फोन रखने की अनुमति मांगने पर गाली-गलौच कर काम से निकाला

Representational graphics of agitating workers

मुंडका फैक्ट्री में लगी आग और उससे हुई भयंकर तबाही के पीछे प्रशासनिक लापरवाही के अलावा एक कारण सही समय पर मदद ना मिलना था।

दमकल की टीम आग लगने के डेढ़ घंटे बाद मौके पर पहुंची थी। इस दरम्यान स्थानीय लोगों और एक क्रेन चालक ने लगभग 60 लोगों को बचाया।

चूंकि सारे कर्मचारियों के फोन काम करने के पहले जब्त करके रख लिए जाते थे, इस कारण भी जब आग लगी तो लोग किसी से संपर्क करने मे असमर्थ रहे।

मुंडका के अलग अलग फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूरों ने बताया कि काम में कोई बाधा ना आए, इसलिए कुछ महीनों से मजदूरों को फोन रखने की इजाजत नहीं है।

सबके फोन जमा करवाए जाते हैं और एक इमर्जन्सी नंबर दिया जाता है, काम पड़ने पर जिसपर संपर्क कर सकते हैं।

मजदूरों की लाचारी का आलम

अगर किसी जरूरी काम से फोन रखने की अनुमति मांगी जाए, तो सूपर्वाइज़रों की तरफ से अभद्र गालियां सुननी पड़ती हैं।

जिस फैक्ट्री मे आग लगी, वहाँ से आधा किलोमीटर दूर एक पीपीई किट और मास्क बनाने वाली कंपनी – SHI Mediwear Private Limited में सिलाई का काम करने वाले दिवाकर और जयप्रकाश को साथ में फोन रखने की बात पर शुरू हुई बहस के बाद गाली गलौच कर यूनियन करने के आरोप पर काम से निकाल दिया।

दिवाकर कहते हैं, “हमारे साथ एक लड़का काम करता है जिसके पिताजी उसी फैक्ट्री में थे जहां आग लगी थी और उन्हें चोटें भी आई हैं। उसे खबर नहीं हो पा रही थी कि उसके पिताजी के साथ ऐसा हादसा हो चुका था, क्यूंकी फोन रखना अलाऊ नहीं है। एक बंदे को भिजवा को उससे कहलवाया गया कि तुमहारे पिताजी की हालत खराब है। उसे बाहर आने के बाद आग के बारे में पता चला। अगर उनके साथ कुछ बुरा हो जाता, तो भी उसे पता नहीं चलता।”Divakar and Jayprakash

दिवाकर बताते हैं कि उनकी पत्नी गर्भवती हैं। और 2 महीने बाद डेलीवेरी होने वाली है। उन्होंने अपने मैनेजर को कई बार कहा कि जरूरत पड़ने पर दिये गए इमर्जन्सी नंबर पर फोन नहीं लगता, इसलिए उन्हें फोन रखने दिया जाए।

आग लगने के अगले दिन, अपने पिता की नाजुक हालत को देखते हुए दिवाकर के साथी ने सिर्फ एक दिन के लिए फोन रखने की अनुमति मांगी।

यह सुनते ही जयप्रकाश – जो कि स्वयं फोन रखे हुए थे – उसका समर्थन करते हुए खड़े हो गए। इस बात पर मैनेजर उनपर भड़क गया और कहना लगा कि अगर फोन रखना है, तो कंपनी से निकल जा।

दिवाकर कहते हैं कि मैनेजर ने जयप्रकाश पर हाथ उठाने की भी कोशिश की और उनसे धक्का मुक्की कर बाहर निकलने को कहने लगा। तभी दिवाकर भी अपनी जगह पर खड़े हो गए।

“यूनियनबाजी” के आरोप में काम से निकाला

जैसे ही झड़प बढ़ने लगी, कंपनी के डायरेक्टर राहुल गुलाटी अपनी ऑफिस बाहर आकर दोनों मजदूरों को फरमान सुन दिया।

जयप्रकाश बताते हैं कि, “डायरेक्टर ने आ कर कहा कि ‘तुम यूनियनबाजी कर रहे हो। मैं खुद तुम दोनों को काम से निकालता हूँ। जाओ जो कर सकते हो, कर लो’।”

वे बताते हैं कि उनके अपॉइन्ट्मन्ट लेटर में उनके काम करने का समय सुबह 9 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक दिया गया है, लेकिन उनसे रोज 7 बजे तक काम लिया जाता है और कई दिन उससे भी ज्यादा देर में छोड़ा जाता है। वे कहते हैं कि लंच और टी ब्रेक में भी चैन से नहीं रहने दिया जाता है।

दिवाकर कहते हैं प्रतिदिन मैनेजर उन्हें माँ-बहन की गालियां उनसे देकर काम करवाता है।

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इस कंपनी मे अलग अलग डिपार्ट्मेंटों को मिलाकर 200 लोग काम करते हैं। दिवाकर को इस कंपनी में काम करते हुए 4 साल हुए थे जबकि जयप्रकाश 13 साल पुराने कर्मचारी थे।

इसके पहले भी कंपनी ने ऐसे कई मजदूरों को बेतुके नियमों का पालन ना करने के कारण से निकाला जा चुका है।

हादसे की संभावना और तैयारी

वह बताते हैं कि उनकी फैक्ट्री की बिल्डिंग में भी आग से बचाव के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। जयप्रकाश कहते हैं, “उनके पास पाइप वाले बड़े फायर इक्स्टिंग्विशर एक भी नहीं है, सिर्फ छोटे सिलिन्डर वाले हैं। मेन गेट को कार्टून के डब्बे जमा कर घेर दिए जाते हैं जिससे निकलने का सकरा सा रास्ता बचता है ताकि बाहरवालों को लगे की अंदर सिर्फ गोदाम है।”

दोनों का कहना है कि कंपनी उस जगह को मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट के बजाय गोदाम दिखा कर के उनसे काम लेती है।

यूं तो दिल्ली में आग लगने की घटनाएं नई नहीं है लेकिन ये वारदातें कितनी ज्यादा हैं संख्या में, इसका इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस दिन मुंडका फैक्ट्री में आग लगी, ठीक उसी दिन कीर्ति नगर की 3 बैग फैक्टरियों में आग लगी। उसके अगले दिन नरेला इन्डस्ट्रीअल एरिया में आग लगी और फिर 3 दिन बाद फिर से नरेला में आग लगी।

“अगर किसी दिन आग लग गई, तो लोग निकल ही नहीं पाएंगे और अंदर ही मर जाएंगे,” सुरक्षा इंतेज़ामों पे चिंता जताते हुए उन्होंने कहा।

 

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