PGI चंडीगढ़: मोबाइल चोरी के शक में पुलिस ने दलित मजदूरों को बेरहमी से पीटा, दलित संगठनों ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र

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चंडीगढ़ में दलित अधिकार संगठनों के प्रतिनिधियों ने पीजीआई के तीन कर्मचारियों के खिलाफ हिरासत में हुई हिंसा में शामिल पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पत्र लिखा है।

राष्ट्रपति को पत्र स्थानीय और राज्य स्तर के अधिकारियों को कई अन्य शिकायतें सौंपे जाने के बाद आया है।

गौरतलब है कि 24 जुलाई को पीजीआई चंडीगढ़ के एक डॉक्टर ने स्थानीय पुलिस को मोबाइल चोरी के मामले की सूचना दी तो अस्पताल के दो सफाई कर्मचारियों और एक परिचारक सहित तीन कर्मचारियों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया और उन्हें पास की पुलिस चौकी ले जाया गया।

पूछताछ के दौरान पुलिसकर्मियों द्वारा बुरी तरह पीटे जाने के बाद मजदूरों के शरीर पर चोट के निशान दिखाई दे रहे हैं।

25 जुलाई को पीजीआई कर्मचारी संघ ने मजदूरों के खिलाफ अवैध पुलिस कार्रवाई के खिलाफ बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि अधिकारियों द्वारा इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

मामले को लेकर चंडीगढ़ प्रशासन, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अधिकारियों को भी पत्र लिखा गया है। चंडीगढ़ दलित वेलफेयर एसोसिएशन के प्रवक्ता राजकुमार जालान ने जागरण की एक रिपोर्ट में भी कहा कि इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

इस मामले को लेकर सफाई कर्मचारी संघ ने पुलिस से मांग की है कि दलित समुदाय से आने वाले मजदूरों के खिलाफ क्रूरता में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।

संघ के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि पुलिस कर्मियों ने जानबूझकर मजदूरों को हिरासत में लेने के बाद उनके साथ मारपीट की। सदस्यों ने एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की मांग की है।

सफाई कर्मचारी यूनियन ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग को टालना जारी रखा तो वे अपना विरोध दर्ज कराने के लिए चंडीगढ़ सलाहकार कार्यालय का घेराव करेंगे।

चंडीगढ़ दलित कल्याण संघ के अध्यक्ष भगत राज दिसावर और सफाई कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्याम लाल घावरी, सफाई कर्मचारी आंदोलन की संयोजक सविता खैरवाल ने कहा कि चंडीगढ़ जैसे शहर में दलितों के खिलाफ हिंसा की घटना दर्शाती है कि आजादी के 75 साल बाद भी दलित समुदायों की हालत दयनीय है।

(साभार-गौरी लंकेश न्यूज)

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