जिंदल यूनिवर्सिटी ने ‘नज़रिया’ पत्रिका निकालने वाले स्टूडेंट को किया निलंबित, किसानों मजदूरों से जुड़े लेख को बताया आपत्तिजनक

ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी सोनीपत ने सामाजिक मुद्दों पर पत्रिका निकालने के लिए उससे जुड़े छात्रों को निलंबित कर दिया है।

छात्रों का एक समूह यूनिवर्सिटी कैंपस के अंतर मज़दूरों, किसानों, छात्रों और बुद्धिजीवियों के मुद्दों पर केंद्रित  अंग्रेजी पत्रिका “नज़रिया” निकालता है।

बीती 28 जुलाई को ये छात्र कैंपस में स्टॉल लगाकर ये पत्रिका वितरित कर रहे थे। निलंबित छात्रों का आरोप है कि बस इसी बात को लेकर उनपर कार्रवाई की गई है।

नज़रिया की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ के अनुसार यूनिवर्सिटी प्रशासन ने स्टूडेंट्स को अपना स्टॉल हटाने लेने के लिए कहा।

उनका कहना था कि कैंपस में उसी दौरान एक और कार्यक्रम हो रहा है और इससे स्टूडेंट्स में कन्फ्यूज़न फैलेगा। हालांकि दूसरा कार्यक्रम फ़्रेशर्स की वेलकम पार्टी थी और स्टाल कैंपस में दूसरी जगह लगा था।

जब “नज़रिया” से जुड़े स्टूडेंट्स ने सवाल किया तो कैंपस में तैनात गार्डों ने पत्रिका की सामग्री “आपत्तिजनक” बताते हुए तीन पत्रिकाएं ज़ब्त करते हुए जबरदस्ती स्टॉल हटवा दिया।

बयान के मुताबिक, सिक्युरिटी गार्ड का कहना था कि वे इस पत्रिका में जो छपा है उसकी ‘जांच’ करेंगे।

इसके बाद 29 जुलाई को स्टूडेंट्स ने एक बार फिर स्टॉल लगाया। इस बार कैंपस में तैनात सिक्योरिटी गार्ड्स ने भारी संख्या में आकर स्टॉल घेर लिया और सभी पत्रिकाओं को जबरदस्ती जब्त कर लिया।

उन्होंने सभी पोस्टर, फ्लेक्स बोर्ड छीन लिए और बलपूर्वक स्टॉल हटा दिया।

एक ‘ई-मेल’ से निलंबन

इसके बाद स्टूडेंट्स को एक ईमेल आया जिसमें कहा गया कि, “चीफ प्रॉक्टर कार्यालय ने यूनिवर्सिटी कैंपस के माहौल को भंग करने के इरादे से अनियंत्रित/अव्यवस्थित आचरण का स्वत: संज्ञान लिया है। यह हमारे ध्यान में लाया गया है कि आपने बिना किसी प्राधिकारी की अनुमति के विश्वविद्यालय परिसर के भीतर एक स्टॉल लगाया और ‘राजनीतिक रूप से संवेदनशील’ सामग्री वितरित कर रहे हैं और बावजूद आपको इन गतिविधियों को बंद करने के लिए चेतवानी के बाद भी आप लगातार, स्टूडेंट्स के एक बड़े हिस्से को रोज़मर्रा के कामकाज बाधित करने के लिए उकसा रहे हैं।”

“नज़रिया” टीम ने अपने बयान में कहा है कि- निलंबन आदेश में हास्यास्पद रूप से यह भी कहा गया है कि “चीफ प्रॉक्टर ने आपसे बात करने की कोशिश की लेकिन आपने अपनी आवाज ऊंची करके चीफ प्रॉक्टर के साथ दुर्व्यवहार किया और उनके मुँह पे ही फोन काट दिया।”

यूनिवर्सिटी प्रशासन की ओर से की गई एकतरफ़ा कार्रवाई के ख़िलाफ़ एक छात्र ने तुरंत भूख हड़ताल और मौके पर ही धरना देने की घोषणा कर दी और साथ ही अन्य छात्र उनके साथ धरने पर बैठ गए ।

“नज़रिया” टीम के बयान में कहा गया है, “हम विश्वविद्यालय प्रशासन की इस नियत पर सवाल उठाते हैं जिसने इन छात्रों को एक पत्रिका वितरित करने के लिए निलंबित कर दिया है जो भारत में कृषि संकट, जाति और बंधुआ मजदूरी के साथ-साथ किसानों के कर्ज के मुद्दे की बात करती है, विश्विद्यालय यह दावा करता है कि ऐसी सामग्री ‘राजनीतिक रूप से संवेदनशील’ है।”

इसी तरह, छात्रों ने “छात्रों को राजनीतिक क्यों होना चाहिए” शीर्षक से एक पुस्तिका लिखी थी जिसे उन्होंने पत्रिका के साथ ही वितरित किया था |

इसमें मुख्य तर्क यह था की, शिक्षा की अंतर्निहित प्रकृति राजनीतिक है और इसलिए छात्रों को भूमिहीन किसानों और श्रमिक वर्ग के आंदोलनों में भाग लेना चाहिए।

पैम्फलेट में छात्रों से किसानों और श्रमिकों के साथ मिलके काम करने का आग्रह किया गया था और यही बात विश्वविद्यालय प्रशासन को आपत्तिजनक लगा।

30 जुलाई, 2023 की सुबह तक भूख हड़ताल और धरना-प्रदर्शन जारी है।

भूख हड़ताल करने वाले छात्र को अभी तक भी विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई मानवीय देखभाल की पहल नहीं की गई है और न ही स्वास्थ्य की जांच के लिए किसी डॉक्टर को भेजा गया है।

“नज़रिया” ने अपने बयान में कहा है कि छात्रों के राजनीतिक विचार और पहल को दबाने के प्रयास में प्रशासन द्वारा छात्रों के विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को दबाया जा रहा है। छात्रों को बार-बार अनौपचारिक रूप से बताया जाता है कि उनकी सभी माँगें मान ली गई हैं लेकिन विश्वविद्यालय ने अभी तक किसी भी औपचारिक तरीके से उनकी माँगों को स्वीकार नहीं किया है।

स्टूडेंट्स की मांगें

1. स्वत: संज्ञान लेते हुए निलंबन को बिना शर्त रद्द किया जाना चाहिए। यह निलंबन बिना किसी औपचारिक प्रक्रिया के और केवल चीफ प्रॉक्टर कार्यालय के पूर्वाग्रहों के कारण छात्रों पर थोपा गया है।

2. एक औपचारिक बातचीत प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए जिसमें विश्वविद्यालय का एक पूर्व छात्र, जो छात्रों द्वारा स्वतंत्र रूप से चुना जायेगा और जिस पर इस प्रशासन का कोई प्रभाव नहीं है, विश्वविद्यालय के साथ बातचीत करेगा |

3. जब्त की गई पत्रिकाएं, फ्लेक्स बोर्ड और पोस्टर बिना किसी शर्त के वापस किया जाये।

4. विश्वविद्यालय अपने कार्यों और छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों में कटौती के लिए सार्वजनिक माफीनामा जारी करे।

5. निजी विश्वविद्यालय को भी छात्रों को अपने आवासीय परिसर में स्वतंत्र रूप से राजनीतिक चर्चा में शामिल होने की अनुमति देनी पड़ेगी , साथ ही प्रशासन को इस बात का कोई अधिकार नहीं है कि वो निर्णय करे कि क्या “राजनीतिक रूप से संवेदनशील” है और क्या नहीं है।

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