“कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया?”, मज़दूरों की एकता से पैदा हुए डर को मिला स्वर- नज़रिया

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2024/04/gudgaon-protest.jpg

By अजीत सिंह

हरियाणा राज्य के मानेसर क्षेत्र में मारूति की वेंडर कंपनी बेलसोनिका ऑटो कम्पोनेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में प्रबंधन, वर्ष 2021 से 10-15 वर्षों से कार्य कर रहे श्रमिकों को फर्जी बताकर छंटनी करने की कोशिश कर रहा है।

छंटनी के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को और मजबूत तथा व्यापक बनाने के लिए बेलसोनिका यूनियन ने बेलसोनिका फैक्ट्री में कार्य करने वाले ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता दी।

यूनियन ने अपनी वर्गीय एकता को व्यवहार में लागू कर प्रबंधन द्वारा छंटनी के हमले का मुकाबला किया।

मजदूरों की यह वर्गीय एकता बेलसोनिका प्रबंधन को रास नहीं आई और जब वह अपने तमाम साज़िशों के बावजूद अपनी यूनियन के नेतृत्व में बेलसोनिका के मजदूरों का छंटनी के ख़िलाफ़ संघर्ष को रोक नहीं पाई तो उसने श्रम विभाग से गठजोड़ कर बेलसोनिका यूनियन के पंजीकरण को इस आधार पर खारिज करवा दिया कि बेलसोनिका यूनियन ने ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता दी है।

आपको यह भी बता दें कि इससे पूर्व भी बेलसोनिका यूनियन गठित करने का दो साल का संघर्ष वर्ष 2014-16 के बीच चला था।

इसमें प्रबंधन ने मजदूरों के संगठित होने के अधिकार को स्वीकार नहीं किया था और लगभग 150 मजदूरों को (स्थाई, ट्रेनिंग एवं ठेका) फैक्ट्री से निकाल दिया था। प्रबंधन की इस मनमानी ने ख़िलाफ़ मजदूरों द्वारा लगभग दो साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी गई जिसमें अंत में मजदूरों को जीत हासिल हुई।

ये भी पढ़ेंः-फ़लस्तीन और इज़राइल का मज़दूर वर्ग

क़ानूनी लड़ाई

इस कानूनी लड़ाई में साफ तौर पर एक चीज निकल कर सामने आई कि फैक्ट्री में मजदूर यूनियन बनाना चाहते थे जिसकी वजह से प्रबंधन ने मजदूरों को निकाल दिया था। दो साल की इस लड़ाई में अतिरिक्त श्रमायुक्त, गुड़गांव ने मजदूरों के हक में फैसला सुनाते हुए उन्हें सवेतन काम पर पुनः बहाल करने का आदेश दिया।

लेकिन अतिरिक्त श्रमायुक्त, गुड़गांव के फैसले के ख़िलाफ़ बेलसोनिका प्रबंधन माननीय उच्च न्ययायलय, चंडीगढ़ गया। माननीय उच्च न्यायलय में भी बेलसोनिका प्रबंधन को हार का सामना करना पड़ा और उच्च न्यायलय ने अतिरिक्त श्रमायुक्त के फैसले को बरकरार रखा।

माननीय उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर बेलसोनिका के निकाले गए श्रमिक श्रम विभाग के अधिकारियों के पास लागू करवाने के लिए गए। लेकिन न तो प्रबंधन फैसले को लागू करने के लिए तैयार तथा ना ही शासन-प्रशासन इस फैसले को प्रबंधन द्वारा लागू करवाए जाने के लिए तैयार थे।

जब मज़दूरों ने श्रम विभाग और शासन-प्रशासन का यह रवैया देख लिया तब मजदूरों के सामने एक ही रास्ता बचा वह था अपनी वर्गीय एकता को मजबूत करते हुए इन फैसलों को लागू करवाने के लिए संघर्ष करें।

अंततः अपनी यूनियन के नेतृत्व में मजदूरों ने संघर्ष करते हुए सभी फैसलों को लागू करवाया और कंपनी में वापस आए।

वर्ष 2014 से पहले बेलसोनिका फैक्ट्री में 89 स्थाई श्रमिक थे। यूनियन ने अपनी वर्गीय एकता के दम पर 89 स्थाई श्रमिकों से 700 स्थाई श्रमिकों कि संख्या तक पहुँचाया।

