जा रहे हम…

– संजय कुंदन- जैसे आए थे वैसे ही जा रहे हम यही दो-चार पोटलियां साथ थीं तब भी आज भी हैं और यह देह लेकिन अब आत्मा पर खरोंचें कितनी …

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pakistan poet Atif Tauqeer @WorkersUnity

भूख गद्दार है, लफ़्ज़ गद्दार हैं, सच किसी दूसरे मुल्क का कोई जासूस है

(पाकिस्तान के जाने माने लेखक और कवि अतीफ़ तौकीर की ये नज़्म आज के वक्त को बयां करते हैं। ट्विटर पर मिली इस कविता को तर्ज़ुमा करके हिंदी में पेश …

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सू लिज्ही की कविताएंः ‘मालूम पड़ता है, एक मुर्दा  अपने ताबूत का ढक्कन हटा रहा है’

ठीक चार साल पहले मज़दूर वर्ग के कवि सू लिज्ही को व्यवस्था ने आत्महत्या करने पर मज़बूर किया था। 30 सितम्बर 2014 को चीन के मशहूर शेनजेन औद्योगिक क्षेत्र में …

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rico workers

‘मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती’

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है सबसे ख़तरनाक नहीं होता …

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