ट्रेड यूनियनों ने फूंकी श्रमिक संहिताओं और कृषि कानूनों की प्रतियां, बिजली कर्मचारियों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल

trade union protest nationwide
केंद्रीय ट्रेडयूनियन के आह्वान पर तीन फ़रवरी को पूरे देश में लेबर कोड, बजट और कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए।
उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, चेन्नई, बैंगलोर में लेबर कोड, बजट और कृषि क़ानूनों की प्रतियां जलाकर विरोध दर्ज कराया गया।
इलाहाबाद में संयुक्त ट्रेड यूनियन ने मज़दूर विरोधी चारों श्रम संहिताओं, किसान विरोधी कृषि कानूनों और जनविरोधी बजट के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा।
बिजली संशोधन बिल 2020 में पूरे देश की सरकारी बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण के ख़िलाफ़ तीन फ़रवरी को एक दिवसीय हड़ताल की गई, जिसका समर्थन दिल्ली में घेरा डाले संयुक्त किसान मोर्चे ने भी किया था।
मोदी सरकार बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों में देने के लिए अध्यादेश जारी कर इस पर कार्यवाही भी शुरू कर दी थी लेकिन पिछले साल उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों की ऐतिहासिक हड़ताल के कारण सरकार को पीछे हटना पड़ा था।

बिजली कर्मचारियों की हड़ताल

बिजली कर्मचारियों और इंजीनियर्स की नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले तीन फ़रवरी को पूरे देश में बिजली क्षेत्र के निजीकरण के ख़िलाफ़ हड़ताल हुई।

कर्मचारियों ने मोदी सरकार की बिजली कंपनियों के निजीकरण की नीति का विरोध करते हुए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण को रद्द किए जाने की मांग की।

द हिंदू से बातचीत करते हुए ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन के प्रवक्ता वीके गुप्ता ने कहा कि बिजली इंजीनियर और कर्मचारियों सरकार की निजीकरण की नीतियों के ख़िलाफ़ पूरे देश में हड़ाल करते हुए निजीकरण को तुरंत बंद किए जाने की मांग की।

चंडीगढञ में हुई एक रैली में एआईपीईएफ़ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि चंडीगढ़ बिजली विभाग सबसे व्यवस्थित है और पिछले पांच साल से मुनाफ़े में है। इसके निजीकरण को सही नहीं ठहराया जा सकता।

एआईपीईएफ़ के चीफ़ पैट्रन परमजीत सिंह ने कहा कि बजट में वित्र मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि निजीकरण से बिजली कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी और इससे जनता को फायदा पहुंचेगा।

उन्होंने कहा कि लेकिन अगर चंडीगढ़ के बिजली विभाग को पूरा बेच दिया गया तो प्रतिस्पर्धा कहां रह जाएगी।

