यूपी में कोरोना से 1621 शिक्षकों और कर्मचारियों की कोरोना से मौत, योगी सरकार का दावा सिर्फ 3 मरे

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योगी सरकार के दावों को उसके ही शिक्षा विभाग की यूनियन ने झूठा साबित करते हुए पंचायत चुनावों में ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित होने से जान गंवाने वाले शिक्षकों और शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की लिस्ट जारी की है और मुआवज़े की मांग की है।

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने जो सूची जारी की है उसमें 1621 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और अन्य कर्मचारियों के नाम शामिल हैं। ये सूची 16 मई तक की है। 28 अप्रैल तक ये संख्या 706 थी। मरने वालों में 90 प्रतिशत पंचायत चुनाव ड्यूटी में थे।

जबकि यूपी शिक्षा विभाग ने 18 मई को एक प्रेस नोट जारी कर कहा कि पंचायत चुनाव के दौरान तीन शिक्षकों की मौत के प्रमाण दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि निर्वाचन अवधि की गणना के दौरान की मृत्यु में ही मुआवज़े का प्रवधान है। यानी मतदान से लेकर मतगणना तक। और इस दौरान जिलाधिकारियों की ओर से सिर्फ तीन कर्मचारियों के मौत की पुष्टि हुई है।

संघ के अध्यक्ष डा. दिनेश चंद्र शर्मा और महामंत्री संजय सिंह ने पत्र में सरकार को याद दिलाया है कि कोरोना महामारी के पहली लहर में प्राथमिक शिक्षकों ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 76 करोड़ रुपये दिए थे। राशन की दुकानों खड़े होकर गरीबों तक राशन पहुंचाया था और जब विद्यालय खुले तो अधिक संख्या में छात्र-छात्राओं का नामांकन कराया लेकिन इसके बदले सरकार ने शिक्षकों को बंद विद्यालयों में बैठने को मजबूर किया, उनसे ऑपरेशन कायाकल्प में ड्यूटी करवाई, पंचायत चुनाव में काम कराया किया और अब कोविड कंटोल रूम में ड्यूटी करा रही है।

संघ ने कहा है कि कोरोना महामारी के विस्फ़ोट के दौरान ही पंचायत चुनाव कराए जाने को रोकने के लिए योगी सरकार और चुनाव आयोग को 12 अप्रैल से एक नहीं चार बार चिट्ठी लिखी गई थी लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया।

संघ ने मतगणना बहिष्कार की घोषणा की लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से इनकार कर दिया गया। राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग के तमाम दावों के बावजूद कोरोना से बचाव की गाइडलाइन का पालन बस कागज़ों पर हुआ।

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हालात अब ये हो गए  हैं कि  यूपी के सभी 75 ज़िलों में कार्यरत शिक्षक और शिक्षा विभाग के 1621 कर्मचारी अपनी जान गंवा बैठे। संघ का दावा है कि इनमें से अधिकांश लोगों ने चुनाव में ड्यूटी की थी।

संघ ने सूची में कर्मचारी की नाम, पदनाम, पोस्टिंग, मोबाइल नंबर समेत तमाम जानकारियां दी हैं।

इस सूची के अनुसार सबसे अधिक आजमगढ़ जिले में 68 शिक्षकों-कर्मचारियों की मृत्यु हुई है। गोरखपुर में 50, लखीमपुर में 47, रायबरेली में 53, जौनपुर में 43, इलाहाबाद में 46, लखनऊ में 35, सीतापुर में 39, उन्नाव में 34, गाजीपुर में 36, बाराबंकी में 34 शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत हुई है।

राज्य के 23 जिलों में मरने वाले शिक्षकों-कर्मचारियों की संख्या 25 से अधिक है।

शिक्षक संघ ने कहा है कि राज्य सरकार ने वादा किया था कि मतदान व मतगणना में ड्यूटी नहीं करने वाले बीमार शिक्षकों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिला प्रशासन लगातार कार्यवाही कर रहा है।

संघ ने पत्र में नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि कई जिलों में प्राथमिक शिक्षकों की ड्यूटी कोविड कंट्रोल रूम में लगा दी गई है, जिससे उनकी जान जोखिम में हैं और उनके संक्रमित होने का ख़तरा है।

संघ ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत पर बेसिक शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा शोक संवदेना के दो शब्द तक नहीं कहे गए हैं।

शिक्षक संघ ने पत्र में मांग की है कि कोरोना महामारी के दौरान मृत हुए शिक्षकों के परिवार को एक करोड़ की आर्थिक सहायता देने, सभी मृत शिक्षकों के ऐसे आश्रितों को जो बीटीसी, बीएड, डीएलएड की योग्यता रखते हैं उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा टीईटी से छूट देकर सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति करने, जो आश्रित उक्त योग्यता नहीं रखते तथा इंटरमीडिएट अथवा स्नातक हैं, उन्हें लिपिक पद नियुक्ति दी जाए।

इसके अलावा एक अप्रैल 2005 से पूर्व लागू पुरानी पेंशन व्यवस्था के तहत पारिवारिक पेंशन देने, ऐसे सभी शिक्षक जो 60 वर्ष अथवा उससे कम आयु के थे, उनके परिवार को शासनादेश के अनुसार ग्रेच्युटी की धनराशि देने, सभी मृत शिक्षकों तथा कार्यरत शिक्षकों को कोरोना योद्धा घोषित किए जाने, कोरोना संक्रमण के कारण इलाज कराकर स्वस्थ हो चुके शिक्षकों के इलाज पर व्यय हुई धनराशि का भुगतान किए जाने की मांग की है।

साथ ही संघ ने कहा है कि मतदान व मतगणना से बीमारी के कारण अनुपस्थित रहे शिक्षकों व कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही न की जाए।

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