खोरी गांव: पुनर्वास की मांग को लेकर बस्ती के बीचो-बीच बैठी महिलाएं, सरकार ने कोर्ट के आदेश को बनाया ढाल

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7 जून 2021 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश की पालना करने के लिए फरीदाबाद प्रशासन एवं फरीदाबाद नगर निगम ने बड़े पैमाने पर पुलिस बल तैनात करने के साथ खोरी गांव के लोगों को घर छोड़ने की घोषणा की किंतु आज खोरी गांव की महिलाएं पुनर्वास की मांग को लेकर खोरी गांव के बीचो बीच बैठ गई हैं।

पुनर्वास की मांग को लेकर खोरी में बैठी हुई महिलाएं कोरोना की महामारी में सरकार से सवाल पूछ रही है की बिना पुनर्वास के सरकार खोरी के परिवारों को बेदखल कर रही है जो कि इस महामारी में सरकार की ओर से खोरी गांव के लोगों को दिया गया मृत्यु दंड है।

उधर पिछले 3 दिनों से खोरी गांव के 15 व्यक्ति जोकि खोरी गांव के मसले को लेकर पिछले 3 दिन से जेल काट रहे थे उन्हें डिस्टिक कोर्ट फरीदाबाद में इन तमाम 15 लोगों को जमानत के साथ रिहा कर दिया गया है।

खोरी गांव की सीतादेवी पिछले 15 साल से खोरी गांव में रह रही है यह एक एकल नारी है इनका कहना है कि किसी भी प्रकार की सहायता करने वाला सीता के परिवार में कोई नहीं है ऐसी कोरोना की महामारी में वह खुले आसमान के नीचे ही मर जाएगी जिसकी जिम्मेदार सरकार होगी।

ममता का कहना है कि उसके पति बेलदार का काम करते हैं और पिछले डेढ़ वर्ष से उनके परिवार में किसी भी प्रकार की कोई आमदनी नहीं हुई जिसकी वजह से मांग मांग कर वह अपना गुजारा कर रही है अब सरकार उसके साथ पुनर्वास न देकर अन्याय कर रही है।

रेहाना बेगम जो कि एकल नारी है और उनका कहना है कि वह अपने परिवार में अकेली महिला है और एक विधवा महिला को इस उम्र में कहीं पर भी कोई रोजगार नहीं मिल रहा है किंतु घर का आशियाना है जिसकी वजह से वह जिंदा है आसपास के लोग उसे खाने पीने में भी मदद करते हैं किंतु जब घर ही उजड़ जाएगा तो उसका कोई सहारा नहीं रहेगा। सरकार उसका सहारा क्यों नही बन रही है यह सवाल वह मुख्यमंत्री से कर रही है।

कल्पना नाम की महिला बताती है कि पति भी उसको छोड़ कर चला गया है और पिछले 10 वर्ष से व खोरी गांव में अपनी जिंदगी काट रही है । सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद व सरकार की तरफ टकटकी लगाए पुनर्वास की आस में देख रही है कि हरियाणा सरकार उसे इस महामारी और संकट के समय में जरूर राहत देगी । अभी भी उसको पूरी उम्मीद है किंतु सरकार मन है पुनर्वास के मुद्दे पर।

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के महासचिव निर्मल गोराना ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली के आदेश दिए हैं किंतु सरकार स्लम ड्वेलर्स को उनके पुनर्वास के अधिकार से वंचित कर रही है। सरकार को अपनी भूमिका पूर्ण संवेदनशीलता के साथ अदा करनी चाहिए जो कि उनका दायित्व है किंतु सरकार यदि अपने दायित्व से भागती है तो यहां पर सामाजिक न्याय का सरकार द्वारा ही गला घोटा जा रहा है।

सरकार को एक योजनाबद्ध तरीके से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना करनी चाहिए न कि तीव्र आवेश में आकर समाज के अंतिम पायदान पर खड़े इन खोरी गांव निवासियों पर प्रहार कर दिया जाए तो यह अन्याय होगा यदि उन्हें समुचित पुनर्वास न प्रदान किया जाए।

बस्ती सुरक्षा मंच के निलेश एवं राणा पॉल ने बताया की कई संगठनों की ओर से हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री एवं फरीदाबाद जिले के उपायुक्त और नगर निगम कमिश्नर को लगभग एक हजार से ज्यादा इमेल प्राप्त हुए हैं किंतु किसी भी आला अधिकारी एवं सरकार के प्रतिनिधि ने न तो कोई संज्ञान लिया है और न तो मीडिया और जनता के बीच में उनका जिक्र किया है।

इससे यह प्रतीत होता है कि सरकार के पास कोई योजना नहीं है पुनर्वास से बचने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बहाना बना रही है सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना सरकार को जिस ढंग से करनी चाहिए वह सरकार के जेहन में भी नहीं लगता है। फरीदाबाद में अरावली पर्वत माला के इस जंगलात में कई ऐसे स्ट्रक्चर हैं जिनके मालिक अमीर हैं किंतु सरकार एवं प्रशासन उनका जिक्र तक नहीं कर रहे हैं।

जन आंदोलनों की राष्ट्रीय समन्वय के विमल ने बताया कि सरकार को चाहिए कि वह सर्वोच्च न्यायालय को अगली तारीख तक इस आबादी को दूसरी जगह भेजने का योजना दाखिल करें कोरोना काल में सरकार को अत्यंत मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा करनी होगी राज्य भर से जंगलों के कब्जे खाली करने की भी योजना सरकार को देनी चाहिए।

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