इलाहाबाद में विरोध प्रदर्शन

इलाहाबाद में मज़दूर नेताओं ने श्रम सहिताओं, कृषि कानूनों, बजट 2021-22 तथा नये बिजली कानून की प्रतियां भी जलाईं। आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), सेण्टर आफ इण्डियन ट्रेड यूनियन (सीटू), आल इण्डिया सेण्ट्रल काँउसिल आफ ट्रेड यूनियनस् (एक्टू), आल इण्डिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेण्टर और इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन सेण्टर ने इसमें हिस्सा लिया।
वक्ताओं ने कहा कि काॅरपोरेट परस्त नीतियां अपनाते हुए जनता के विभिन्न हिस्सों के खिलाफ एकतरफा तरीके से कानून थोप रही है। कोरोना काल की आड़ लेकर सरकार ने बिना किसान संगठनों से बात किये कृषि कानून पारित किये तो बिना श्रमिकों की बात सुने श्रमिक संहिताएं पारित कर दीं तथा बिना छात्रों-शिक्षकों से बात किये नई शिक्षा नीति उन पर थोप दी।
नेताओं ने कहा कि इन क़ानूनों को पारित करते समय न्यूनतम संसदीय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। तीनों कृषि कानूनों से देश में खेती तथा खाद्य सुरक्षा दोनों पर भी असर पड़ेगा, साथ ही किसानों की ज़मीनें छिनने का भी खतरा बना रहेगा।
उन्होंने पुलिस के दमन, झूठे दुष्प्रचार, भाजपाई गुण्डों से लड़ते हुए, देश के किसानों के बहादुराना संघर्ष को सलाम करते हुए उसके साथ एकजुटता प्रदर्शित की। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों की ही तरह चारों श्रम संहिताएं भी देश के मज़दूरों को बर्बाद कर देंगी।
एक्टू के कमल उसरी ने कहा कि देश के श्रमिकों की क्या हालत है और सरकार का उनके प्रति क्या रूख है, यह कोरोना के समय में प्रवासी मज़दूरों की स्थिति से ही स्पष्ट हो गया था। करोड़ों मज़दूरों को भूखे-प्यासे, सैकड़ों मील पैदल चलने के लिए छोड़ दिया गया था। मज़दूरों को विभिन्न श्रम कानूनों के चलते जो थोड़ी-बहुत सहूलियतें मिलती भी थीं, वे भी अब समाप्त हो जायेंगी, जब इन श्रम कानूनों को समाप्त कर श्रमिक संहिताएं लागू कर दी जायेंगी।
उन्होंने कहा कि इन श्रमिक संहिताओं के बाद एक मज़दूर, दिन भर मेहनत करने के बाद भी सम्मान के साथ नहीं जी पायेगा, बल्कि मालिकों के रहमोकरम पर ही निर्भर हो जायेगा। वक्ताओं ने केन्द्र सरकार के जनविरोधी बजट पर भी जम कर निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार विनिवेश के नाम पर देश की बहुमूल्य सम्पदा को बेच रही है। आत्मनिर्भरता का नारा देने वाले सब कुछ काॅरपोरेट घरानों के हाथों में सौंप रहे हैं। सरकार ने तमाम काॅरपोरेट घरानों को कर में अनाप-शनाप छूट दे रखी है, साथ ही बैंक के अरबों का कर्ज़ डकार कर तमाम पूंजीपति सरकार की नाक के नीचे से भाग जाते हैं, पर सरकार उनके आगे नतमस्तक है और जनता पर बोझ बढ़ाते हुए वो पेट्रोल-डीज़ल के दाम को आसमान पर पंहुचा देती है और उससे भी पूरा नहीं पड़ता तो तमाम सार्वजनिक सम्पत्ति बेचने को तैयार है।
उन्होंने कहा कि कोरोना काल, बिना तैयारी के लाॅकडाउन तथा उसके चलते बेतहाशा बढ़ी हुई बेरोज़गारी के समय आवश्यकता थी कि शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोज़गार निर्माण के क्षेत्र में निवेश बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जाये परन्तु सरकार ने ऐसा नहीं किया। बैंक, बीमा, रेल आदि के निजीकरण से न केवल बेरोज़गारी बढ़ेगी बल्कि देश की वित्तीय आत्मनिर्भरता भी संकट में आ जायेगी।
वक्ताओं ने कहा कि देश का मज़दूर-किसान, छात्र-युवा मिलकर इन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ अपने संघर्षों को तेज़ करेगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता राम सागर और संचालन डाॅ. कमल उसरी ने किया।
कार्यक्रम में पूर्व सांसद धर्मराज पटेल, सभासद शिव सेवक,एस सी बहादुर, रवि मिश्रा, नसीम अंसारी, माता प्रसाद, अविनाश मिश्रा, आनन्द मालवीय, सुनील मौर्या, हरिश्चन्द्र द्विवेदी,अनिल वर्मा, बाबूलाल, माताप्रसाद, मुस्तकीम अहमद, शैलेश पासवान, मुन्नी लाल यादव, अंतस सर्वानन्द, गायत्री गांगुली, भूपेन्द्र पाण्डेय, अखिल विकल्प, सीताराम विद्रोही, आशुतोष तिवारी आदि लोग उपस्थित रहे।

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