समझौते के बाद भी महाराष्ट्र रोडवेज़ कर्मचारी हड़ताल पर क्यों?

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भारत के सबसे बड़े परिवहन निगमों में से एक, महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) के कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा बीते 27 अक्टूबर से ही आंदोलनरत है और दो दिन पहले शुरू हड़ताल अब व्यापक रूप ले रही है।

रोडवेज़ कर्मचारियों का ये आंदोलन 8 नवंबर को एक नए चरण में पहुंच गया जब हड़ताल के आह्वान पर 250 डिपो में से 225 डिपो बंद मिले।

निगम ने मंगलवार को 376 कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया, जिन पर हड़ताल में शामिल होने और अन्य कर्मचारियों को हड़ताल में शामिल होने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है।

त्योहारी सीजन के कारण इस हड़ताल से राज्य सरकार पर अधिक दबाव है। इस हड़ताल पर बाम्बे हाईकोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई थी जिसमें MSRTC कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारियों के रूप में मानने की मांग पर निर्णय लेने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन करने का आदेश दिया गया।

हड़ताल क्यों हुई?

घाटे की वजह से वेतन में देरी और पिछले एक साल में 30 से अधिक कर्मचारियों की आत्महत्या के बाद कई यूनियनों ने 27 अक्टूबर को भूख हड़ताल का आह्वान किया।

यूनियनों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने चार प्रमुख मांगें रखीं, जिनमें महंगाई भत्ता, मकान किराया भत्ता और वेतन वृद्धि के साथ MSRTC का राज्य सरकार में विलय की मांग शामिल है।

हालांकि राज्य के परिवहन मंत्री अनिल परब ने 25 अक्टूबर को महंगाई भत्ते को पांच प्रतिशत बढ़ाकर मौजूदा 12 प्रतिशत से 17 प्रतिशत कर दिया था, लेकिन यूनियनों की मांग डीए को 28 प्रतिशत करने की थी और इस मांग को लेकर 27 अक्टूबर को आंदोलन शुरू कर दिया गया। यूनियन का कहना है कि उन्हें राज्य सरकार के कर्मचारियों के बराबर डीए मिलना चाहिए।

बीते 27 अक्टूबर की हड़ताल के बाद 28 अक्टूबर को यूनियन नेताओं की एक्शन कमेटी और परिवहन मंत्री परब के बीच बैठक हुई जिसमें विलय के मुद्दे को छोड़कर सभी तीन मांगों को स्वीकार कर लिया गया। इस दौरान यूनियन नेताओं ने हड़ताल वापस लेने पर सहमति दे दी।

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फिर हड़ताल जारी क्यों रही?

हालांकि यूनियन नेताओं के समझौते के बावजूद कर्मचारियों का एक हिस्सा काम पर नहीं लौटा और विलय की मांग के साथ हड़ताल जारी रखी।

अब कर्मचारियों का कहना है कि विलय उनकी प्रमुख मांग और अगर ये हल हो जाती है तो बाकी तीन मांगें अपने आप हल हो जाएंगी।

इससे ज़ाहिर है कि बैठक में मुख्य मांग को छोड़ बाकी मांगों पर समझौता कर लेने से कर्मचारी प्रमुख यूनियनों से नाराज़ और निराश थे, इसलिए ये हड़ताल टूटी नहीं।

हड़ताल पर कोर्ट की टिप्पणी

MSRTC ने औद्योगिक अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसने हड़ताल को अवैध घोषित किया था और हड़ताल पर प्रतिबंध वाला आदेश पारित किया था। बाद में दोनों प्रमुख यूनियनों ने 3 नवंबर की मध्यरात्रि से हड़ताल की घोषणा की, जिसके बाद MSRTC ने एक बार फिर बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) के सभी कर्मचारियों को अगले आदेश तक हड़ताल पर न जाने का आदेश दिया था।

अदालत ने कहा कि इस कदम से उन लोगों को “कठिनाई” होगी, जिन्होंने दिवाली के दौरान राज्य परिवहन की बसों से यात्रा करने की योजना बनाई है। हालांकि रविवार व सोमवार की दरम्यानी रात यानी 7-8 नवंबर से कर्मचारी एक बार फिर हड़ताल पर चले गए।

आठ नवंबर को HC ने राज्य को MSRTC कर्मचारियों को राज्य सरकार के कर्मचारियों के रूप में मानने की मांग पर निर्णय लेने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन करने का आदेश दिया है।

एमएसआरटीसी क्या है?

MSRTC एक राज्य के स्वामित्व वाला परिवहन निगम है जो राज्य के अंदर शहरों और गांवों के बीच और अंतर-राज्यीय बसें चलाता है। इसके पास राज्य भर में 16,000 बसों और 96,000 कर्मचारियों का बेड़ा है।

MSRTC प्रतिदिन लगभग 68 लाख यात्रियों को ढोती है और महामारी से पहले वो प्रतिदिन लगभग 22-24 करोड़ रुपये कमाती थी।

लेकिन लॉकडाउन के बाद से उसकी कमाई घट कर 12 करोड़ रुपये प्रतिदिन हो गई है और इसकी वजह है कि यह प्रति दिन 24 से 28 लाख लोगों को ही ढो पा रही है। इसकी वजह से इसे भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

अधिकारियों का दावा है कि MSRTC का कुल नुकसान, जो महामारी से पहले 3,500 करोड़ रुपये था, 9,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।

इससे निगम के लिए अपनी परिचालन लागत को पूरा करना और अपने 96,000 कर्मचारियों के वेतन का समय पर भुगतान करना मुश्किल हो गया है।

राज्य सरकार ने MSRTC को पिछले डेढ़ साल में तीन बार वेतन देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है।

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