार फिर 27 जुलाई को बैठक करेगा ताकि इसे प्रभावी बनाया जा सके।

जारी बयान में केंद्रीय श्रम संगठनों  की सभी राज्य इकाइयों से अपील की गई है कि वे अगले चरण के आंदोलन की योजना बनाने के लिए क्षेत्रीय महासंघ और संघ बैठकें आयोजित करें और जिलों और उद्यम / उद्योग स्तर पर कार्य योजना तैयार करें।

(बयान को इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू , एलपीऍफ़, यूटीयूसी और क्षेत्रवार फेडरेशन और एसोसिएशन की ओर से जारी किया गया है।)

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