दिल्ली:13 नवंबर को मासा की महारैली, बैठक कर तैयारियों और चुनौतियों पर हुई चर्चा

मोदी सरकार की  मजदूर विरोधी नई नीतियों के खिलाफ मासा ने आगामी 13 नवंबर को दिल्ली में महारैली का आह्वान किया है।

बुधवार को दिल्ली के गांधी पीस फाउंडेशन में एक बैठक हुई। इस  बैठक में मासा के लगभग सभी घटक संगठनों के साथ-साथ अन्य ट्रेड यूनियनों के सदस्यों ने हिस्सा लिया।

बैठक में 13 नवंबर को होने वाले विशाल रैली की तैयारियों और चुनौतियों पर चर्चा की गई।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए मासा के कोआर्डिनेटर और मजदूर सहयोग केंद्र के अमित ने कहा कि मासा कोरोना काल में लाए गए नए लेबर कोड को रद्द करने और न्यूनतम आय को 26,000 रुपये प्रति माह करने की मांग कर रही है। मजदूर भी इसके लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

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बैठक का हिस्सा बने मासा के सदस्य अमिताभ ने मजदूरों के आंदोलन के हालात पर चर्चा की। उनका कहना है कि वर्तमान में मजदूर आंदोलनों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। मजदूरों के प्रदर्शन में हौंडा और मारुति का आंदोलन कामगारों की आवाज बुलंद करने का एक बेहतर उदाहरण है।

अमिताभ ने कहा कि मजदूर संगठनों को किसान आंदोलन से सीख लेने की जरूरत है। किसान आंदोलन के दौरान किसान संगठनों ने छोटे-छोटे संगठनों को जोड़ कर संघर्ष के लिए एक बड़ा मंच तैयार किया। जमकर लड़े और अंत में जीते।

अमिताभ ने मजदूर संगठनों को एक साथ लड़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मासा के सभी संगठनों को एक संयुक्त एकजुटता के साथ आने की आवश्यकता है।

‘मज़दूरों के वर्गीय अंतर को समझना जरुरी’

नई ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव (NTUI) के प्रतिनिधि गौतम मोदी ने कहा कि नए लेबर कोड के विरोध में सभी ट्रेड यूनियनों का रुख एक है। यह सही बात है कि किसानों ने संगठित होकर सरकार को पीछे हटने पर मजबूर किया। लेकिन वर्तमान में मजदूरों में वर्गीय अंतर है, इसलिए मजदूरों संगठनों को इस विषय में मंथन करने की जरूर है। उन्होंने बताया कि 2012 में मारुति के मजदूरों की लड़ाई सबसे बड़ी रही, जिसमें सभी मजदूर संगठनों का समर्थन था।

गौतम कहते हैं, पूंजीपतियों की कोशिश है कि स्थाई और ठेका मजदूरों को एक नहीं होने दिया जाए। इसलिए लड़ाई आसान नहीं हो पा रही है। नए लेबर कोड के विरोध में मासा को NTUI के समर्थन की बात कहते हुए गौतम ने कहा कि वर्तमान सरकार मजदूरों से यूनियन बनाने के अधिकार को भी छीनने की तैयारी में है। उन्होंने बताया कि लंबी लड़ाई के बाद 1926 यूनियन बनाने का अधिकार मजदूरों को हासिल हुआ था। अब इन्हें छीनने का प्रयास हो रहा है, जो कतई नहीं होने देंगे।

राष्ट्रीय निर्माण पहलू को किया गया नजरअंदाज

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सरोज गिरी ने कहा कि किसानों के योगदान की बात तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खूब होती है, लेकिन मजदूरों के राष्ट्रीय निर्माण के पहलू को नजरअंदाज कर दिया गया है। यहां तक कि मजदूरों के संघर्षों का दस्तावेजीकरण भी नहीं के बराबर है। वर्तमान में मजदूरों के आंदोलनों और संघर्षों के मुद्दे पर कोई लिखने और बोलने को तैयार नहीं है। यहां तक कि तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के तबके में आने वाले पत्रकार, प्रोफेसर और लेखक भी मजदूर संबंधी समस्याओं का दस्तावेजीकरण नहीं करना चाहते हैं।

