यूपी श्रमायुक्त का फरमान, मालिक सैलरी न दे तो न FIR होगी, न कोई कार्यवाही, न कोई कानूनी मदद

ये है उस उत्तरप्रदेश का योगी मॉडल, जिसका डंका भाजपा नेता पीट रहे हैं।

इस मॉडल के अफसरों ने साफ तौर पर पूंजीपतियों का साथ देने का ऐलान कर दिया है, जैसा कि श्रमायुक्त के वायरल वीडियो पता चल रहा है।

श्रम आयुक्त डॉ.सुधीर महादेव बोबड़े एक वायरल वीडियो में अपने मातहत अधिकारियों को निर्देश देते दिख रहे हैं कि, ‘सूबे में अगर कहीं भी किसी फैक्ट्री या कंपनी में मजदूरों या कर्मचारियों के वेतन भुगतान संबंधी कोई शिकायत आती है तो उसमें श्रम विभाग कोई कार्रवाई नहीं करेगा। न एफ़आईआर दर्ज होगी। न ही दूसरी कोई कानूनी पहल। इस सिलसिले में अगर अफ़सर कुछ करना चाहता है तो उसे सबसे पहले उनसे यानी श्रमायुक्त से बात करना होगी।’

इसी वीडियों में वे ये कहते भी दिखाई दे रहे हैं कि वह उसकी (एफआईआर दर्ज करने की) कभी इजाजत नहीं देंगे। यह आदेश मौखिक नहीं बल्कि लिखित तौर पर श्रम विभाग के सभी दफ्तरों के लिए जारी किया गया है। जिसमें कमिश्नर से लेकर एडिशनल कमिश्नर और तमाम पदाधिकारी भी शामिल हैं।’

श्रम आयुक्त का मजदूरों के बारे में बयान असल में उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार की मानसिकता का ही हिस्सा है। क्या सरकार के इशारे के बगैर कोई अफसर इस तरह की बात भी कर सकता है? कोई विरोध की आवाज न उठे इसलिए एस्मा लगाने के साथ ही महामारी एक्ट व आपदा अधिनियम के कार्रवाई के आदेश भी योगी सरकार ने हाल ही में दिए हैं।

कानूनी तौर पर पेंच फंसने की वजह से योगी सरकार 12 घंटे काम के निर्णय को वापस ले चुकी है, लेकिन हकीकत में ऐसा कराने की पूरी तैयारी श्रम विभाग के बयानों से दिखाई दे रही है। ऐसा होगा तो श्रम विभाग ही नहीं सुनेगा, इसके संकेत दिए गए हैं श्रम आयुक्त के बयान ने।

इससे पहले उत्तरप्रदेश के बरेली जिले के डीएम नीतीश कुमार ने मजदूरों के पैदल जाने वाले समूह को बैठाकर केमिकल फायर ब्रिगेड के पंप से धोने को जायज ठहराया था। इसके बाद आगरा के डीएम ने सूटकेस पर खींचकर ले जाती महिला के मामले को बचपन की शरारत और आनंद से जोडक़र बयान दिया था।

उत्तरप्रदेश के ही बदायूं जिले में पैदल जाते मजदूरों को पुलिस ने बैठकर जाने को मजबूर किया। यही नहीं, बॉर्डर सील करके घंटों भूखे प्यासे मजदूरों पर लाठीचार्ज और पिटाई की तमाम घटनाएं भी प्रकाश में आ चुकी हैं।

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