विस्ट्रॉन: क्षुब्ध श्रमिकों का स्वयंस्फूर्त विद्रोह-1

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    By एम. असीम

मजदूरी के भुगतान न होने या विलंब से होने, 12 घंटे की शिफ्ट, भोजन व शौचालय विश्राम में कटौती, छुट्टी के दिन बिना भुगतान के काम के लिए मजबूर करना, मजदूरी काटने के लिए हाजरी में हेराफेरी और ऐसी ही अन्य समस्याओं के चलते कोलार, कर्नाटक में विस्ट्रॉन इंफ़ोटेक की फ़ैक्टरी के हजारों मजदूर 12 दिसंबर की सुबह रात्रिकालीन शिफ्ट की समाप्ति के वक्त विरोध में उठ खड़े हुये।

लेकिन उसके  बाद भी प्रबंधन ने उनकी शिकायतों पर गौर करने से इंकार कर दिया तो मज़दूरों का लंबे समय से दबा हुआ गुस्सा विस्फोट के रूप में फूट पड़ा।जिसका निशाना फैक्टरी का फर्नीचर व मशीनें बनीं।

विस्ट्रॉन की यह इकाई नरसापुर औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है जहाँ उसे 2900 करोड़ रु के निवेश व 10 हजार रोजगार सृजन के आधार पर 43 हेक्टेयर जमीन दी गई है।

मोदी सरकार के मेक इन इंडिया के अंतर्गत उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का लाभ भी इस कंपनी को मिला है।

इस फैक्टरी में एप्पल को आपूर्ति के लिए आई-फोन का उत्पादन किया जाता है।

कंपनी की ओर से पुलिस में तुरंत रिपोर्ट की गई कि 5 हजार ठेका मजदूरों और 2 हजार अनाम आरोपियों द्वारा की गई तोडफोड में उसके दफ्तर और कारखाने के उपकरणों, मोबाइल फोन, अन्य यंत्रों आदि के टूटने से 412.5 करोड़ रु का नुकसान हुआ।

कुछ वक्त बाद मीडिया में ‘मजदूरों द्वारा हिंसा’ से हुये नुकसान की रकम बढ़कर 437 करोड़ रु तक पहुँच गई।

किन्तु 16 दिसंबर को कर्नाटक के गृह मंत्री बासवराज बोम्मई ने ट्वीट कर बताया कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में मामले को बेवजह बढ़ाचढ़ा कर बताया जा रहा है और विस्ट्रॉन ने उन्हें लिखित में दिया है कि उनका नुकसान 437 करोड़ रु का नहीं बल्कि 43 करोड़ रु ही हुआ है और पुलिस द्वारा मजदूरों पर फौरन कार्रवाई कर 164 को गिरफ्तारी कर लिया गया है।

तुरंत ही पूंजीपति वर्ग और उसके मीडिया ने मजदूरों द्वारा की गई ‘बर्बरता और वहशत’ पर हाहाकार मचाना शुरू कर दिया।

कहा जाने लगा कि इससे भारत में होने वाला निवेश प्रभावित होगा तथा मोदी सरकार की मेक इन इंडिया योजना पर भी असर पड़ सकता है।

पूँजीपतियों के संगठनों ने इस घटना को कर्नाटक की उद्योगप्रिय छवि पर कलंक का धब्बा तक घोषित कर दिया।

तब देशी-विदेशी पूँजीपति वर्ग को भरोसा देने वास्ते कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने कहा कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर चिंता प्रकट की है।

केंद्र के उद्योग-व्यापार प्रोत्साहन विभाग ने भी राज्य सरकार को कहा कि वे ऐसी इक्की-दुक्की घटनाओं से ‘निवेशकों की भावना’ प्रभावित न होने दें।

अपने पूंजीवादी चरित्र के अनुरूप बीजेपी सरकार श्रमिकों के विक्षोभ के कारणों पर गौर करने की बजाय पूरी तरह विस्ट्रॉन के साथ खड़ी हो गई, उसके प्रति इस घटना के लिए खेद प्रकट किया तथा दोषी श्रमिकों पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया।

 

सरकार ने तो पूँजीपति वर्ग के प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन करते हुये हिंसा के लिए श्रमिकों की निंदा और सख्त कार्रवाई का ऐलान कर डाला पर हमारे लिए मजदूरों के इस भारी गुस्से की वजह समझना जरूरी है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार श्रमिकों की बेचैनी का कारण उनके वेतन भुगतान की रकम थी क्योंकि वे नाराज थे कि कंपनी ने उन्हें भर्ती के वक्त जितनी रकम मजदूरी देने का करार किया था असली भुगतान उससे बहुत कम किया जा रहा था।

एक मजदूर का कहना था, “इंजीनिययरिंग ग्रेजुएट को 21 हजार महीना वेतन का करार किया गया था, पर पहले उसे घटाकर 16 हजार किया गया और बाद में 12 हजार कर दिया गया। गैर-इंजीनियरों का माहवार वेतन घटकर 8 हजार रु ही रह गया। हमारे खाते में आने वाली रकम घटती जा रही है जिससे हम बहुत निराश हैं।“ साथ ही श्रम क़ानूनों का पूरा उल्लंघन करते हुये महीने का वेतन अगले महीने की 10 तारीख के बाद किया जाता था।

दिसंबर का वेतन भी 11 दिसंबर को ही खातों में आया था और रात्रि पाली के मजदूरों में अपने खातों में आई रकम पर हताशा और नाराजगी थी।

यह पाली खत्म होते ही 12 दिसंबर की सुबह मजदूरों ने विक्षोभ में विरोध शुरू कर दिया।

मीडिया में आई विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार पुलिस व ट्रेड यूनियनों दोनों द्वारा की गई शुरुआती जाँच में पता चला है कि अगस्त से दिसंबर 2020 में कंपनी ने ठेका मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ाकर लगभग 3500 से 8500 कर दी थी।

क्रमश:

(प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं। ज़रूरी नहीं कि वर्कर्स यूनिटी सहमत हो।)

(यथार्थ पत्रिका से साभार)

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