ग्रामीण मजदूर यूनियन के सदस्य संतोष ने कहा कि मासा द्वारा उठाए गए 3 मुद्दे नए लेबर कोड को रद्द करना, ठेका प्रथा को समाप्त करना और न्यूनतम मजदूरी 22,000 रुपये प्रति माह सुनिश्चित करना मजदूर आंदोलन के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक है। उन्होंने कहा कि मासा न केवल संगठित क्षेत्रों में बल्कि असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले ग्रामीण मजदूर, नरेगा, निर्माण मजदूर और गैर-कृषि काम में लगे मजदूरों के लिए जबरदस्त काम कर रहा है। संतोष ने कहा कि मासा का संकल्प है कि पूरे मजदूर आंदोलन में एकजड़ता है, उसको एक निर्णायक, झुझारू और निरंतर संघर्षों के दौरान मुकम्मल लड़ाई प्रदान की जाए।

‘सभी मज़दूर वर्ग संगठित हों’

गुड़गांव में मजदूर संबंधी समस्याओं के मुद्दे पर काम करने वाले इंकलाबी मजदूर केंद्र के सदस्य श्याम वीर ने कहा कि मजदूर वर्ग की चेतन को समझने की जरूरत है। वर्तमान सरकार श्रम कानूनों को खत्म करने का पूरा प्रयास कर रही है। यही नहीं पिछले कई सालों में भी यूनियन बनाने के अधिकार को असफल बनाने के प्रयास किए गए हैं। उनका कहना है कि अगर मजदूर के सभी वर्ग एक साथ संगठित हो जाएंगे, तो मजदूरों और मजदूर संगठन आसानी के लड़ाई को लड़ सकते हैं।

मजदूर एकता केंद्र के सदस्य दिनेश ने कहा कि नया लेबर कोड मजदूरों के लिए पूरी तरह से घातक है। इसमें मजदूरों और मजदूर यूनियनों को मिलने वाले अधिकारों को खत्म किया जा रहा है। इतना ही नहीं अपने आपको महिलाओं की हितैषी बताने वाली मोदी सरकार ने नए लेबर कोड में रात की पाली में काम करने छूट दे दी है।

लेकिन चिंता का विषय यह नए लेबर कोड में रात में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का कोई विवरण नहीं दिया है। मासा लगातार ठेका प्रथा को खत्म करने की मांग कर रहा है। इसलिए अब इस लड़ाई में ठेका और अनौपचारिक तौर पर काम करने वाले मजदूरों को भी जोड़ने की जरूरत है। तभी लेबर कोड की लड़ाई को सफल बनाया जा सकता है।

आंदोलन की मज़बूती के लिए वर्क फोर्स जरुरी

क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा के सदस्य सत्यवीर ने कहा कि किसी भी आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए एक विशेष वर्क फोर्स की जरूरत होती है। उनका मानना है कि आंदोलन में ठेका मजदूरों को जोड़ने के लिए उनकी बस्तियों का दौरा करना बहुत जरूरी है। जहां हर वर्ग के ठेका मजदूर निवास करते हैं। यदि ऐसा किया जाएगा, तो आंदोलन के लिए एक बड़ी फोर्स को तैयार किया जा सकता है।

बैठक का हिस्सा बने जन मोर्चा पत्रिका के वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि नए लेबर कोड को लागू करने पर जोर दिया जा रहा है, इससे पहले 5 बार पिछली सरकारों ने भी इसे लागू करने पर जोर दिया था।

मजदूर संबंधी मुद्दों की लड़ाई को समझने के लिए मजदूर संगठनों की विचारधारा जानने की जरूरत है। मजदूरों को एक मजबूत संगठन बनाने के लिए जागृत करने की आवश्यकता है।

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मजदूरों को क्रांतिकारी स्वभाव में लाने की जरूरत है। तभी हर लड़ाई को सफल बनाया जा सकता है।

बैठक में शामिल हुए सदस्यों का धन्यवाद करते हुए मासा से सदस्य सिद्धांत ने कहा कि मासा हर वर्ग के मजदूरों के लिए लड़ता है। इस तर्ज पर आगामी 13 नवंबर की रैली में देशभर से लगभग 5000 हजार मजदूरों के आने की उम्मीद है। पूरा विश्वास है कि मासा के सभी घटक मजदूर संगठन इस रैली को सफल बनाने में पूरा योगदान देंगे।

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