लखीमपुर खीरी कांडः क्या दंगे का डर दिखा कर कराया गया समझौता?
By संदीप राउज़ी
लखीमपुर खीरी घटना और आनन फानन में हुए समझौते पर कुछ ऐसे अनुत्तरित सवाल हैं जिसे लेकर बीजेपी की राज्य और केंद्र सरकार के साथ साथ किसान नेता राकेश टिकैत को घेरा जा रहा है।
लखीमपुर खीरी तक सिर्फ एक किसान नेता राकेश टिकैत को रातों रात पहुंचने देना और 12 घंटा पूरा होते होते समझौता घोषित कर देना, जबकि बाकी किसान नेताओं को रास्ते में रोक देना, विपक्ष के नेताओं को नज़रबंद कर लेना और लखीमपुर खीरी तक हर कीमत पर न पहुंचने देना, कुछ लोगों का कहना है कि ये सारी चीजें योगी सरकार और राकेश टिकैत के बीच एक अंडरस्टैंडिंग की ओर ही इशारा करती हैं।
समझौते की आलोचना करने वालों का मुख्य तर्क है कि न्यूनतम मांग भी बिना मनवाए योगी सरकार के सामने टिकैत ने बहुत ज़ल्दबाज़ी में घुटने टेक दिए। वे इसकी वजह जानना चाहते हैं।
हालांकि जिस समझौते को सिर्फ राकेश टिकैत की अकेले की पहलकदमी के तौर पर देखा जा रहा है, उसे संयुक्त किसान मोर्चा का पूरा समर्थन हासिल है, इसे खुद शीर्ष किसान नेतृत्व ने स्वीकार किया है।
घटना के तीन दिन गुजर जाने के बाद भी पूरे घटनाक्रम की सभी कड़ियां नहीं जुड़ पाई हैं। अभी तक ये नहीं पता चल पाया है कि फायरिंग के बाद गाड़ी से किसानों को रौंदा या जैसा दावा किया जा रहा है कि मंत्री का बेटा आशीष मिश्रा को पकड़े जाने के बाद किसान को गोली मारी गई। किसान नेता तेजिंदर विर्क जो कि गंभीर रूप से घायल हैं और मेदांता, दिल्ली में इलाज़ चल रहा है, उनका कहना है कि तीन लोगों को पकड़ कर पुलिस के हवाले किया गया था।
बुधवार को एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक पुलिस अधिकारी लाउडस्पीकर हाथ में लेकर एक पकड़े गए शख़्स से पूछताछ कर रहा है। इस शख़्स को पकड़कर पुलिस के हवाले किया गया था।
किसानों के अलावा जिन अन्य चार लोगों के मारे जाने की ख़बर है जिसमें एक पत्रकार भी शामिल है, उनकी मौत कैसे हुई। पुलिस को सुपुर्द किए गए लोग कहां हैं, उनपर कौन सी धाराएं लगी हैं या उनकी ओर से क्या औपचारिक बयान आया है, किसी चीज़ का कोई पता नहीं है।
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काउंटर एफ़आईआर में बीजेपी कार्यकर्ता और घटना में मारे गए शुभम मिश्रा के परिजनों की ओर से तेजिंदर विर्क और अन्य लोगों पर हत्या करने का मुकदमा दर्ज कराया गया है, जबकि विर्क जिंदगी मौत से अस्पताल में जूझ रहे हैं, उन पर खुद जानलेवा हमला हुआ है।
जिन चार किसानों के शव का पोस्टमार्टम हुआ उसमें एक के परिजनों ने रिपोर्ट से असहमति दर्ज कराई थी। परिजनों का कहना है कि गोली मारने से जान गई है, इसके बाद दोबारा पोस्टमार्टम कराया गया। इसलिए बुधवार सुबह तक सिर्फ तीन शवों का ही अंतिम संस्कार हो पाया था।
समझौता वार्ता के दौरान संयुक्त किसान मोर्चे के 9 नेताओं की एक टीम लगातार राकेश टिकैत से सम्पर्क में थी, ऐसा मोर्चा का कहना है। इस टीम ने राकेश टिकैत को क्या सुझाव दिए थे और क्या टिकैत उन सुझावों को समझौते में शामिल करवा पाए?
और सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये समझौता दंगा भड़कने, हिंदू सिख के बीच ध्रुवीकरण बढ़ने का भय दिखा कर करवाया गया?
