उत्तराखंड बना 3 साल के लिए श्रम क़ानून रद्द करने वाला नया राज्य, परमानेंट रोज़गार पर लटकी तलवार

workers protest

राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि राज्यों के बाद उत्तराखंड सरकार ने भी अपने यहां तीन साल के लिए श्रम क़ानूनों को रद्द कर दिया है।

राज्य की बीजेपी सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 1000 दिनों के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम (इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट) को स्थगित कर दिया है।

स्थानीय अख़बारों के मुताबिक अध्यादेश पर राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।

कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने मीडिया को बताया कि राज्य में ऐसे नए उद्योग जो एक हजार दिन के भीतर उत्पादन शुरू कर देंगे, उनके लिए एक हजार दिन तक श्रम कानूनों के कई प्रावधानों में छूट रहेगी।

इसके साथ ही कारखाना अधिनियम में धारा पांच ए और औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36 सी को जोड़ा गया। अधिनियम में ये दोनों नए प्रावधान केंद्र की मोदी सरकार के निर्देश पर बनाए गए हैं।

इन दोनों संशोधनों के बाद न तो उद्योगों पर कारखाना अधिनियम और न ही औद्योगिक विवाद अधिनियम लागू होगा।

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार की शह पर श्रम क़ानूनों को केंद्रीय स्तर पर भी बदले जा रहे हैं और राज्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है कि वो अपने स्तर पर क़ानून को ख़त्म कर दें।

uttarakhand labor department

300 से ज्यादा कर्मचारियों पर छंटनी की छूट

ऐसे उद्योग जहां कर्मचारियों की संख्या 300 से ज्यादा है, वहां उद्योगों को कर्मचारियों की छंटनी की खुली छूट होगी।

इसके लिए उन्हें कर्मचारियों को तीन महीने का नोटिस देना होगा। नोटिस न देने पर कर्मचारियों को तीन महीने का वेतन देना होगा।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की कई कंपनियों में पिछले कई सालों से विवाद चल रहा है।

अगर त्रिवेंद्र सरकार के इस मनमाने फ़ैसले को चुनौती नहीं दी जाती है और ये संशोधन मंजूर हो जाता है तो कंपनयों में ताबड़तोड़ छंटनी शुरू हो सकती है।

ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि सरकार ऐसा करके कोरोना जैसी महामारी के समय भी लोगों का रोज़गार छीन रही है, जबकि उसे रोज़गार के नए अवसर पैदा करने चाहिए।

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