प्रोटेरियल वर्करों के धरने का 16वां दिन, मैनेजमेंट और यूनियन के बीच ताज़ा बातचीत कितनी आगे बढ़ी?

प्रोटेरियल वर्करों के धरने का 16वां दिन, मैनेजमेंट और यूनियन के बीच ताज़ा बातचीत कितनी आगे बढ़ी?

हरियाणा के आईएमटी मानेसर में मारुति सुजुकी कंपनी के गेट नंबर तीन के सामने स्थित प्रोटेरिअल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में पिछले 16 दिनों से क़रीब 200 मज़दूर कंपनी में धरने पर बैठे हुए हैं।

कई दौर की वार्ताओं के बावजूद अभी तक कोई हल नहीं निकला है। हालांकि सूत्रों ने बताया कि मैनेजमेंट वेतन बढ़ाने की वर्करों की मांग पर थोड़ा आगे बढ़ा है।

13 जुलाई को मैनेजमेंट ने सिविल कोर्ट में फैक्ट्री के अंदर धरना प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए अर्जी दाखिल की थी लेकिन अदालत ने इसे आंशिक रूप से ख़ारिज कर दिया और वर्करों को गेट के अंदर धरने की इजाज़त दे दी।

अब वर्कर मशीनों से हटकर गेट पर आ गए हैं लेकिन वो कंपनी गेट के अंदर ही धरने पर बैठे हैं। बीते 16 दिनों से एक ही कपड़े में कंपनी में बैठे वर्करों में कई बीमार भी पड़ गए, जिन्हें ईएसआई अस्पताल ले जाया गया।

उधर मानेसर में स्थित तमाम ट्रेड यूनियनों ने धरना दे रहे इन ठेका वर्करों को अपना समर्थन दिया है और मैनेजमेंट से समुचित रास्ता निकालने की अपील की है।

इन यूनियनों में मारुति सुजुकी कार प्लांट की यूनियन, बेलसोनिका यूनियन, इंकलाबी मज़दूर केंद्र, मज़दूर सहयोग केंद्र और इलाके के तमाम मज़दूर नेता शामिल हैं।

प्रोटेरिअल मज़दूरों के समर्थन में फ़रीदाबाद में क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा और सिडकुल पंतनगर में इंकलाबी मज़दूर केंद्र ने प्रदर्शन कर श्रम विभाग को ज्ञापन दिए हैं।

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मैनेजमेंट क्या कह रहा है?

ताज़ा दौर की बातचीत में मैनेजमेंट ने 1500 रुपये बढ़ाने, छुट्टियों का पैसा न काटने और निकाले गए 30 ठेका वर्करों में से 25 को वापस लेने की बात कही है।

लेकिन वर्करों की मांग है कि मई में निकाले गए सभी वर्करों को कंपनी में वापस लिया जाए, वेतन को 20,000 रुपये किया जाए और कंपनी में छुट्टियों का पैसा न काटा जाए यानी साल में क़ानूनी तौर पर मान्य छु्ट्टियां दी जाएं।

एक वर्कर ने नाम न ज़ाहिर करते हुए कहा कि हमें हरियाणा के न्यूनतम वेतन के बराबर सैलरी मिलती है यानी 10,800 रुपये। अब उसमें गुजारा नहीं होता। सैलरी कम से कम 20,000 रुपये से ऊपर होनी चाहिए।

वर्करों की मांग है कि कंपनी में सीएल, सिक लीव आदि छुट्टियां मिलनी चाहिए, जबकि कंपनी में रविवार की छुट्टी छोड़कर बारहों महीने काम करना पड़ता है और एक छुट्टी करने पर एक से डेढ़ हज़ार रुपये कट जाते हैं।

प्रोटेरिअल ठेका मज़दूर यूनियन का कहना है कि कंपनी में वर्कर अधिकतम पिछले दस दस साल से ठेके पर कार्य कर रहे हैं। इन्हें परमानेंट किया जाना चाहिए। यहां 50 से भी कम वर्कर परमानेंट हैं जिनकी सैलरी 80,000 रुपये तक है।

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कई दिनों तक हड़ताली मज़दूरों को भूखे रखा गया

भीषण गर्मी, उमस में कई बार धरने की जगह की बिजली और पंखे बंद कर दिए गए। जिससे शुरू में ही कई मज़दूर बेहोश हो गए और कई अन्य की तबियत ख़राब हो गई।

