
प्रेमचंद के गोदान का वह होली प्रसंग, साहूकार ने जब कर्ज देने से पहले आधे पैसे काट लिए…
गोबर के द्वार पर भंग घुट रही है, पान के बीड़े लग रहे हैं, रंग घोला जा रहा है, फर्श बिछा हुआ है, गाना हो रहा है, और चौपाल में …
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