ट्रेड यूनियनों ने बताया बजट को मज़दूर किसान विरोधी, आज पूरे देश में विरोध प्रदर्शन

सेंट्रल ट्रेड यूनियनों और अन्य मजदूर संगठनों ने एक फरवरी को पेश किए गए बजट की कड़ी निंदा की है। संगठनों ने बजट को लेकर तीन फरवरी को पूरे देश में विरोध प्रदर्शन न का ऐलान भी किया।

एआईटीयूसी की जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने कहा कि बजट विरोधाभासी और जमीनी हकीकत से दूर है। यह पूरी तरह से भा्रमक और देष की इकाॅनमी को बर्बाद करने वाला है।

उन्होंने कहा कि यह बजट पहले से परेशान आम लोगों को और ज्यादा मुसीबत में डालेगा।

वित्त मंती ने जैसे कल कहा कि सरकार के आर्थिक सर्वे में पाया गया है कि नए लेबर कोड, मजदूरों के लिए फायदेमंद होंगे, पहले यही बात खेती कानूनों को लेकर कही गई थी।

दरअसल उन्होंने जिस तरह का विनाशकारी पैकेज मई 2020 में पेश किया था, बजट उसी को आगे बढ़ाने वाला है।

ट्रेड यूनियनों ने कहा कि बजट देशी और विदेशी कारपोरेट के लिए लाभकारी है। यह उन्हें बडी छूट देने वाला और टैक्स में राहत देने वाला है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी पर यह कर का बोझ बढाएगा।

जीने के लिए जद्दोजहद कर रहा आम आदमी इस बजट में टैक्स के बोझ सेे और ज्यादा दब जाएगा।

बजट में पब्लिक सेक्टर के बैकों को बेचने, बीमा सेक्टर में एफडीआई को 74 फीसद तक बढ़ाने की नीति को आगे बढ़ाया गया है, दूसरी ओर एलआईसी को बेचने की तैयारी है।

सरकार फायदे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों, पीएसयू को बेचना चाहती है जबकि घाटे में चल रहे पीएसयू को उबारने की बजाय उन्हें बंद करना चाहती है।

मनरेगा का बजट पिछले साल की तुलना में कम कर दिया गया जबकि इस योजना से महामारी के दौरान तमाम लोगों को काम मिला।
बजट में रोजगार पैदा करने के मौकों का जिक्र नहीं किया गया, जिनकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

रोजगार पैदा करने की बजाय स्किल डेवलपमेंट का बजट 35 फीसद कम कर दिया गया।

सरकार पिछले छह साल से दावा कर रही है कि बडे प्रोजेक्ट से युवाओं को रोजगार मिलेगा लेकिन जमीन पर ऐसा होता नजर नहीं आता।

यूनियनों ने कहा कि षहरों में कोरोना महामारी के कारण बडी तादाद में बेरोजगार हुए लोगों के लिए रोजगार योजनाओं की जरूरत थी जिस पर बजट में ध्यान ही नही दिया गया।

स्कूलों में दिए जाने वालेमिडडे मील का बजट भी कम कर दिया गया। बजट में जनता का पैसा लूटकर बैंकों का एनपीए बढाने वालों को बचने का एक और मौका दिया गया है।

लाॅकडाउन के दौरान पूरी तरह संकट में पडने वाली हास्पिटलिटी सेक्टर पर भी सरकार का ध्यान नहीं गया।

एक बार फिर यह मिथक दोहराया गया कि विकास से रोजगार के मौके अपने आप पैदा हो जाएंगे।

प्रवासी मजदूरों को राहत देने वाली कोई नीति नहीं बनाई गई, केवल हाउसिंग लोन लेने वालों को एक साल की मोहलत दे दी गई।

इंफा्रस्ट्रक्चर की योजनाओं के मामले में चुनाव वाले पांच राज्यों को तोहफा जरूर दिया गया लेकिन बाकी राज्यों की उपेक्षा की गई, जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है।

बजट में पिछले बजटों की तुलना में हेल्थ सेक्टर को काफी कम पैसा दिया गया है जबकि जमीनी हालात को देखें तो इस सेक्टर को फिलहाल सबसे ज्यादा मजबूत किया जाना चाहिए था।

इसमें सफाईकर्मियों जैसे कोविड वारियर्स की पूरी तरह उपेक्षा की गई। बजट किसी तरह लोगों की क्रय क्षमता को बढाकर इकाॅनमी को पटरी पर लाने वाला नहीं है।

षिक्षा क्षेत्र पर भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है और एनजीओ की मदद से सौ सैनिक स्कूल खोलने का विचार कई संदेह पैदा करते हैं क्योंकि पहले से चल रहे लगभग 39 सैनिक स्कूल उपेक्षित हैं।

संगठनों ने कहा कि महामारी के दौरान सबसे बुरी मार झेलने वाले एमएसएमई सेक्टर के करोड़ों लोगों का रोजगार छिना लेकिन उसे उबारने पर सरकार ने पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। आंदोलन कर रहे किसानों को बजट से कुछ नहीं मिला।

इससे पहले यूनियनों ने सरकार से मांग की है कि लेबर कोड और बिजली बिल 2020 को खत्म किया जाए निजीकरण को रोका जाए सभी गरीबों को खाना और आर्थिक मदद मुहैया कराई जाए तीन तारीख के विरोध प्रदर्शन में एआईटीयूसी के अलावा इंटक, एचएमएस, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एलपीपफ और यूटीयूएस और अन्य स्वतंत्र फ़ेडरेशन शामिल हैं।

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