पंजाबः 16000 सफाई कर्मचारियों को मिलता है 300 रुपये महीना, वो भी 2014 से नहीं मिला

(सफ़ाई कर्मचारियों की मौतों पर उनकी दैनिक दुर्दशा की ख़बरें सुर्खियां बनती हैं। इन्हें भी कानूनी दलीलों में लटेप कर परोसा जाता है लेकिन बहुत कम ऐसा होता है कि उनकी ज़िंदगी की उस तस्वीर पर बात हो जो वो अपने जन्म से ही करते सहते आए हैं। गांवों में बसी इस कामगार आबादी के लिए आज़ादी से पहले से बात उठाई जाती रही है लेकिन आज भी उनकी स्थिति में मामूली सुधार ही हो पाया है। हम इस कहानी को लोगों तक पहुंचाना ज़रूरी समझते हैं। अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की संवाददाता अंजू अग्निहोत्री छाबा ने पंजाब के गांवों में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों के हालात पर एक ज़मीनी रिपोर्ट तैयार की है जिसे अंग्रेज़ी अख़बार ने दिल्ली के संस्करण में बॉटम स्टोरी बनाया है। इस कहानी का अद्यतन अनुवाद यहां साभार प्रकाशित किया जा रहा है। स.मं.)

जालंधर के गुरु चरण सिंह और उनकी पत्नी सुंदरम सुबह 5 बजे उठते हैं।

दोनों अपनी झाड़ू उठाते हैं और लगभग 30 सड़कों को साफ करते हैं, नालियों को साफ करते हैं और फिर घर लौट आते हैं।

इसके बदले उनमें से हर एक को ग्राम पंचायत 300 रुपये महीना भत्ता ही देती है।

इसके अलावा उनको टुटकलां और बिल्ला नवाब गांव के लगभग 500 घरों से हर सप्ताह एक कटोरी आटा मिलता है।

लेकिन गुरु चरण सिंह और उनकी पत्नी की ही तरह  पंजाब के 22 जिलों के 13,018 ग्राम पंचायतों में काम करने वाले 16,000 सफाई कर्मचारियों को सरकार से मिलने वाले इस मामूली भत्ते की राशि पिछले 4 साल से नहीं मिली है।

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34 साल से पति पत्नी करते हैं सफ़ाई का काम

गुरुचरण सिंह बताते हैं, “मैं 1984 से ही अपने गांव की सफाई करता हूं। उस समय मेरी शादी हो गई थी, मेरी पत्नी ने भी पड़ोस के ग्राम पंचायत में यही काम शुरू किया। पहले गांव के हर घर से हमें एक कटोरा आटा काम के बदले मिलता था और 2007 से पंजाब सरकार ने हमें 300 रुपये महीना भत्ता देना शुरू किया।”

वो कहते हैं, “लेकिन इस मामूली सरकारी नौकरी से हमारा घर चलाना स्कूल जाने वाले चार बच्चों को पालना संभव नहीं था। इसके अलावा हमारे पास कुछ सूअर और गाय भी थीं। अपनी आजीविका के लिए हमने सूअर पालन शुरू किया था।”

जीवन जीने लायक मजदूरी न मिलना, केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान पर एक सवालिया निशान है।

पंजाब सरकार ने 2007 में जो 300 रुपये महीने का भत्ता देना शुरू किया था, वह भी 2014 से बंद है।

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क्या कहते हैं अफ़सर

लेकिन वह भी अभी तक मजदूरों को तक नहीं पहुंचा है।

होना तो यह चाहिए था की बकाया राशि मजदूरों के बैंक खातों में अबतक जमा हो जाती।

जालंधर में जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी डीडीपीओ अजय कुमार ने बताया कि ‘वो सफाई कर्मचारियों के खातों से संबंधित जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं और उनकी बकाया राशि जल्द ही उनके खाते में भेज दी जाएगी।’ वो मानते हैं कि 300 रुपये महीने का भत्ता बहुत ही मामूली है।

राशि मिलने में देरी पर वो कहते हैं कि ‘अगर एक भी खाते का नंबर गलत होता है तो पूरा का पूरा फंड रुक जाता है लेकिन हम इस साल मिली राशि का पूरा उपयोग करेंगे।’

हालांकि सरकार की ओर से 3 साल के बकाए के बारे में अभी तक कोई आश्वासन नहीं किया गया है।

ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग के सचिव अनुराग वर्मा कहते हैं कि ‘यह राशि बहुत ही छोटी है। 2015 से 2017 के बीच जो बकाया राशि है वो उसको पहले क्लियर करवाने की कोशिश करेंगे।’

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सफाई कर्मचारी। (फ़ोटो अरेंज्ड)

हरियाणा में मिलता है पंजाब से अधिक

इस विभाग के डायरेक्टर जसकरण सिंह ने भी कहा इस मामूली भत्ते के मामले को आगे तक ले जाएंगे।

हालांकि गुरु चरण अन्य सफाई कर्मचारियों के मुकाबले अच्छी स्थिति में हैं।

वो कहते हैं, “मेरी पत्नी अभी भी इस मामूली भत्ते और एक कटोरे आटे पर काम कर रही हैं, लेकिन तीन दशकों की सेवा के बाद मेरे ग्राम पंचायत ने 2000 रुपये तनख्वाह देना शुरू किया है, पर यह भी राशि महीनों इंतजार के बाद आती है।”

सफाई मजदूर यूनियन पंजाब के प्रेसिडेंट प्रेमलाल सरकार कहते हैं, “यहां पर कुल 16,000 सफाई कर्मचारी हैं जिन्हें भत्ता मिलता है, जबकि पूरे राज्य में 10% पंचायतें साफ सफाई के लिए 1500 से 2,000 रुपये महीने का भुगतान करती हैं।”

वह कहते हैं “आज के समय कोई भी व्यक्ति किस तरह 300 रुपये में गुजारा कर सकता है। यहां तक कि पड़ोसी राज्य हरियाणा जहां 3,500 रुपये महीने का भत्ता शुरू किया गया था, अब वहां ऐसे कर्मचारियों को 10,500 रुपये मिलते हैं।”

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