ट्रेड यूनियन और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुक़दमे वापस लेने की मांग

asha workers

देश भर में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर पुलिसिया दमन के ख़िलाफ़ मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने एक बयान जारी कर निंदा की है।

नौ अगस्त के देशव्यापी विरोध के बाद केन्द्रीय ट्रेड यूनियन नेताओं और आशा कर्मियों पर थोपे गए मुक़दमों, कारवां के पत्रकारों पर हमलों, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की गिरफ़्तारी व उत्पीड़न, विरोध कर रहे छात्रों पर मुक़दमें, वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना को लेकर बयान में विरोध जताया गया है।

गौरतलब है कि 9 अगस्त को देशव्यापी मज़दूर विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली के जंतर मंतर पर इकट्ठा होने के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस ने ट्रेड यूनियनों और आशा वर्करों पर एफ़आईआर दर्ज की है।

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मासा का पूरा बयान

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा), सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के खिलाफ पिछले 9 अगस्त को दिल्ली जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने के कारण 100 से ज्यादा आशा वर्कर्स और केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के सदस्यों पर दिल्ली पुलिस द्वारा मुक़दमे दर्ज किये जाने का सख्त विरोध करता है।

11 अगस्त को दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट थाना में आईपीसी की धारा 188 (सरकारी आदेश की उल्लंघन), एपिडेमिक डिजीज एक्ट की धारा 3 और डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट की धारा 51बी के तहत इनके खिलाफ एफ़आईआर दर्ज की गई है।

ऐसे समय में जब सरकार कोरोना संकट को मज़दूरों के लंबे संघर्षों से हासिल किये गए अधिकारों को लगातार छीनने के अवसर में तब्दील कर रही है और कु-नियोजित लॉक-डाउन से मेहनतकश जनता के जीवन और जीविका के संकट को बढ़ा रही है, तब साथ ही साथ विरोध के अपराधीकरण व मज़दूर नेताओं पर हमले के जरिये मज़दूर वर्ग को डराने की कोशिश की जा रही है।

मासा ने मज़दूर विरोधी श्रम कानून संशोधन, निजीकरण की प्रक्रिया को तेज करने, प्रवासी व असंगठित मज़दूरों के संकट के प्रति सरकार की लापरवाही, बेरोजगारी, वेतन कटौती, स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा के बिगड़ते हालात आदि के खिलाफ 9 अगस्त को अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था। उसके बाद बी.एम.एस. को छोड़ कर सभी संस्थागत केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने 9 अगस्त को “भारत बचाओ दिवस” के तौर पर मनाने और देश भर में विरोध प्रदर्शन करने का कार्यक्रम लिया था।

9 अगस्त को देश भर में अलग अलग स्थान पर हुए विरोध प्रदर्शनों में संगठित और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की उत्साहजनक भागीदारी रही। दिल्ली के जंतर मंतर में भी सफल प्रदर्शन रहा, जिसमें आशा वर्कर्स की खास भागीदारी रही, जो पिछले कई महीनों से बगैर ‘मज़दूर’ का दर्जा या अधिकार के ही कोरोना के खिलाफ पहली कतार में खड़े होकर लड़ रही हैं।

9 अगस्त के प्रदर्शन के बाद सरकार मज़दूरों की माँगों पर ध्यान देने के बजाए मज़दूरों के खिलाफ केस दर्ज करके उनकी आवाज़ को कुचलने की कोशिश कर रही है। यह बात साफ़ है कि अगर सरकार मेहनतकश जनता के बिगड़ते हालातों पर ध्यान नहीं देती है और उन पर दमन या उनके अधिकारों को छीनने की यह प्रक्रिया जारी रखती है, तो फिर मेहनतकश जनता भी सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर होगी।

मासा सरकार को सचेत करता है और यह माँग करता है कि सभी मज़दूर विरोधी नीतियाँ और कदमों को अविलम्ब वापस लिया जाये, निजीकरण प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगायी जाये और मेहनतकश जनता के संकट को हल करने के लिए फ़ौरन ध्यान दिया जाये। मासा आशा वर्कर्स और केन्द्रीय ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं पर लगाये गए सभी मुक़दमे फ़ौरन वापस लेने की माँग करता है।

11 अगस्त को कारवां पत्रिका के 3 पत्रकारों पर उत्तर पूर्व दिल्ली में दिल्ली हिंसा पर खबर करते समय हमला किया गया। उन्हें घेरकर भीड़ द्वारा सांप्रदायिक गालियाँ व हत्या की धमकी दी गई और महिला पत्रकार पर यौन हमला किया गया।

पिछले कुछ दिनों में भीमा कोरेगांव घटना और दिल्ली हिंसा की जाँच प्रक्रिया के बहाने कई प्रगतिशील कार्यकर्ताओं और दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों जैसे हनी बाबु, जेनी रोवेना, पीके विजयन, राकेश रंजन, अपूर्वानंद आदि को निशाना बनाने, दबाव डालने या गिरफ्तार करने की घटना जनवादी परिसर पर हमला है।

हनी बाबू की गिरफ्तारी का विरोध करने के कारण दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों पर मुक़दमे दर्ज किए गए। 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रगतिशील व जनपक्षधर वकील प्रशांत भूषण पर उनके द्वारा किये गए दो पुराने ट्विट पर उनको ‘कोर्ट की अवमानना’ के लिए दोषी ठहराया गया। सत्ता विरोधी सभी आवाजों को दमन से कुचलने की जारी प्रक्रिया के ही ये हिस्सा हैं।

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