MCD Polls:अनाज मंडी के प्रवासी मज़दूरों को दंगे की याद दिलाते शहनवाज़ हुसैन

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By आमिर मलिक

भारतीय जनता पार्टी के मशहूर नेता शाहनवाज़ हुसैन दिल्ली के क़ुरैश नगर से मंच पर भाषण दे रहे थे। भाषणों को नेताओं का ज़ेवर कहा जाता है। वह इस ज़ेवर का जादू यहाँ काम करने वाले मज़दूरों पर चलाने की कोशिश कर रहे थे।

उनकी कोशिश थी कि इस ज़ेवर की रौशनी में मज़दूरों की आँखें चौंधियाँ जाएँ। वह इस घेट्टो में दिल्ली एम.सी.डी. चुनाव में भाजपा की एक प्रत्याशी के प्रचार के लिए हाज़िर हुए थे।

इनमे से अधिकतर मज़दूर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आते हैं, मुसलमान हैं। यह वही इलाक़ा है जहां तीन साल पहले अनाज मंडी में भीषण आग लगने से 42 मज़दूरों को जान से हाथ धोना पड़ा था।

इस इलाक़े में छोटे-मोटे आर्टिकल्ज़ — बैग, पर्स, बेल्ट, डाइरी, टोपी और खिलौने — बनाने का काम होता है। हर इमारत लगभग चौ-मंज़िला है और लगभग हर इमारत में कम-से-कम एक कारख़ाना ज़रूर है। हर कारख़ाने में प्रवासी मज़दूर काम करते हैं।

इनमें ज़्यादातर मज़दूर जवान लड़के होते हैं, जो अपनी शिक्षा से वंचित और ग़रीबी की मार खाए भटकते हुए इस तरफ़ आ गए। कहीं-कहीं किसी कारख़ाने में महिला मज़दूर भी काम करती नज़र आ जाती हैं।

शाहनवाज़ हुसैन ने मज़दूरों को एक शेर सुनाते हुए बताया कि भाजपा में काम करना कितना मुश्क़िल है। उन्होंने कहा— “मैं आग की भट्ठी में जलकर निकला हूँ। भाजपा में काम करना आसान नहीं, बहुत मुश्क़िल है।”

 

तीन साल पहले दिल्ली की अनाज मंडी के इसी इलाके में स्थित जूता फ़ैक्ट्री में भीषण अग्निकांड हुआ जिसमें 42 प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई थी-

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उन्होंने ग़ालिब को याद करते हुए कहा — भाजपा “इक आग का दरया है और (उसमें) डूब के जाना है।” मैं इंतेज़ार ही करता रह गया कि शाहनवाज़ हुसैन को कोई यह राय दे दे कि वह भट्टी को तर्क़ कर दें, दरया से निकल आएँ।

वह आख़िर कब तलक़ जलते रहेंगे और कब तलक़ डूबते रहेंगे। वह शेर अच्छा है। उसे सुनकर मज़दूरों ने दाद भी दिया, मगर उर्दू की ख़ूबसूरती का नुक़सान यह हुआ कि मज़दूरों के ज़ेहन पर ग़ालिब हावी हो गए।

कुर्सियों पर बैठे मज़दूर कुछ देर के लिए ही सही, शाहनवाज़ हुसैन, चुनाव, भाजपा और अपनी दिनभर की थकन को भुला बैठे थे। वह किसी को क्या राय देते।

बिहार के उद्योग मंत्री रह चुके शाहनवाज़ हुसैन ने प्रवासी मज़दूरों से कहा कि उनके लिए इस इलाक़े—क़ुरैश नगर—की सड़कें सही हो जाएँगी, बिजली और पानी का सही इंतेज़ाम हो जाएगा। साफ़-सफ़ाई रहा करेगी। अगले ही पल पूर्व मंत्री ने उनसे कहा — “हम आपको यहाँ रहने नहीं देंगे, वापिस अपने गाँव और क्षेत्र (बिहार) बुलावा भेजेंगे। वहीं रोज़गार के भी अवसर मुहैय्या कराए जाएँगे।”

ज्ञात हो कि यह मज़दूरों का तीसरा प्रवास है। वह पहली बार शहर का रुख़ कर रहे थे जब कृषि संकट गहराने लगा था। दूसरी बार ‘रिवर्स-मायग्रेशन’ हुआ जब कोरोना महामारी में उनको शहरों से महज़ चार घंटे की नोटिस पर निकाल दिया गया था।

यह फ़ैसला स्वयं प्रधानमंत्री के उज्ज्वल भाषण से निकलकर आया था। वह भी ज़ेवर था, जिसे मज़दूरों के कंधों पर थोप दिया गया था।

मैं आगे चाहता था कि सामने बैठे मज़दूर अब शाहनवाज़ हुसैन को ग़ालिब का एक शेर सुनाएँ —

“निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले”

शाहनवाज़ हुसैन ने इन मुसलमान मज़दूरों से कहा कि भाजपा को वोट देने के लिए अल्लाह आपको जहन्नुम में नहीं डालेगा।

