क्या नेस्ले समालखा यूनियन की फ़ाइल रिजेक्ट करने में सीएम खट्टर से दबाव बनाया जा रहा है?

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/06/Nestle-Samalakha-gate-meeting.jpg

हरियाणा के पानीपत में समालखा में स्थित मल्टीनेशनल कंपनी नेस्ले इंडिया के प्लांट में यूनियन बनाने से रोकने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

यूनियन बनाने के लिए संघर्षरत कर्मचारियों का कहना है कि मैनेजमेंट और सीएम ऑफ़िस के बीच मिलीभगत के कारण यूनियन पंजीकरण रद्द होने का ख़तरा मंडरा रहा है।

पंजीकरण के लिए जमा दस्तावेजों और अपील को एक बार तो श्रम विभाग द्वारा इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि मैनेजमेंट ने आरोप लगाया कि कंपनी में ड्यूटी के दौरान यूनियन के लिए वर्करों ने मीटिंग की।

अब दूसरी बार यूनियन पंजीकरण के आवेदन को रद्द करने के लिए बहाना बनाया जा रहा है कि 28 नवंबर 2022 को वर्कर ड्यूटी के दौरान ज़ूम मीटिंग में शामिल हुए थे।

श्रम विभाग का कहना है कि मैनेजमेंट ने इस मीटिंग को अवैध करार देते हुए आपत्ति दर्ज कराई है।

नेस्ले वर्कर्स यूनिटी, समालखा के महामंत्री भवानी सिंह 14 जून यानी बुधवार को चंडीगढ़ श्रम कार्यालय गए थे और उन्होंने बताया कि पूरे दिन बैठने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई।

नेस्ले इंडिया लिमिटेड समालखा कारखाने में स्थाई कर्मचारियों द्वारा स्वतंत्र संगठन नेस्ले वर्कर्स यूनिटी का गठन नवंबर 2022 में किया गया था और पंजीकरण के लिए दस्तावेज श्रम आयुक्त चंडीगढ़ को प्रेषित किए गए।

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2023/06/Nestle-Samalakha-2.jpg

दूसरी बार पंजीकरण में अड़ंगा

दो महीने से भी ज्यादा समय तक दस्तावेज श्रम कार्यालय चंडीगढ़ में रखे रहे। जब नस्ले वर्कर्स यूनिटी के पदाधिकारियों द्वारा पंजीकरण को लेकर के श्रम विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो अतिरिक्त श्रम आयुक्त अनुराधा लामा ने बताया कि दस्तावेज कार्यालय से चोरी हो गए या इधर उधर हो गए, मिल नहीं रहे।

उन्होंने दस्तावेजों की दूसरी कॉपी भेजने को कहा और रजिस्ट्रेशन फॉर्म भी दोबारा जमा करवाने की बात कही।

इसके बाद यूनियन के प्रतिनिधियों ने दोबारा फॉर्म भर कर 13 मार्च 2023 को दस्तावेज समेत श्रम विभाग को दे दिये।

इसके बाद श्रम विभाग पानीपत ने 64 में से 63 सदस्यों का श्रम कार्यालय पानीपत में बुलाकर सत्यापन खुद श्रम निरीक्षक बलजीत सिंह ने किया और प्रबंधन द्वारा सत्यापन संबंधित दस्तावेज लेकर श्रम कार्यालय चंडीगढ़ को भेज दिए गए।

यूनियन प्रतिनिधियों का आरोप है कि नेस्ले समालखा का मैनेजमेंट नहीं चाहता कि नेस्ले वर्कर्स यूनिटी का पंजीकरण हो, इसलिए वो अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए श्रम विभाग पर पंजीकरण निरस्त करने का दबाव बना रहा है।

उन्होंने ये भी आरोप लगाए कि “ऐसा भी सुनने में आया है कि प्रबंधन द्वारा हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का भी इस्तेमाल पंजीकरण को रोकने के लिए किया जा रहा है।”

प्लांट में मैनेजमेंट और अगुवा मज़दूरों के बीच तनाव तब चरम पर पहुंच गया था पिछले साल 14 अक्टूबर को नेस्ले वर्कर्स यूनिटी के कर्मचारी सुरेश चंद पर हमला हुआ था और इस मामले में प्रबंधन पर एफ़आईआर भी दर्ज कराई गई थी।

इससे पहले नेस्ले वर्कर्स यूनियन के नाम से संगठन का निर्माण किया गया था और पंजीकरण के लिए दस्तावेज भेजे गए जिनका सत्यापन सहायक श्रम आयुक्त पानीपत सर्किल 1 सत्यनारायण शर्मा द्वारा किया गया था।

कर्मचारियों का आरोप है कि इस मामले में भी यूनियन न बनने देने के लिए प्रबंधन के साथ मिलकर ऐसे सदस्यों के शपथ पत्र लगाए गए जो नेस्ले वर्कर्स यूनियन के सदस्य भी नहीं थे और उनको आधार बनाते हुए यूनियन के पंजीकरण को रद्द कर दिया गया।

यूनियन के एक प्रतिनिधि ने बताया कि ये साफ़ है कि नेस्ले प्रबंधन प्रशासन और श्रम विभाग सब मिलकर यूनियन के पंजीकरण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि  इस तरह मजदूरों के मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है। और सुनने में आ रहा है कि प्रबंधन माननीय मुख्यमंत्री का इस्तेमाल करते हुए यूनियन को पंजीकरण होने से रोकने का अथक प्रयास कर रही है।

श्रम विभाग के सूत्रों ने अपना नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर ये भी कहा कि ऊपर से भारी दबाव के चलते शायद यूनियन पंजीकरण का आवेदन इस बार भी रद्द कर दिया जा सकता है।

नेस्ले और सीएम खट्टर

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पानीपत, समालखा नेस्ले प्लांट में साल 2019 में आए थे जब लोकसभा के चुनावों के दौरान गए थे, वहां उन्होंने सभा भी की थी।

नेस्ले के कर्मचारी बताते हैं कि आम तौर पर जब भी इस इलाक़े में मुख्यमंत्री का हेलीकाप्टर है तो समालखा प्लांट में नेस्ले परिसर में हैलीपैड पर उतरती है।

ये भी कहा जाता है कि राज्य में निवेश को लेकर बीजेपी सरकार का ख़ास फोकस है और वो निवेश को आकर्षित करने के लिए कार्पोरेट कंपनियों को कई योजनाओं के तहत छूट देने की नीति अपनाती है।

अतीत में भी ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जब औद्योगिक असंतोष में मल्टीनेशनल कंपनियां स्थानीय प्रशासन की बजाय सीधे केंद्र सरकार के स्तर पर और मुख्यमंत्री कार्यालय के स्तर पर हस्तक्षेप करती रही हैं।

साल 2011 में मानेसर में मारुति कार प्लांट में उठे श्रमिक असंतोष में भी ये बात उभर कर आई थी कि कंपनी मैनेजमेंट सीदे सीएम कार्यालय से वार्ता करता था। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी।

र्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

(वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर सकते हैं। टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.