ये सवाल इसलिए आ रहा है क्योंकि अभियुक्त मंत्री अजय मिश्रा टेनी, लखीमपुर खीरी का कुख्यात दबंग चेहरा है, जोकि नेपाल से सटा बॉर्डर इलाका है और जहां थारू जनजाति के लोगों की ठीक ठाक संख्या है और जिनका स्थानीय किसान आबादी से जोकि अधिकांश बड़े सिख किसान हैं, लंबे समय से अंतरविरोध है। वो इस इलाके में सिख बनाम हिंदू का ध्रुवीकरण करा कर एक तनाव की स्थिति पैदा कर सिख किसानों आबादी को अलग थलग करना चाहता रहा है।
ये बात अभियुक्त मंत्री अजय मिश्रा टेनी के उस कार्यक्रम के दौरान दिए गए भाषण से पता चलती है जिसमें वो परोक्ष रूप से इन किसानों को लखीमपुर खीरी से बाहर फेंकने की धमकी देता है।
शहीद गुरविंदर का अंतिम संस्कार।
किसानों और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच समझौता सिर्फ अंतिम संस्कार करने के लिए था।
मोनू मिश्रा की गिरफ्तारी व अजय मिश्रा और मनोहर लाल खट्टर की बर्खास्तगी के लिए सयुंक्त किसान मोर्चा का संघर्ष जारी है।#ArrestMurderer_MonuMishra pic.twitter.com/1LYyGuJvYk
— Kisan Ekta Morcha (@kisanektamorcha) October 6, 2021
तीन अक्टूबर को इस घटना में भी जिन चार किसानों की मौत हुई उसमें सारे सिख किसान थे। घायलों में भी सिख किसानों की संख्या अधिक थी। इस घटना से आक्रोषित पूरे देश भर से किसान लखीमपुर खीरी पहुंचने लगे थे।
टिकैत के समर्थकों का कहना है कि इतनी भारी संख्या में किसानों का जमावड़ा होने से स्थानीय स्तर पर तनाव और चरम पर पहुंच सकता था और स्थिति बेकाबू हो जाती और जैसा पिछले 10 महीने से मोदी सरकार इस आंदोलन को सिर्फ सिखों का आंदोलन करार देकर, कुछ इलाके में सिमटा घोषित कर या हिंसा को उकसावा देकर दमन करना चाहती है, वो अपने मंसूबे में कामयाब हो जाती।
उनका और संयुक्त किसान मोर्चे का एक और तर्क है कि किसानों और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच समझौता सिर्फ अंतिम संस्कार करने के लिए था, किसी के गले नहीं उतर रहा। एक जैसा रटा रटाया तर्क जब कई कोनों से आने लगा तो लोगों को और संदेह हुआ क्योंकि टिकैत, संयुक्त किसान मोर्चा, प्रशासन, मीडिया सभी ने मिलकर यही कॉपी पेस्ट तर्क दुहराया है।
आलोचकों का कहना है कि इससे बड़ी घटना क्या होगी कि धमकी देने के कुछ समय बाद ही किसानों के बर्बर नरसंहार को अंजाम दिया गया। इसके बाद पब्लिक की सहानुभूति पूरी तरह किसानों के पक्ष में आ चुकी थी। शांतिपूर्ण प्रदर्शन नौ महीने से दिल्ली बार्डरों पर हो रहे हैं, वहां भी दंगा फैलाने की तरह तरह की कोशिशें करने के बावजूद बीजेपी को कभी कोई सफलता नहीं मिली तो लखीमपुर खीरी में ऐसा किस आधार पर मान लिया गया?
याद होगा, 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली के बाद गाज़ीपुर बॉर्डर पर पुलिस प्रशासन, सरकारी भेदिये, जासूस, दंगाई, गुंडे और पूरी योगी सरकार ने ताकत लगा दी थी। हिंदू सिख दंगा कराने की तरह तरह से धमकियां दिलवाई गईं। इसकी कोशिश भी 28 जनवरी को की गई लेकिन इसका क्या नतीजा हुआ? जनता की सहानुभूति किसान आंदोलन के पक्ष में और आ गई।
टिकैत के आलोचकों का कहना है कि इस समझौते के पीछे सबसे बड़ा कारण दंगे का भय दिखाना था। संयुक्त किसान मोर्चे के एक बहुत अंदरूनी सूत्र के अनुसार, इसकी भी पूरी संभावना है कि टिकैत ने दंगे का भय संयुक्त किसान मोर्चे को दिखा कर उन्हें राज़ी किया हो (क्योंकि प्रशासन के साथ उन्होंने किसी तरह का समझौता करने का मन बना लिया हो)।
इस बात में इसलिए भी दम है कि गाज़ीपुर बार्डर पर सिख किसानों और जाट किसानों के बीच बहुत बारीक़ अंतरविरोध है और 28 जनवरी को ये तब खुल कर साफ़ हो गया जब जाट किसान दंगा न होने देने की दुहाई देते हुए परोक्ष रूप से सिख किसानों को दंगे का भय दिखा रहे थे और बार्डर से जाने के लिए कह रहे थे, क्योंकि टिकैत पहले ही योगी सरकार के सामने सरेंडर करने का फैसला ले चुके थे।
बीते 24 घंटे से ये बात सभी मीडिया में छाई है कि घटना के तुरंत बाद ही योगी के आला अधिकारियों को टिकैत से समझौता कराने के लिए लगाया गया। ये वे अधिकारी हैं जो कभी पश्चिमी यूपी में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और उस दौरान से टिकैत से उनके निजी रिश्ते रहे हैं और टिकैत उन्हें दूर के रिश्तेदारों की तरह ही तवज्जो देते हैं। 28 जनवरी की घटना के बाद भी योगी सरकार ने ये चैनल खुला रखा था।
किसान आंदोलन से सहानुभूति रखने वाले और राकेश टिकैत पर भरोसा जताने वालों को हिंदी के टीवी चैनलों पर उन हेडिंग्स को देख कर ज़रूर ताज्जुब हुआ होगा जिसका सार था- योगी को टिकैत ने बचा लिया। चार अक्टूबर की शाम तक यही हेडिंग थी।
हालांकि इस तरह की रिपोर्टिंग को भी संयुक्त किसान मोर्चे में दरार डालने वाला बता कर टिकैत समर्थक इसे खारिज कर रहे हैं लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है ये बात खुद राकेश टिकैत सामने आकर बताएं या एसकेएम के नेता खुल कर बताएं, कि समझौते की क्या प्रक्रिया अपनाई गई।
लखीमपुर खीरी मामले में राकेश टिकैत की इतनी चपलता के पीछे और क्या क्या राज हैं, ये आने वाले वक्त में और ज़ाहिर होगा, लेकिन एक बात तो तय है कि उनकी वजह से योगी सरकार एक महातूफ़ान से बाल बाल बच कर निकल गई।
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