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वह बता रहे थे कि विरोधी पार्टियाँ मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाकर उनको दक्षिणपंथी पार्टी से अलग रखती है,  “ऐसा नहीं है कि मुसलमान लालू (यादव), सोनिया (गांधी) और मुलायम (सिंह यादव) के साथ हैं तो उसे जन्नत मिलेगी, वहीं शाहनवाज़ और भाजपा के साथ है तो दोज़ख़ की खिड़की खुल जाएगी।”

उनका कहना बिलकुल सही लगा मगर मैंने इसे पत्रकारिता के नियम — टेक एव्रीथिंग विद अ पिंच ऑफ़ सॉल्ट — के आधार पर सोचा। इंसाफ़ के तमाम क़ानून इस बात पर मुत्तफ़िक है कि ज़ालिम का हिसाब तो होगा ही, ज़ालिमों का साथ देने वाले भी बख़्शें नहीं जाएँगे। शाहनवाज़ हुसैन शायद अभी भी आग की भट्ठी में तप रहे हैं।

मंत्री जी ने दिल्ली के सी.एम. पर कटाक्ष करते हुए कहा कि असल में अरविंद केजरीवाल हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने केजरीवाल के उस बयान पर टिप्पणी दी जिसमें देश की राजधानी के मुख्यमंत्री ने भारतीय करेन्सी नोट्स पर हिंदू भगवान लक्ष्मी और गणेश की फ़ोटो लगाने की बात कही थी।

‘अरविंद केजरीवाल सेक्युलर भी हों और यह भी कहें ऐसा नहीं हो सकता,’ शाहनवाज़ हुसैन ने इशारा किया।

शाहनवाज़ यहीं नहीं रुके, आगे बढ़े। वह केजरीवाल के अपनी पैदाइश जन्माष्टमी के दिन का बताने और न्यूज़ 24 को दिए हालिया बयान — जिसमें कभी भाजपा से लोहा लेने वाले अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि वह हिंदू है, हिंदुत्व नहीं करेंगे तो क्या करेंगे — का हवाला देकर यह बताने की कोशिश कर रहे थे दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का हिंदुत्व भाजपा के हिंदुत्व से गहरा है।

इस समय तक वह मज़दूरों को केजरीवाल का डर दिखाने लगे थे।

अब उनके निशाने पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आ गई थी। मंत्री जी कहने लगे कि भाजपा के शासन में कहीं कोई दंगा नहीं हुआ। वह कांग्रेस के शासन में हुए मेरठ दंगों का ज़िक्र कर रहे थे जब साल 1987 के 22 मई को वहां के हाशिमपुरा में पीएसी जवानों ने 42 मुसलमान युवकों को मौत के घाट उतार दिया था।

अगले दिन 23 मई को मलियाना गांव के 72 से अधिक मुसलमानों को भी इसी तरह हलाक़ कर दिया गया था। उन्होंने भागलपुर दंगे में मरने वालों को भी याद किया।

शाहनवाज़ हुसैन दंगों का ज़िक्र करते हुए ज़रा लड़खड़ाए, शायद उन्हें कुछ और याद आ गया हो। फिर दंगों की बात से हट गए। हुआ जो भी हो, उन्होंने गुजरात 2002 में हुए दंगों को मज़दूरों को नहीं बताया। शाहनवाज़ हुसैन ने नहीं बताया कि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री कौन थे, गृह राज्य मंत्री कौन थे?

यह अलग बात है कि आगे चलकर बयान यह तक आए कि ‘हमने कुछ तत्वों को 2002 में सबक़ सिखा दिया। तबसे इन तत्वों ने वह रास्ता छोड़ दिया और उन्होंने 2002 से 2022 तक हिंसा में शामिल होने का नाम नहीं लिया।’

इस दंगे के दौरान मरने वालों में अधिकतर मुसलमान थे और मृतकों की कुल संख्या 2,000 से अधिक थी। यह मुमकिन है कि गुजरात से दूर बैठे मंत्री जी से भूल हो गई हो और वह 2002 में गुजरात दंगों का ज़िक्र नहीं किया हो।

इस समय वो जिस मंच से अपने भाषण के ज़ेवर से मज़दूरों को मंत्रमुग्ध कर रहे थे, वहाँ पर फ़रवरी 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान पूरी तरह बंदी थी और लोग डर में साँस ले रहे थे।

शाहनवाज़ हुसैन ने इसका भी ज़िक्र करना गवारा नहीं किया। यह अलग बात है कि दिल्ली दंगों में भी भाजपा और पुलिस की साँठगाँठ की रिपोर्ट कई सारे खोजी पत्रकारिता करने वाले मीडिया हाउस ने छापी है।

भाषण ख़त्म होने के बाद जी तो किया कि जितने सवाल हैं, वह सारे पूछ लूँ। मगर मंत्री जी जल्दी में थे, कलाई पर बंधे पट्टे में कई बार वक़्त का मुआयना कर चुके थे। एक और पट्टा कहीं कोई दूसरी जगह बंधा हुआ, एक नज़र-ए-इनायत की आस लिए अपनी बदक़िस्मती की दुहाई दे रहा था।

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