क्या किसान आंदोलन परीक्षा की घड़ी के लिए तैयार है?

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By पावेल कुस्सा

किसान संघर्ष पहले ही कई दौर के परीक्षणों से गुजर चुका है। अब एक नए तरह की परख हो रही है। क्योंकि अब दुश्मन अपना स्वरूप बदल कर आया है।

ये बदला सवरूप अब सबसे ज़्यादा नाज़ुक व संवेदनशीन नस को छूने की कोशिश कर रहा है। वह जानता है कि सिर पर कफन बांधने वाले लोग अपने सामने खड़े हथियारबंद फौजों से भी नहीं डरते।

केवल एक ही वो जगह है जहां लोगों को भ्रमित कर उलझाया जा सकता है। इसलिए, यह पंजाबी समाज और सिख धार्मिक भावनाओं वाले सभी लोगों के लिए परीक्षा का समय है।

सच्चाई साफ़ होती जा रही है कि किसान आंदोलन से निपटने के लिए केंद्र सरकार सिखी धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रही है। साल भर में किसान संघर्ष को तोड़ने की उनकी सभी योजनाएँ विफल रही हैं।

हर दमनकारी हमला गुस्से को नई ऊंचाइयों पर ले जाता है व बलिदान की भावना और भी गहरी होती जा रही है।

इसीलिए अब सबसे संवेदनशील मुद्दे को अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास किया जा रहा है। चाहे किसी घटना को बहाने के रूप में इस्तेमाल किया गया हो या साज़िश रची गई हो। इसका उद्देश्य किसान संघर्ष को दबाना और उससे छुटकारा पाना है।

घटना की निष्पक्ष जांच की मांग सभी न्यायोचित लोगों द्वारा की जानी चाहिए और की भी जा रही है। साथ ही हमें यह भी जानना चाहिए कि सरकारें ऐसी घटनाओं में सच्चाई सामने नहीं लाना चाहती हैं और न ही अभी तक अभद्रता की पिछली घटनाओं की जांच की गई है।

लोगों के पास मौजूद तथ्यात्मक सबूतों के आधार पर असली अपराधी का पता लगाने की कोई कोशिश नहीं की गई है जबकि सरकार के पास ऐसे संसाधनों की कमी नहीं हैं।

असल में राजशाही की विभिन्न शक्तियाँ हमेशा इन खेलों में शामिल होती हैं , क्योंकि ये सब (विरोध प्रदर्शन) उन्हें रास नहीं आता। अगर सरकार खुद सीधे तौर पर इन खेलों में शामिल हो फिर तो क्या ही करना!

ऐसे में किसान संघर्ष की बढ़ती ख्याति और सफलता को बनाए रखने का एकमात्र तरीका धार्मिक भावनाओं को नियंत्रित करना और आपसी एकता बनाए रखना है।

पूरे पंजाबी समाज को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अभद्रता या किसी अन्य माध्यम से धार्मिक भावनाओं को भड़काने का असली मकसद किसान संघर्ष को भटकाना है।

हमें इन भावनाओं पर काबू पाना है और अपनी पूरी ताकत किसान संघर्ष को और व्यापक करने में है। धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने के सरकार के कदम को विफल करना होगा। किसानों को दृढ़ता और धैर्य के साथ संघर्ष में डटे रहना होगा।

कृषि कानूनों और अन्य मुद्दों पर ध्यान देना होगा। लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत तमाम किसान शहीदों के खून का हिसाब मांगना होगा।

इसलिए, परीक्षण की इस घड़ी से गुजरने के लिए, सभी को धैर्य और दृढ़ता की राह को मज़बूती से पकड़े रहना होगा।

(लेखक पंजाबी पत्रिका सुर्ख लीह के संपादक हैं।)

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