यूनियन कि यह जीत वर्गीय एकता से ही संभव हो पाई। यूनियन कि यही वर्गीय एकता प्रबंधन के लिए सिर दर्द बनी हुई थी।

यूनियन के पंजीकरण के रद्द होने के बाद प्रबंधन ने श्रमिकों के संघर्ष पर वैचारिक हमला शुरू किया। उसने मजदूरों की एकता तोड़ने के लिए मजदूरों के बीच बेलसोनिका यूनियन के ख़िलाफ़ यह कह कर बदनाम करने की कोशिश की कि “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”?

प्रबंधन का दुष्प्रचार कब शुरू हुआ?

इससे पूर्व भी बेलसोनिका प्रबंधन, एडीसी गुरुग्राम के साथ दिनांक 21 मार्च 2023 की वार्ता में यह कह चुका था कि यह यूनियन कम्युनिस्ट/ कॉमरेडों की यूनियन है। यूनियन ने जब वर्ष 2021 में ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता दी थी तभी से प्रबंधन द्वारा यूनियन के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार शुरू कर दिया था।

प्रबंधन द्वारा यूनियन पर किए गए इस वैचारिक हमले-“कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया?”- को प्रश्नवाचक में रखकर इसका खंडन करना बहुत जरूरी हो गया है। यह विशुद्ध मालिक वर्ग का विचार है की “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”?

बेलसोनिका प्रबंधन ने श्रम विभाग के साथ मिलकर बेलसोनिका यूनियन का पंजीकरण रद्द करवा दिया जिससे साफ जाहिर होता है कि यह यूनियन बेलसोनिका प्रबंधन ही नहीं बल्कि मारुति प्रबंधन के लिए भी सर दर्द बनी हुई थी।

लेकिन प्रबंधन भी इस बात को भली-भांति समझता था कि महज पंजीकरण रद्द करवा देने से वह इस यूनियन को उसके संघर्ष से डिगा नहीं सकता था, क्योंकि यह यूनियन मात्र पंजीकरण के दम पर छंटनी की इस लड़ाई को आगे नहीं बढ़ा रही थी बल्कि वह इसे अपनी वर्गीय एकता के दम पर आगे बढ़ा रही थी।

बेलसोनिका यूनियन द्वारा अपनी वर्गीय एकता के दम पर चलाया जा रहा ये संघर्ष न सिर्फ बेलसोनिका के मजदूरों का संघर्ष था बल्कि यह इस औद्योगिक इलाके में अन्य मजदूरों को भी प्रेरणा दे रहा था।

अतः बेलसोनिका प्रबंधन के लिए जरूरी था कि वह यह हमला इस वर्गीय एकता पर करे और मजदूरों के बीच विभाजन पैदा करे। इसी “फूट डालो राज करो” की शासक वर्गीय नीति का इस्तेमाल करते हुए बेलसोनिका प्रबंधन ने प्रचार करना शुरु किया कि “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”?

यानि बेलसोनिका यूनियन ने ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता देकर यूनियन को बर्बाद कर दिया। इस हमले से बेलसोनिका ने एक तो मजदूरों के बीच यूनियन को बदनाम करने की कोशिश की तो दूसरी ओर स्थाई मजदूरों और ठेका मजदूरों के बीच विभाजन पैदा कर इस वर्गीय एकता को चोट पहुंचाने की कोशिश की।

बेलसोनिका प्रबंधन का मजदूरों के ऊपर वैचारिक हमला है की यूनियन तो केवल परमानेंट/स्थाई मजदूर की ही होती है और यूनियन को मलिक के साथ मिलकर चलना होता है। अगर कोई नेतृत्व यूनियन में वर्गीय एकता की बात करेगा तो उसे यूनियन का यही हश्र होगा।

