हीट वेव में कारखाने बनी भट्ठियां, पिछले दो महीने में गर्मी ने रोज़ बनाये नए रिकॉर्ड

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पिछले दो महीने से दिल्ली और अन्य राज्यों में भीषण गर्मी के कारण कारखानों में काम करने वाले मज़दूरों का बुरा हाल है।

स्थानीय प्रशासन द्वारा घोषित कई हीट वेव अलर्ट के साथ, कई भारतीय शहरों ने इस साल गर्मी में अपना उच्चतम औसत तापमान दर्ज किया, जो सदियों पुराने रिकॉर्ड को तोड़ रहा है।

हरियाणा के आईएमटी मानेसर में स्थित बेलसोनिका कंपनी में लगभाग 14 सालों से काम कर रहे मोहिंदर कपूर कहना है कि भीषण गर्मी में कारखाने में काम करना सभी मज़दूरों के लिए बहुत भारी साबित हो रहा है।

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इतनी ज्यादा गर्मी में एयर वॉशर न चलाए जाने को लेकर सभी मज़दूर फ़ैक्ट्री में शर्ट उतार कर काम करने को मज़बूर हो गए थे।

पिछले कई सालों की तुलना में इस साल मई के महीने तापमान लगातार 44 डिग्री सेल्सियस से अधिक बना हुआ है। अगर इतने भीषण गर्मी में भी कारखाने में एयर वॉशर, एग्जॉस्ट फैन नहीं चलाये जाते हैं, तो कारखाने एक “भट्ठी” का रूप ले लेते हैं।

बेलसोनिका मज़दूर यूनियन पदाधिकारी मोहिंदर कहते हैं, “जब हम सभी मज़दूर शर्ट उतार कर विरोध जाहीर करते हैं, तो प्रबंधन की तरफ से यूनियन को नोटिस थमा दिया जाता है।”

“साथ ही संस्थान की तरफ के प्रोटेस्ट तत्काल बंद करने और कंपनी में सौहार्द्रपूर्ण माहौल को बनाए रखने को कहा जाता है।”

उन्होंने कहा कि ज्यादा गर्मी के कारण शॉप फ्लोर पर काम करने वाले मज़दूरों को भयंकर दिक्कत का सामना करना पड़ता है। अगर वे शर्ट नहीं उतारेंगे तो गर्मी से बेहाल होकर बेहोश होने की नौबत आ जाती है।”

साथ ही मोहिंदर कहते हैं, “चारों तरफ से बंद कारखानों में गर्मी के समय काम करना बहुत मुश्किल होता हैं। फैक्ट्री के अंदर तापमान बाहर की तुलना में ज्यादा होता है।

“बड़ी-बड़ी मशीनों की गर्मी, मशीनों की गर्मी के कारण मानव शरीर का तापमान बढ़ता है जिससे और ज्यादा गर्मी बढ़ती है, जिसकी वजह से मज़दूरों को तरह तरह की बिमारियों का भी सामना करना पड़ता है, जैसे शरीर पर लाल दाने, पानी और हवा की कमी से दस्त लग जाना। अंदर घुटन होने लगती है जिसके कारण मज़दूर बेहोश भी हो जाते हैं।”

फ़ैक्ट्री में शर्ट उतार कर मज़दूरों ने किया काम, मैनेजमेंट ने अनुशासनहीनता का नोटिस थमाया

मोहिंदर ने अपनी बातों में एक बात और कही कि “कारखानों में मज़दूरों के अलावा रोबोट भी काम करते हैं जो बिना पानी और हवा के बिलकुल भी काम नहीं कर सकते हैं”।

“मैनेजमेंट रोबोटों का पूरा ध्यान रखता हैं कि उन्हें किसे भी सुविधा की कमी ना हो लेकिन उसी गर्मी में मज़दूरों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है।”

साथ ही मजदूर यूनियन का आरोप था कि 1000-1200 लोगों के लिए तैयार किए जाने वाले शिकंजी में केवल 1 किलो नींबू का इस्तेमाल किया जाता था और बाकी पूर्ति पाउडर मिला कर की जाती थी।

इसपर भी हर मजदूर को सिर्फ 1 ही ग्लास शिकंजी पीने की अनुमति थी। इन सभी परिस्थियों में मज़दूरों को काम करने में मुश्किल होती है।

इन सभी मांगों को पूरा करने के लिया यूनियन के सदस्यों बहुत बार प्रदर्शन भी करते हैं तो कभी अपने शर्ट पर पर्चों को भी चिपका कर काम किया हैं।

बेलसोनिका यूनियन के महासचिव अजीत सिंह के अनुसार, “आप खुद समझ सकते हैं कि मैनेजमेंट ने कंपनी के अंदर काम की असुरक्षित स्थिति बना दी है।

मशीन पर काम करते हुए अगर गर्मी से मज़दूर को कुछ हो जाता है तो इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा?”

उन्होंने कहा कि “फैक्ट्री में मज़दूर अपना खून पसीना एक कर उत्पादन करता है और कंपनी को आगे ले जाता है लेकिन प्रबंधन की हर कोशिश इससे उलट होती है।”

“इतनी भीषण गर्मी जब मैनेजमेंट की पूरी टीम एयरकंडीशन में बैठी है मज़दूर शॉप फ्लोर पर बिना बुनियादी एयर वॉशर के ही काम कर रहे हैं। ऐसे में दुर्घटना होने, सेहत बिगड़ने आदि की ख़तरा बरकरार है।”

गौरतलब है कि भारत में, लगभग 32 करोड़ मज़दूर भीषण गर्मी और शीतलन उपकरणों की कमी के कारण परेशान हैं।

शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान द्वारा 2018 के एक अध्ययन पाया गया कि गर्म मौसम के दौरान कारखानों की उत्पादकता तो प्रभावित तो होती ही है, बल्कि मज़दूरों को गर्म वातावरण में काम करना बहुत मुश्किल होता हैं।

यदि मज़दूर अपने इन सभी सुविधयों की मांग करते हैं तो काम छूटने की भी अधिक संभावना होती है। शोध के अनुसार, 10 दिनों के औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से एक मज़दूर के अनुपस्थित रहने की संभावना 5% तक बढ़ जाती है।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक समय से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो गया है, दक्षिण एशिया में इस तरह की गर्मी की लहरों की संभावना 30 गुना अधिक है।

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