पंजाब के गांव में खेतिहर मज़दूरों की दिहाड़ी तय करने पर हंगामा, किसान यूनियनों ने की निंदा

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पंजाब के एक गांव में किसानों की ओर से खेतिहर मज़दूरों की मज़दूरी तय करने का वीडियो वायरल होने के बाद ग़रीब और धनी किसानों के बीच तीखी बहस शुरू हो गई है।

ये वीडियो लुधियाना ज़िले के तहसील रायलोक के कालसां गांव का है। इस वीडियो में एक व्यक्ति धान की प्रति किले रोपाई की मज़दूरी तय करने की जानकारी दे रहा है।

व्यक्ति को कहते हुए सुना जा सकता है कि पंचायत में तय हुआ है कि पिछले साल कोरोना आड़ में किसानों की लूट हुई है और प्रति किले साढ़े पांच हज़ार रुपये तक मज़दूरी ली गई। इसे देखते हुए इस बार ये मज़दूरी प्रति किले राशन समेत 3,200 रुपये और बिना राशन 3,500 रुपये किया गया है। इसका उल्लंघन करने वाले दोनों पक्षों पर 5000 रुपये का ज़ुर्माना लगाया जायेगा।

इस वीडियो के वायरल होने के बाद पंजाब की किसान यूनियनों पर राजनीतिक पार्टियों ने निशाना साधना शुरू कर दिया है जबकि किसान यूनियनों ने ऐसे तुगलकी फरमान की निंदा की है और क़ानूनी कार्यवाही करने की मांग की है।

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पंजाब की सभी किसान यूनियनें दिल्ली में बीते छह महीने से डेरा डाले हुए हैं और उनका दावा है कि धनी किसान और ग़रीब किसान दोनों इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन इस वीडियो ने धनी ग़रीब किसानों के बीच की दरार को सामने ला दिया है।

मोदी सरकार लगातार ये कहती आ रही है कि प्रदर्शन कर रहे किसान धनी जाट किसान हैं और खेती किसानी में मिलने वाली सब्सिडी का बड़ा हिस्सा हड़प कर जाते हैं, साथ ही वे भूमिहीन किसानों का शोषण करते हैं।

ज़मीन प्राति संघर्ष समिति के नेता गुरमुख ने फ़ोन पर वर्कर्स यूनिटी से कहा है कि पंचायतों को मज़दूरी तय करने का हक़ नहीं है और इन पर क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।

हालांकि वो कहते हैं कि पंजाब में इस वीडियो को सबसे अधिक बीजेपी और बीएसपी वाले प्रचारित कर रहे हैं क्योंकि चुनाव आने वाला है।

उनका कहना है कि किसानों और खेतिहर मज़दूरों के बीच अंतरविरोध हैं और ये घटना इक्का दुक्का ही हुई है। इसको लेकर पेड़ू मज़दूर यूनियन के लोग कलसन गांव पहुंचे हैं।

गुरमुख कहते हैं, “पिछले साल जिस तरह गांव गांव में मज़दूरी तय की जाने लगी थी, इस बार वैसा तो नहीं है। इस बार काफ़ी प्रवासी मज़दूर पंजाब आ चुके हैं। जिन कुछ गांवों में ये लोग नहीं आए हैं, उनमें से एक गांव कलसन में ये घटना प्रकाश में आई है।”

उनका कहना है कि पंजाब में अगले साल चुनाव होने वाला है और बीजेपी और बीएसपी के लोग दलित आबादी में इसका खूब प्रचार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि पंजाब में किसान तो 22 प्रतिशत हैं जबकि दलित आबादी 35 प्रतिशत है। वो चाहते हैं दलित वोट उन्हें मिल जाए।

असल में जबसे किसान आंदोलन शुरू हुआ है ग़रीब और धनी किसान की बहस और तेज़ हुई है और ताज़ा घटना इस अंतरविरोध को और ज़ाहिर करती है।

किसान आंदोलन में दलित और भूमिहीन मज़दूरों की भागीदारी पर भी सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी इसे जाट किसान आंदोलन करार देती रही है और जाट-गैरजाट का भेद भी पैदा करने कोशिश करती रही है।

गुरमुख मानते हैं कि किसान आंदोलन में दलित आबादी उतनी संख्या में साथ नहीं है। लेकिन वो साथ में ये भी कहते हैं कि दलित और खेतिहर मज़दूर यूनियनें किसान यूनियनों के साथ हैं। भूमिहीन आबादी किसान आंदोलन के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन वो प्रदर्शन में भी उतना शामिल नहीं है।

गौरतलब है कि बीते साल भी इस तरह घटना सामने आई थी जब गांवों में गुरुद्वारों से दलित मज़दूरों के बहिष्कार का ऐलान किया गया, क्योंकि वे मज़दूरी वृद्धि चाहते थे, जबकि पंचायतों ने पहले ही मज़दूरी बांध दी थी।

पंजाब में दलित आबादी

पंजाब में दलित आबादी क़रीब 35 प्रतिशत है लेकिन उसके पास कुल कृषि भूमि का सिर्फ़ 6.02 प्रतिशत है। राज्य में कुल 5 लाख 23 हज़ार ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों में दलितों की संख्या 3 लाख 21 हज़ार है जोकि 61.4 प्रतिशत बैठती है।

अर्थशास्त्री सुखपाल सिंह के एक सर्वे के अनुसार 81 प्रतिशत खेत मज़दूर परिवारों पर औसतन 1,01,837 रुपये कर्ज है जिनमें से ज्यादातर दलित हैं जबकि खेत मज़दूरों की औसत सालाना आय 23,464 रुपये है।

ट्रिब्यून अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार 2019-20 में मनरेगा के तहत पंजाब में साल भर में सिर्फ़ 31 दिन ही रोज़गार मुहैया करवाया गया।

बठिंडा आधारित, एक ग्रामीण खेत मजदूर यूनियन ने 2017 में एक सर्वे किया था। जिसमें 6 जिलों के 13 गाँवों के 1618 मज़दूर परिवारों से आँकड़े इकट्ठे किये गये।

इसमें पता चला कि 1618 परिवारों में से 1364 परिवारों पर कुल 12.47 करोड़ का कर्ज़ था यानी औसतन हर परिवार पर 91,437 रुपये का कर्ज़। यह बात भी सामने आई कि कर्ज़ का ज्यादातर हिस्सा बड़े किसान जो 10 या उससे ज्यादा एकड़ के मालिक हैं उन्हीं से लिया गया है।

(इंद्रजीत अरविंद के फ़ेसबुक से साभार इनपुट)

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