मोदी के आने के बाद 3 गुना बढ़ीं दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्याएं : गृह मंत्रालय

मोदी सरकार के शासनकाल में आने के बाद से दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या की घटनाएं तीन गुना बढ़ गयी हैं।

जहां 2014 में 15,735 दिहाड़ी मज़दूरों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2021 में 42,004 दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या का मामला सामने आया है।

अगर हम 2014 से 2021 तक दिहाड़ी मज़दूरों की कुल आत्महत्याओं को जोड़ें तो यह 235,798 होंगी, जोकि किसी भी आर्थिक समूह में ख़तरनाक रूप से सबसे अधिक हैं।

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार, 20 दिसंबर को लोकसभा में बताया कि 2014 में 15,735 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की, जो 2021 में 42,004 थी।

गृह मंत्रालय ने दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या की संख्या पर कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावद द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि यह संख्या 2014 से 2021 के बीच लगभग तीन गुना बढ़ गई थी।

अगर इन आंकड़ों की और पुष्टि की जाए, तो 2021 में 115 की तुलना में 2014 में हर दिन 43 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की।

सरकार ने बताया कि 2021 में देश में आत्महत्या के कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 42,004 दिहाड़ी मजदूर थे।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए गृह मंत्रालय ने बताया कि2021 में आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 2014 के मुकाबले करीब तीन गुना हो गई है। 2014 में 15,735 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की थी।

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इंडिया टुडे के मुताबिक, 2014 से 2021 के बीच कुछ राज्यों में दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या की संख्या में काफी इजाफा देखा गया। जिसमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात के दिहाड़ी मज़दूर हैं।

जारी आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र में 2014 और 2021 में क्रमशः 2,239 और 5,270 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की।

वहीं तमिलनाडु में 2014 में 3,880 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2021 में यह संख्या बढ़कर 7,673 हो गई।

इसी तरह, 2014 में, महाराष्ट्र के 2239 दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी जीवन लीला समाप्त की थी। 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 5270 दर्ज किया गया है। आत्महत्याओं की यह संख्या बढ़कर 4657 हो गई।

मध्य प्रदेश में भी दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई। 2014 में यहां 1,248 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2021 में यह संख्या बढ़कर 4,657 हो गई।

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तेलंगाना में 2014 और 2021 में क्रमशः 1,242 और 4,223 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की।

दूसरी ओर, कुछ राज्यों में आत्महत्याओं की संख्या में गिरावट देखी गई है, जबकि कुछ राज्यों में इसी अवधि के दौरान संख्या में मामूली वृद्धि भी देखी गई है।

उदाहरण के लिए, 2014 में, बिहार में 11 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की, और यह संख्या 2021 में बढ़कर 29 हो गई। सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश में 2014 में 208 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। जो 2021 में बढ़कर 482 हो गई।

जारी आंकड़ों के मुताबिक सिक्किम में 23 दिहाड़ी मजदूरों ने साल 2014 में आत्महत्या की थी। वहीं 2021 में ये आंकड़ा घटकर 22 हो गया।

इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,881 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 5,318 किसान रहे।

सरकार ने निचले सदन में बताया कि कृषि क्षेत्र के मज़दूरों सहित असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने के लिए असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 बनाया गया है।

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में 23,179 गृहिणियों, स्वरोजगार से जुड़े 20,231 लोगों, 15,870 वेतनभोगी लोगों, 13,089 विद्यार्थियों, व्यापार से जुड़े 12,055 लोगों, निजी क्षेत्रों से जुड़े 11,431 लोगों और 13,714 बेरोजगारों ने आत्महत्या की।

गौरतलब है कि 2014 में दिहाड़ मजदूरों की आत्महत्या दर कुल आत्महत्या की 12 फीसदी हुआ करती जो मोदी सरकार के आठ साल के शासनकाल में बढ़कर 25 फीसदी से ज्यादा हो गई है।

ये सच में हैरान करने वाले आकड़ें हैं। इन आकड़ों से यह साफ जाहिर होता है कि मोदी सरकार ने दिहाड़ी मज़दूरों की अनदेखी करते हुए मरने के लिए छोड़ दिया है।

मोदी सरकार के शासनकाल में दिहाड़ी मज़दूरों का जीना मुश्किल हो गया है। अगर बीते आठ सालों की बात करने तो इस दौरान नोटबंदी, खाद्य और अन्य वस्तुओं पर लगातार बढ़ती GST और महामारी का दौर।

तत्कालीन सरकार के शासन में दिहाड़ी मज़दूरों के ऊपर एक के बाद के हमले किये गए। यही कारण है जो दिहाड़ी मज़दूरों की आत्महत्या की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

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