स्पेन ने किया मज़दूरों के लिये हफ्ते में 4 दिन काम का प्रावधान, भारत में क्यों बढ़ाये जा रहे काम के घंटे?

workers in factory

सालों के लंबे इंतजार के बाद स्पेन के मैड्रिड में एक रेस्टोरेंट में काम करने वाली डेनी डे वेरीयो का थियेटर कोच बनने का सपना पूरा होने जा रहा है।

डेनी बताती है कि उनका सपना था कि वो बच्चों को थियेटर की ट्रेनिंग दे। पिछले साल का लॉकडाउन मेरे लिये एक भयावह सपने जैसा रहा। स्पेन की अर्थव्यवस्था भी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही थी। लेकिन स्पेन के रेस्टोरेंटों ने काम में एक दिन की कटौती कर मेरे सपनों को पूरा करने का मौका दिया।

डेनी ने आगे बताया कि काम में एक दिन की कटौती और समान वेतन ने खर्चों की फ्रिक छोड़ उन्हें अपने परिवार और दोस्तों के साथ भी समय बिताने का मौका दिया है।

लॉकडाउन के अनुभव साझा करते हुए डेनी ने बताया कि ” बहुत बुरा समय था। ऐसा लगता था कि समाज ने हम जैसे परिवारों से मुंह मोड़ लिया है। इतने साल जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी हम दाने-दान को तरस रहे थे। ऊपर से मैड्रिड जैसा महंगा शहर। ”

स्पेन ने यूरोपिय यूनियन से कोरोना रिकवरी फंड से मिले 50 मिलीयन यूरो के आर्थिक मदद को 200 से ज्यादा मध्यम आकार के कंपनियों को अपने वर्कफोर्स  को नये तरीके से रिसाइज करने के लिये दे दिये है।

स्पेन ने प्रयोग के तौर पर अगले तीन साल तक श्रमिकों के लिए 32 घंटे साप्ताहिक काम का ऐलान किया है। ऐसा करने वाला स्पेन यूरोप का पहला देश है।

वहां कि सरकार का मानना है कि ऐसा करने से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा और साथ ही लोग छुट्टियों का उपयोग घुमने-फिरने में करेंगे,जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था को भी रफ्तार मिलेगी।

इसके तहत पहले साल तक सरकार सभी अतिरिक्त श्रमिकों के वेतन का खर्च उठायेगी फिर दूसरे और तीसरे साल अपनी भागीदारी को क्रमश 50 फीसदी और 25 फीसदी कर देगी।

लेकिन इसके लिए शर्त ये रखी गई है कि फर्म श्रमिकों के वेतन और उनके कॉन्ट्रैक्ट के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे।

इस फैसले पर उठ रहे सवालों पर सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि ऐसा नहीं है कि फंड का उपयोग स्पेनवासियों के छुट्टी या पिकनीक मनाने पर किया जा रहा है बल्कि सरकार के इस कदम से पर्यटन पर आधारित स्पेन की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी साथ ही कंपनियों के बीच भी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। जो आखिर में हर लिहाज से हमारे अर्थव्यवस्था को फायदा ही पहुंचायेगा।

कैंब्रिज जर्नल ऑफ इकोनामिक्स फंड द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इससे पहले 2017 में साप्ताहिक काम के घंटो को 40 से घटाकर 32 किये जाने से 5,60,000 नये रोजगार के साथ-साथ जीडीपी में भी 1.5 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी।

इसके साथ ही महिला श्रमिकों जो ज्यादातर पार्ट टाइम जॉब करती है कि सैलरी में भी 3.7 % की बढ़ोतरी हुई थी।

सॉफ्टवेयर कंपनी डेलसोल जो स्पेन के दक्षिणी भाग में स्थित है ने पिछले साल 4 लाख यूरो अपने कार्यबल को कम करने पर खर्च किये। जिसके बाद भी कंपनी के सेल्स में 20 फिसदी वृद्धि हुई और साथ ही कर्मचारियों के अनुपस्थिती भी कमी आई।

वही सरकार के आलोचकों का कहना है कि सरकार के इस कदम से पहले से ही जूझ रही अर्थव्यवस्था स्पेनिश सिविल वॉर के समय से भी बुरे दौर में पहुंच जायेगी। कई ऐसे सेक्टर है जिनमें काम के घंटे घटाने की कोई जरुरत ही नहीं है।

मालूम हो कि पिछले साल कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन के बाद भारत ने भी अपने इतिहास के सबसे बुरे रिवर्स माइग्रेशन को देखा। देश के कामगारों ने एक भयावह मंजर को झेला।

देश ने यह भी देखा कि कैसे लॉकडाउन के बाद दुबारा खुले कारखानों-कंपनियों में मज़दूरों से 12-12 घंटे काम कराये गये।

अब तो नये श्रम कानून भी लागू होने वाले जिसके तहत मज़दूरों से ज्यादा काम लिये जाने को कानूनी जामा पहना दिया गया है।

एक तरफ स्पेन जैसे देश कोरोना राहत फंड का इस्तेमाल कर मज़दूरों को ये राहत दे रहे है कि वो हफ्ते में सिर्फ 4 दिन ही काम करें। वही हमारे देश में मज़दूरों के लिये स्थितियां और खराब बनाई जा रही हैं।

पूरी दुनिया में अक्सर इस बात पर सवाल खड़े किये जाते रहें है कि क्या कारण है कि जब उत्पादन इतना बढ़ गया फिर भी मज़दूरों से सप्ताह में 6 से 7 दिन तक काम लिये जा रहे है,उनकी सैलरी में कटौती की जा रही हैं।

(एपी न्यूज की खबर से साभार)

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