बेलसोनिका प्रबंधन के लिए यह यूनियन और इसका संघर्ष इसलिए भी सर दर्द बना हुआ था क्योंकि यह यूनियन अब तक यूनियनो की सिर्फ स्थाई मजदूरों के लिए लड़ने की परंपरा को तोड़ मजदूरों को स्थाई और ठेके के विभाजन से उपर उठकर उन्हें वर्ग के बतौर संगठित कर रही थी। यह वर्गीय एकता मालिकों के लिए उनके मुनाफे को बढ़ाने की राह में एक बढ़ा अवरोध बन रहा था। इसलिए भी प्रबंधन के लिए यह जरूरी था कि वह ना सिर्फ यूनियन की वैधानिकता को रद्द करे बल्कि कॉमरेडो ने सब बर्बाद कर दिया जैसे भ्रम फैलाकर मजदूरों को वर्ग के बतौर संगठित होने से रोके।

मलिक वर्ग का यह वैचारिक हमला की “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”? इतना प्रभावशाली व व्यापक है की बेलसोनिका के बहुत से मजदूर साथी (खासकर जो पहले कभी यूनियन नेतृत्व में रहे हैं) भी यही भाषा बोल रहे हैं कि “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”?

यहां तक इस वैचारिक हमले से अन्य यूनियन भी प्रबंधन की साजिश का शिकार हो गई। क्योंकि जब यूनियन का पंजीकरण रद्द किया गया तो किसी भी फैक्ट्री यूनियन व ट्रेड यूनियन ने सक्रिय कार्रवाई नहीं की और ना ही बेलसोनिका यूनियन के 156 दिन तक चल धरने पर सक्रिय भागीदारी की।

“कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”?

“कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”? के प्रबंधन के वैचारिक हमले से एक बात तो साफ होती है कि मालिक वर्ग, मजदूर वर्ग व उसके सच्चे कॉमरेडों से आज भी डरता है। उसको पता है कि सच्चे कॉमरेड अपने वर्ग कि एकता के लिए अपनी जान कि बाजी लगा देते हैं। सच्चे कॉमरेडों के भाषणों व व्यवहार में समानता होगी।

आइए बात करते हैं कि आखिर वे कौन से कॉमरेड हैं जिनसे न सिर्फ बेलसोनिका प्रबंधन बल्कि पूरी दुनिया का शासक वर्ग भयभीत है और जिसकी वजह से वह आम मजदूर-मेहनतकश आबादी को दिग्भ्रमित करने के लिए “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”? जैसे अफवाह फैला रहे हैं।

“कॉमरेड” शब्द स्पैनिश भाषा से आता है जिसका अर्थ है संघर्ष में साथ लड़ने वाला साथी। कॉमरेड शब्द को प्रचलित किया सोवियत संघ के मजदूर क्रांति ने जहां से यह शब्द ऐसे लोगों के लिए प्रचलित हुआ जो मजदूर-मेहनतकश वर्ग के लिए संघर्ष करने वालों के लिए संघर्ष करते हैं। और यही वजह है जिससे इस पूरी दुनिया का पूंजीपति वर्ग इस शब्द से डरता है। और हर मौके पर कॉमरेड शब्द को बदनाम करने की साजिश करता रहता है। क्योंकि वह इस बात से भली-भाति परिचित है उसके द्वारा बनाए लूट और शोषण पर टिके निजाम को यदि किसी से खतरा है तो वह मजदूर मेहतनकश आबादी की वर्गीय एकता से है जिसको बनाने का काम इन्हीं कॉमरेडों द्वारा किया जाता है।

यह कॉमरेड आज भी पूजींवादी शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मजदूर-मेहतनकश आबादी को गोलबंद करने के अपने शिक्षकों के सिद्धांतों पर चलते हुए उन्हें व्यवहार में लागू कर रहे हैं। वर्ग संघर्ष के लिए जरूरी है अपने वर्ग की एकता। बेलसोनिका प्रबंधन का यह वैचारिक हमला बेलसोनिका मजदूरो की चेतन को कुंद करने के लिए किया जा रहा है। लगभग 3 वर्षों तक बेलसोनिका यूनियन अपनी वर्गीय एकता कायम कर प्रबंधन के छटनी के हमले को रोकने में कामयाब रही।

पूरी दुनिया में 8 घंटे काम का नारा देने वाले वह मजदूर/ कॉमरेड ही थे। मई दिवस का शानदार इतिहास मजदूर/ कॉमरेडों की शहादत से जुड़ा हुआ है। मजदूरों के श्रम कानून से लेकर जितने भी जनवादी अधिकार आज मजदूर मेहनतकश जनता को मिले हैं, यह सभी अधिकार “लाल झंडे” की बदौलत हासिल हुए हैं। जिस “लाल झंडे” को मजदूर/ कॉमरेडों ने आज तक उठाया हुआ है। यहां तक की महिलाओं को वोट देने तक का अधिकार भी “लाल झंडे” के तले सबसे पहले दिया गया।