कंपनी गेट के बाहर बैठे दर्जनों वर्करों ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि 16 दिनों में वर्करों को बहुत कम खाना मिला और शुरुआत के एक हफ़्ते तो उन्हें शायद दो चार टाइम ही खाना मिल पाया।

एक वर्कर ने बताया कि 30 जून से 6 जुलाई तक केवल 4 बार खाना कंपनी के अंदर गया है। ना तो प्रबंधन खुद खाना दिया और ना ही बाहर से खाना अंदर जाने दिया गया।

कभी 5 – 6 घंटे गेट पर खाना पड़ा रहने के बाद रात को 2:30 बजे खाना मजदूरों को खाने दिया तो कभी रात 12 बजे, कभी एसएचओ को बुलाकर खाना अंदर भिजवाया गया तो कभी पुलिस हेल्पलाइन के जरिए।

शुरू के 3-4 दिन तो खाना अंदर ही नहीं गया, केवल बिस्कुट खाकर मजदूरों ने गुजारा किया। कंपनी प्रबंधन की इस साजिश एवं अमानवीय रुख से तंग आकर मजदूरों ने सामूहिक भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया।

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5 साल से वेतन नहीं बढ़ा

यूनियन प्रतिनिधियों ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि 5-6 साल से कंपनी में मजदूरों के वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई है।

प्रबंधन एक भी रुपया बढ़ाने को तैयार नहीं था। उन्हें कोई भत्ता भी इस दौरान नहीं दिया गया है। ना तो आवास भत्ता मिलता है  और ना कोई और भत्ता।

उन्हें न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता है। उन्हें हेल्पर का हरियाणा ग्रेड के हिसाब से न्यूनतम वेतन दिया जाता है और काम एक कुशल श्रमिक का, एक ऑपरेटर का कराया जाता है जो कि श्रम कानूनों का घोर उल्लंघन है।

इंकलाबी मज़दूर केंद्र ने एक बयान जारी कर कहा है कि “श्रम विभाग कंपनी प्रबंधन पर अनुचित श्रम अभ्यास का चालान नहीं काट रहा है। कहीं ना कहीं श्रम विभाग श्रम कानूनों को लागू करने में असमर्थ साबित हो रहा है।”

“एक साल के संघर्ष के बाद भी श्रम विभाग कोई भी कार्यवाही नहीं कर रहा है यह भ्रष्टाचार या सरकार की मालिक परस्ती को ही दर्शाता है।”

Proterial hitachi manesar plant

क्या है पूरा मामला

सालों से काम करने के बावजूद ठेका वर्करों का पिछले पांच साल से वेतन न बढ़ने पर उन्होंने एक सामूहिक मांग पत्र मैनेजमेंट और श्रम विभाग को दिया। जिसमें वेतन बढ़ोत्तरी पर वार्ता बुलाने की बात कही गई थी।

सामूहिक मांग पत्र डालने के बाद प्रबंधन ने मज़दूरों का उत्पीड़न शुरू कर दिया और मई में उसने करीब 30 वर्करों को निकाल दिया, जिसे लेकर उस समय थोड़े समय के लिए हड़ताल हुई थी।

इस संबंध में 13 मई 2023 को त्रिपक्षीय वार्ता हुई जिसमें  प्रबंधन निकाले गए वर्करों को थोड़ा थोड़ा कर वापस लेने की बात पर सहमत हुआ था।

साथ ही कंपनी में छुट्टियां लागू करने को लेकर भी सहमति बनी। लेकिन पूरा मई और जून बीत जाने के बाद भी इस समझौते पर अमल नहीं हुआ। उल्टे 30 जून को बी शिफ़्ट के पांच वर्करों को गेट पर रोक दिया गया। जिसे लेकर वर्कर आक्रोशित हो गए और फ़ैक्ट्री के अंदर ही धरने पर बैठ गए।

वर्करों का कहना है कि छुट्टियों की बात तो पहले से लागू होनी चाहिए थी ,अगर लागू की गई तो कंपनी मैनेजमेंट पर कार्यवाही होनी चाहिए थी क्योंकि यह समझौता श्रम विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में हुई थी।

लेकिन मैनेजमेंट अपने उन वायदों से मुकर गया और जब हड़ताल हुई तो उसे तोड़ने के लिए तरह तरह के जुगाड़ लगाता रहा।

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Workers Unity Team

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