काम के घंटे बढ़ाकर मज़दूरों के अधिकारों को छीन रही है मोदी सरकार

modi on farmers issue

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

श्रम मंत्रालय ने दिन में अधिकतम 12 कामकाजी घंटों का प्रस्ताव किया है, जिसमें अंतराल शामिल होंगे। ये प्रस्ताव ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन (ओएसएच) कोड 2020 पर ड्राफ्ट नियमों के तहत है, जिसे सितंबर में संसद ने पारित किया था।

एक तरफ मोदी सरकार कृषि क़ानूनों के जरिये किसानों को कारपोरेट का गुलाम बना देना चाहती है तो दूसरी तरफ देश के कामगारों को भी कंपनी का दास बनाने की तैयारी कर चुकी है।

मोदी सरकार ने अपनी मनमर्जी से ज़बरदस्ती पास कराए गए आक्युपेशनल सेफ़्टी हेल्थ एंड वर्किंग कंडिशन कोड (ओसीएच) का भी मान नहीं रखा और अब उसमें भी फेरबदल कर काम के घंटे को 12 घंटे तक करने का प्रस्ताव दिया है।

हालांकि बीते 19 नवंबर जो अधिसूचना जारी की गई है उसमें प्रति सप्ताह काम की सीमा को 48 घंटे तक ही फ़िक्स किया गया है।

कोरोना के समय बुलाए गए संसद सत्र में आनन फानन में तीन कोड पास करा लिए गए थे लेकिन इसके ड्राफ़्ट में श्रम मंत्रालय ने प्रति दिन काम के अधिकतम घंटे 12 करने का प्रस्ताव दिया है।

फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, इसका चौतरफा विरोध शुरू हो गया है क्योंकि संसद में पारित कोड में अधिकतम एक दिन में आठ घंटे काम ही तय किया गया था।

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक श्रम मंत्रालय की दलील है कि ’12 घंटे का कार्यदिवस इस बात को ध्यान में रख कर तय किया गया है क्योंकि देश के विभिन्न इलाक़ों में अलग अलग मौसम होता है और कई जगह पूरे दिन काम होता है। इसके अलावा वर्करों को ओवरटाइम भत्ता से अधिक आमदनी करने का भी मौका मिलेगा।’

मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से पीटीआई ने कहा, “हमने ड्राफ़्ट क़ानून में इस तरह बदलाव किया है कि आठ घंटे के अलावा काम पर मज़दूरों को ओवरटाइम मिलेगा।” श्रम मंत्रालय ने दिन में अधिकतम 12 कामकाजी घंटों का प्रस्ताव किया है, जिसमें अंतराल शामिल होंगे।

ये प्रस्ताव ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन (ओएसएच) कोड 2020 पर ड्राफ्ट नियमों के तहत है, जिसे सितंबर में संसद ने पारित किया था। हालांकि, साप्ताहिक काम करने के घंटों की सीमा को 48 घंटे रखा गया है (6 दिन X आठ घंटे, एक साप्ताहिक छुट्टी के साथ)। ये ड्राफ्ट नियम 19 नवंबर 2020 को अधिसूचित किए गए हैं।

इसे कई क्षेत्रों से आलोचना का सामना करना पड़ा है क्योंकि संसद द्वारा पारित किया ओएसएच कोड एक दिन में अधिकतम आठ घंटों के लिए कहता है।

श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह देशभर में स्थितियों को देखते हुए किया गया है जहां काम पूरे दिन में फैला होता है। इसके साथ कर्मियों को ओवरटाइम अलाउंस के जरिए ज्यादा कमाने का भी मौका मिलेगा।

अधिकारी ने आगे कहा कि उन्होंने ड्राफ्ट नियमों में जरूरी प्रावधान किए हैं जिससे सभी कर्मी जो आठ घंटे से ज्यादा काम कर रहे हैं, उन्हें ओवरटाइम अलाउंस मिले।

ओएसएच कोड पर ड्राफ्ट नियमों के मुताबिक, किसी दिन पर ओवरटाइम को कैलकुलेट करते समय एक घंटे के बीच के 15-30 मिनट की अवधि को 30 मिनट ही गिना जाएगा।

वर्तमान में, 30 मिनट से कम अवधि को मौजूदा कानूनी व्यवस्था में ओवरटाइम नहीं गिना जाता है। ड्राफ्ट नियमों में कहा गया है कि कोई कर्मी को किसी प्रतिष्ठान में एक हफ्ते में 48 घंटों से ज्यादा काम करने की जरूरत या मंजूरी नहीं होगी। कर्मी के काम की अवधि इस तरह होनी चाहिए कि आराम के लिए अंतराल शामिल हों, जो एक दिन में 12 घंटों से ज्यादा फैले नहीं होने चाहिए।

ड्राफ्ट के मुताबिक, किसी कर्मी को पांच घंटों से ज्यादा काम करने की इजाजत नहीं होगी, जब तक उसे आराम करने के लिए कम से कम आधे घंटे का अंतराल मिले।

ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं का कहना है कि कंपनियों में पहले ही 12 घंटे काम को आम बना दिया गया है और अब इस मोदी सरकार नियम बना रही है। ऑटो उद्योग में काम करने वाले एक मज़दूर नेता ने कहा कि मोदी सरकार वो क़ानूनी अधिकार भी छीन रही है जिसके सहारे मज़दूरों को ये उम्मीद बनी रहती है कि उन्हें इंसाफ़ मिलेगा।

इंकलाबी मज़दूर केंद्र से जुड़े ट्रेड यूनयिन एक्टिविस्ट श्यामबीर का कहना है कि ये सारे श्रम क़ानून सरकार ने श्रमिक असंतोष को दबाने के लिए बनाए थे। ये मज़दूरों के लिए जितना सुरक्षा कवच थे, उतने ही सरकार के थे। अब जबकि इन क़ानूनों को खुद सरकार रद्दी की टोकरी में डाल रही है, वो खुद श्रम असंतोष के सामने बिना क़ानूनी कवच के खड़ा हो गई है।

उल्लेखनीय है कि बीते संसद सत्र में विपक्ष के बॉयकाट और उसकी अनुपस्थिति में मोदी सरकार ने ज़बरदस्ती तीन कोड बिल पास कराए थे।

इससे पहले भी केंद्र सरकार के द्वारा मजदूरों के लिए बने चार महत्वपूर्ण कानून न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948, वेतन भुगतान अधिनियम, 1936, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 तथा समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 को समाप्त कर वेज कोड बिल में शामिल किया गया। इसके बारे खूब बढ़ा चढ़ाकर बताया गया कि इसके लागू होते ही पूरे देश के श्रमिकों का न्यूनतम वेतन एक समान हो जायेगा. जो कि असल में छलावा साबित हुआ।

(जनज्वार की खबर से साभार)

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