आखिर इंटरार्क कंपनी झुकी, 195 मज़दूरों का ट्रांसफ़र रुका, काम पर वापस बुलाया गया मज़दूरों को

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उत्तराखंड के सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में स्थित इन्टरार्क बिल्डिंग प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड ने कोर्ट की फटकार के बाद 195 मज़दूरों का ट्रांसफ़र ऑर्डर वापस ले लिया है।

इंटरार्क मजदूर संगठन, सिडकुल, पन्तनगर के अध्यक्ष दलजीत सिंह ने बयान जारी कर कहा है कि ‘यह यूनियन के सभी सदस्यों व कार्यकर्ताओं के सामुहिक प्रयासों व मेहनत का ही फल है कि आज प्रबंधन दो कदम पीछे हटने को विवश हुआ है। मगर खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। यदि हम ढीले पड़े और आपसी एकजुटता कमजोर हुई तो प्रबंधन इसका फायदा उठाकर पलटवार करने से हरगिज नहीं चुकेगा। इसलिए सावधान होकर चलना होगा।’

बयान के अनुसार, “27 जुलाई को नैनीताल हाईकोर्ट ने मज़दूरों के चेन्नई स्थानांतरण पर प्रबन्धन को लताड़ा और पूछा कि कोरोना काल में मजदूरों का ट्रांसफर क्यों कर रहे हो तो प्रबंधन के पास कोई जवाब न था उसने अगली तारीख मांगी। हाईकोर्ट में प्रबन्धन के वकील दबाव में थे उनका मनोबल कमजोर लग रहा था। उसी का परिणाम है कि प्रबंधन ने नोटिस लगाकर मजदूरों को कार्य पर बुलाया है।”

क़रीब एक महीने से इन मज़दूरों की गेटबंदी कर दी गई थी और चेन्नई और अन्य दूरस्थ इलाक़ों में ट्रांसफ़र कर दिया गया था।

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सड़क से कोर्ट तक लड़ाई

तबसे सभी मज़दूर एकजुट होकर कंपनी गेट के सामने और लेबर ऑफ़िस पर धरना प्रदर्शन कर रहे थे।

साथ ही यूनियन ने नैनीताल हाईकोर्ट में कंपनी के मनमाने आदेश के ख़िलाफ़ अर्जी लगा दी थी।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कंपनी मैनेजमेंट को लताड़ लगाई जिसके बाद प्रबंधन ने 28 जुलाई से सभी मज़दूरों को काम पर वापस आने और शिफ़्ट लगाने की बात कही है।

प्रबंधन ने लॉकडाउन के बीच पहले 29 सुपरवाइजरों और इंजीनियरों को निकाल दिया। उसके बाद 195 परमानेंट मज़दूरों को गैर कानूनी रूप से चेन्नई ट्रांसफ़र करने का नोटिस लगा दिया।

मज़दूरों का कहना है कि कानूनी रूप से मज़दूरों की सहमति के उन्हें राज्य से बाहर नहीं भेजा जा सकता है वो भी लॉकडाउन के दौरान।

ग़ौरतलब है कि जिस समय कंपनी ने ये फ़ैसला लिया चेन्नई में कोरोना के मामले बढ़ने के कारण वहां और सख़्त लॉकडाउऩ लगाया गया था।

सामान्य ट्रेनें भी अभी नहीं चल रही हैं और सड़क मार्ग से चेन्नई जाना भी बहुत टेढ़ी खीर था।

इसको लेकर मज़दूरों ने एकजुटता दिखाई और क़ानूनी संघर्ष का भी रास्ता अपनाया। इसी बीच  यूनियन ने नैनीताल हाईकोर्ट से इस पर स्टे ले लिया।

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कंपनी पर अपमानित करने का आरोप

उत्तराखंड में कंपनी के दो प्लांट हैं पंतनगर और किच्छा में और दोनों जगह यूनियनें हैं। अभी दोनो यूनियनों ने अखिल भारतीय इंटरार्क मज़दूर फ़ेडरेशन बनाकर अपनी एकता को और मज़बूत किया है।

यूनियन अध्यक्ष दलजीत ने कहा कि ‘अभी भी कई साथी ऐसे हैं जो एक तरफ यूनियन से भी जुड़े हैं, दूसरी तरफ प्रबन्धन की नजरों में भी पाक साफ बने रहना चाहते हैं। ऐसे साथियों से विशेष रूप से अनुरोध है कि दोहरापन बन्द करिए। एकनिष्ठता दिखाईए, यूनियन से जुड़िये तो मजबूती से जुड़िए वरना प्रबन्धन फायदा उठाकर अपनी चालें चलेगा।’

मज़दूरों का कहना है कि इस दौरान शासन प्रशासन मौन क्यो रहा। उत्तराखंड राज्य के लोग कहाँ गये जो कुछ चन्द लोगों की वजह से आज इस देवभूमी को रोजगार के नाम पर अपमानित कर रहे हैं।

विशाल पटेल ने अपने फ़ेसबुक पर लिखा है, “15 साल मेहनत करने के बाद इस कोविड 19 के दौर में ये क्या सही है जहा लोगों को सरकार एक तरफ रोजगार देने की बात करती हैं और दूसरी तरफ मजदूरों को अपमानित किया जाता है।”

उन्होंने आगे लिखा है, “हमें एकजुट होकर इस लडाई को लडना चाहिए आज मजदूर वर्ग और अन्य संगठनों को एक होकर चलना पड़ेगा कल यह कीसी भी अन्य को भी ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।”

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