लॉकडाउन के बाद अब यूपी के गांवों में आत्महत्याओं का लगा तांता

suicide

अचानक लॉकडाउन की घोषणा से क्या नफा हुआ? इसे मोदी सरकार और उसके समर्थक जनता को नहीं बता पाए है, जबकि बीजेपी बिहार चुनावों की तैयारी भी शुरू कर दी है।

लेकिन इस लॉकडाउन के कारण आम लोगों के हाथ से नौकरियां चली गईं, मज़दूर सड़कों पर आ गए, बच्चों का भविष्य अंधकार में डूब गया और मेहनतकश वर्ग आत्महत्या की राह पर चल पड़ा।

यूपी के गांव की हालत और भी बेकाबू होती जा रही है। जिस तरह मज़दूर अपने गांव जैसे तैसे पहुंचे ग्रामीण अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी है। अब ये सिलसिला आत्महत्या की ओर मुड़ रहा है।

आर्थिक तंगी, घर की परेशानियां और लॉकडाउन से उपजे मानसिक तनाव ने पूरी तरह सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक कलई खोल दी है।

इसकी शुरुआत मार्च में ही हो जाती है, जब लॉकडाउन की घोषणा हुई, लाखों की संख्या में मज़दूर पैदल ही गांव निकल पड़े।

इन्हीं में एक रोशन लाल जो 25 मार्च को गुड़गांव से चल कर किसी तरह अपने गांव पहुंचते हैं। उनको वहां क्वारेंटीन सेंटर में रखा जाता है।

जैसा कि सारे देश में क्वारंटीन सेंटरों की हालत है, यहां भी खाने-पीने और सोने तक की कोई व्यवस्था नहीं होती।

इन अव्यस्थाओं से परेशान रोशन लाल अपने घर पहुंच जाते हैं। इसकी ख़बर लगते ही यूपी पुलिस के दो जवान उनके घर पहुंच जाते हैं और घर वालों के सामने बहुत मारते हैं।

इस जलालत से तंग आकर रोशन लाल 31 मार्च को आत्महत्या कर लेते हैं।

चार मई को सरकार शराब के ठेके खोलने की अनुमति दे देती है। जब तब ठेके नहीं खुले थे लोग अपने को रोके हुए थे। पर जैसे ही ठेके खुले वैसे ही घरों में झगड़ा बढ़ गया। ऐसी ही एक घटना सामने आई गोरखपुर के उनोला गांव की।

अजय निषाद जिनकी शादी पूजा निषाद से हुई थी दस साल पहले। दोनों में शराब को लेकर झगड़ा हुआ।

पूजा उससे इतना दुखी हुई कि उसने अपने तीन मासूम बच्चियों के साथ जा कर रेल के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली।

सारिका 9 वर्ष, सिमरन 7 वर्ष, सौम्य 5 साल की थी।

30 मई को लखीमपुर खीरी ज़िले के मोगलगंज के रहने वाले भानु गुप्ता ने आत्महत्या कर ली रेल से कटकर।

उनकी जेब से एक सुसाइड नोट मिला जिसमें उनकी तंग हालत और इस लॉकडाउन में छूटा उनका काम था।

भानु शाहजहांपुर में एक रेस्टोरेंट में नॉकरी करते थे। वो अपने सुसाइड नोट में लिखते हैं कि ‘वो सही से अपनी बूढ़ी माँ की भी दवाई नहीं करा पा रहे हैं। न घर पर खाना है और न ही ज़रूरत की कोई चीज।’

भानु के तीन बच्चे हैं, पत्नी और एक बूढ़ी माँ है।

मुज्जफरनगर नगर ज़िले के सिसौली गांव के रहने वाले किसान ओमपाल सिंह ने अपने खेत में ही फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली।

वो आर्थिक तंगी से जूझ रहे उन किसानों में से एक हैं, जिनका मिलों पर गन्ने का पूरे साल का भुगतान बाकी है।

ओमपाल सिंह की चार बेटियां और एक बेटा है, उनको अपनी बेटियों की शादी की चिंता सता रही थी।

इसी तरह 5 जून को औरैया ज़िले रुरूकला गांव में बेटे और माँ ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली।

आलू और गेंहू की फसल बर्बाद हो जाने पर उनकी घर की आर्थिक स्थिति पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी। अवध किशोर और उसकी माँ राजमती ने आत्महत्या कर ली।

चार जून को बाराबंकी जिले सफेदाबाद में एक परिवार के पांच लोगों ने आत्महत्या कर ली।

पहले पति पत्नी दोनों ने मिलकर अपने तीनों बच्चों को मार डाला और फिर दोनों ने फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली।

विवेक शुक्ला और उसकी पत्नी अनामिका व तीन बच्चे ऋतु, पोयम, बबल थे।

देश में लॉकडाउन कोरोना के बढ़ते कदम को रोकने के लिए किया गया था लेकिन हुआ ठीक उसका उलटा। इस लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी दर में भयानक इज़ाफा हुआ है।

अप्रैल महिने में बेरोजगारी दर में 14.8 फीसदी का इज़ाफा हुआ है। देश में बेरोजगारी दर अब 23.5 फीसदी से भी अधिक हो गई है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के एक सर्वे में यह बात सामने आई है। मार्च के मुकाबले बेरोज़गारी की दर में 200 फीसदी से अधिक का इज़ाफा है।

यही नहीं कुछ राज्यों का आलम यह कि लगभग हर तीसरा आदमी बेरोजगार बैठा है।

बढ़ती बेरोजगारी दर के साथ-साथ आत्महत्या के मामले भी बढ़े हैं। शोधार्थियों के एक समूह द्वारा एकत्र किए गए डाटा के अनुसार, भारत में 19 मार्च से 2 मई के बीच 80 लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जान ले ली और 36 लोगों की मौत आर्थिक तंगी, भुखमरी से हुई है।

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