तमिलनाडु: मजदूरों का भारी विरोध, फिर भी सरकार ने महामारी के चरम के बीच ऑटोमोबाइल फैक्ट्रियों को उत्पादन की अनुमति दी

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तमिलनाडु में कोरोना से लगातार रिकॉर्ड मौतें हो रही हैं।  प्रतिदिन सामने आने वाले ताजा मामलों में तमिलनाडु शीर्ष राज्यों में है। हालात को देखते हुए राज्य में लॉकडाउन को 7 जून तक बढ़ा दिया गया है।

लेकिन जरूरी समझे जाने वाले उद्योगों में काम चल रहा है। ऑटोमोबाइल उद्योग भी उनमें से एक है। न्यूज क्लिक की एक खबर के अनुसार तमिलनाडु में इस तरह की इंडस्ट्री राज्य में सुपर स्प्रेडर का काम कर रही हैं।

एक ही छत के नीचे हजारों मजदूरों से काम करवाया जा रहा है जो कोरोना के खतरे को बढ़ा रहा है।

मजदूर संगठन लगातार इन फैक्ट्रियों को बंद करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने मजदूरों की सुरक्षा के ऊपर मुनाफे को प्राथमिकता देने के खिलाफ अब विरोध तेज कर दिया है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीआईटीयू) के राज्य नेता कन्नन सुंदरराजन इस बारे में कहते हैं कि यह चौंकाने वाली बात है कि सरकार ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को जरूरी सेवा मान रही है। चाहे डीएमके हो या एआईएडीएमके,दोनों ही इसे जरूरी सेवा नहीं मान सकते हैं। यह दूध, चावल या फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री नहीं है।

यह वायरस फैक्ट्री के दूसरे मजूदरों को संक्रमित करने के साथ ही मजदूरों के परिवारों और उनके पड़ोसियों के लिए भी खतरा बन चुका है।

इस वजह से सीआईटीयू ने सरकार से लॉकडाउन में ऑटोमोबाइल फैक्ट्रियों को बंद करने और मजदूरों को पूरी सैलर देने की मांग की है।

हालांकि सरकार, मैनजमेंट और लेबर डिपार्टमेंट इस मांग के पक्ष में नहीं हैं।

सरकार ने कहा है कि फैक्ट्रियां और मजदूरों को ले जाने वाली बसें 50 % क्षमता के साथ चल सकती हैं। साथ ही कैंटीन की जगह का विस्तार करना चाहिए। लेकिन इन सभी प्रोटोकॉल का उल्लंघन हो रहा है।

ट्रेड यूनियन ने कोरोना के कारण मरने वाले मजदूरों के परिवारों को 1 करोड़ रुपये का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य के लिए स्थायी रोजगार की भी मांग की है।

कन्नन ने आगे बताया, कुछ फैक्ट्रियों ने कोशिश की है। खास तौर पर छोटी कंपनियों ने। बड़ी फैक्ट्रियों ने यह साफ कर दिया है कि वे कम मजदूरों के साथ काम नहीं कर सकती हैं। हम यहा मांग करते हैं कि कम से कम प्रति कर्मचारी शिफ्ट की संख्या कम की जानी चाहिए।

कुछ फैक्ट्रियों ने यूनियन के लगातार दबाव के चलते कुछ दिनों के लिए प्रोडक्शन रोका है या मजदूरों की संख्या कम की है। लेकिन आने वाले दिनों की स्थिति साफ नहीं है।

दबाव में झुकी हुंडई
24 मई को हुंडई के करीब 16,000 मजदूर हड़ताल पर चले गए। यूनियन का कहना है कि कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ रहा है लेकिन मैनजमेंट महामारी के प्रोटोकॉल को नजरअंदाज करते हुए मजदूरों की 100 % क्षमता के साथ दिन-रात काम करवाना चाहता है। बसों के जरिए 4 विभिन्न जिलों से यहां मजदूर आते हैं जिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा और भी बढ़ जाता है। हड़ताल को देखते हुए हुंडई ने 29 मई तक काम बंद करने का फैसला लिया। गौरतलब है कि अप्रैल-मई में 750 मजदूर संक्रमित हो गए जिसमें से 7 मजदूरों की मौत भी हो गई।

रेनॉल्ट-निसान और मजदूरों में हुई कानूनी लड़ाई
सीआईटीयू के अनुसार चेन्नई स्थित रेनॉल्ट-निसान की फैक्ट्री में पिछले साल तमाम कोरोना प्रोटोकॉल का पालन किया गया था। मजूदरों का ख्याल रखा गया, संक्रमण रोकने की पूरी कोशिश हुई लेकिन इस बार फैक्ट्री का गैर जिम्मेदाराना रवैया सामने आया है। वे मुनाफा कमाने के लिए पूरी क्षमता से निर्माण करना चाहते हैं।

जिसके बाद यह मुद्दा मद्रास हाई कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने सरकार को फैक्ट्री के हालात को देखने के लिए कहा लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया।

मजदूरों द्वारा काम का बहिष्कार करने की धमकी देने के बाद फैक्ट्री ने 26 से 30 मई तक काम बंद रखने का फैसला किया।

गौरतलब है कि पिछले साल 850 मजदूर संक्रमित हुए और 7 मजदूरों की मौत हुई थी।

फोर्ड प्लांट का संचालन जारी
चेंगलपट्टु जिले में स्थित फोर्ड प्लांट के 250 मजदूर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और 2 मजदूरों की मौत हो चुकी है। यूनियन ने लॉकडाउन के दौरान प्लांट को बंद रखने और मजूदरों को पूरा वेतन देने की मांग की।

मजदूरों ने अपनी मांगों को दोहराते हुए दोपहर के भोजन का बहिष्कार भी किया और वायरस के कारण मारे गए साथी श्रमिकों को सम्मान दिया। लेकिन प्लांट का संचालन जारी है।

अपनी जिद पर अड़ा जेके टायर्स
चेन्नई के पास श्रीपेरंबुदूर में भारतीय टायर निर्माता, जेके टायर्स फैक्ट्री में 2,500 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। इनमें एक शिफ्ट में 700 कर्मचारी हैं।

इस बारे में बात करते हुए CITU से जुड़े जेके टायर्स वर्कर्स यूनियन के महासचिव कार्थी ने बताया,”महामारी के डर से करीब 300 मजदूर अपने घरों के लिए रवाना हो चुके हैं। महामारी के दौरान जो मजदूर काम पर नहीं आ रहे हैं उन्हें सिर्फ 50% वेतन ही मिल रहा है। यहां तक ​​कि इलाज का खर्च भी फैक्ट्री वहन नहीं करती है। फैक्ट्री द्वारा मास्क उपलब्ध कराने के अलावा और कुछ नहीं किया जा रहा है।”

(साभार-न्यूज क्लिक)

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