“लाल झंडे” ने पूंजीवाद को मात दी तथा 1917 में रूस में आए मजदूर राज ने यह साबित किया कि मजदूर पूंजीपतियों से बेहतर व्यवस्था चला सकता है। बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, अशिक्षा, कुपोषण, भुखमरी, वेश्यावृत्ति इत्यादि बीमारियों को पैदा कर मजदूर वर्ग के श्रम की लूट पर टिकी इस व्यवस्था को अगर मात दी है तो वह था “लाल झंडा” यानी मजदूर राज/ समाजवाद।

तब से शासक वर्ग “लाल झंडा” यानी उन कॉमरेडों के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार व वैचारिक हमला लगातार करता आया है जो वर्गीय एकता कायम कर पूंजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ युद्ध का ऐलान करते हैं।

यहां थोड़ी बात गुड़गांव औद्योगिक इलाके की यूनियनों की स्थिति के बारे में भी कर ली जाए। आज के समय यूनियनों की स्थिति बेहद निराशाजनक है। एक समय में मजदूर संघर्षों से पैदा हुई यूनियनें धीरे-धीरे पूंजीपति वर्ग के साथ सटती गईं और अपनी क्रांतिकारी विरासत को पीछे छोड़ उनका संघर्ष अब मात्र वेज सेटलमेंट तथा प्रबंधन के साथ एडजस्टमेंट तक रह गया है।

एक फैक्ट्री के भीतर कार्य करने वाले ठेका श्रमिकों की बात तो दूर आज यूनियन अपने स्थाई श्रमिकों के ऊपर हो रहे छटनी के हमलों का मुकाबला तक नहीं कर सकने की स्थिति में है। इसका कारण है कि पिछले लंबे समय से यूनियने केवल स्थाई श्रमिकों की यूनियने बनकर रह गई हैं। यूनियनों ने अपने ही ठेका श्रमिकों को यूनियन से वंचित रखा। मालिक के साथ मिलकर चलो की नीति पर यूनियनों ने लगातार काम किया।

आज जब शासक वर्ग का मजदूर वर्ग पर हमला हो रहा है तो यह सहयोग की यूनियन मालिकों से लड़ने में असमर्थ नजर आती हैं। क्योंकि इन यूनियनो के पास लड़ने की नैतिक हिम्मत भी नहीं है।

आज जरूरत है कि मई दिवस की क्रांतकारी विरासत को एक बार फिर से याद किया जाए और अपने बीच के तमाम विभाजनों को भूल खुद को अपने वर्ग के बतौर संगठित होकर “कॉमरेडों ने सब बर्बाद कर दिया”? के शासक वर्ग के वैचारिक हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया जाए।

अपनी वर्गीय एकता के दम पर हम न सिर्फ शासक वर्ग के इस वैचारिक हमले का जवाब दे सकते हैं बल्कि इस पूंजीवादी शोषण-उत्पीड़न के विरुद्ध अपने संघर्ष को और मजबूत कर सकते हैं।

“सर्वाहारा वर्ग के पास खोने के लिए अपनी जंजीरों के अलावा कुछ नहीं है और जीतने के लिए पूरी एक दुनिया है.” -कम्युनिस्ट घोषणापत्र

(लेखक बेलसोनिका यूनियन (1983) के महासचिव हैं। इस लेख में दिए गए विचार वर्कर्स यूनिटी के नज़रिये को प्रस्तुत नहीं करते, ये लेखक के खुद के हैं।)

(यह लेख लेबानी वेबसाइट अल मायादीन में 19 अप्रैल को प्रकाशित हुआ था, जिसे अभिनव कुमार ने हिंदी में किया है। इस लेख में दिए गए विचार वर्कर्स यूनिटी के विचार को प्रदर्शित नहीं करते, बल्कि ये लेखक के हैं। )

Do read also:-

https://i0.wp.com/www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/04/Line.jpg?resize=735%2C5&ssl=1

Subscribe to support Workers Unity – Click Here

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.