काम करने की जगह पर मिलेंगे प्रवासी मज़दूरों को अधिकार, बढे़गी राज्यों की जवाबदेही नीति आयोग के साथ मिलकर नई योजना पर काम कर रहा श्रम मंत्रालय

migrant labourers


कोरोना महामारी के दौरान लगभग एक करोड़ प्रवासी मजदूरों को उनके घर लौटने को मज़बूर होना पडा था।

इसे ध्यान में रखकर श्रम मंत्रालय उनके लिए काम करने की जगह पर वोट देने के हक के साथ दूसरे अधिकार दिलाने के संबंध में एक नीति तैयार करा रहा है।

इसके लिए रिपोर्ट तैयार करने के लिए उसने नीति आयोग से अनुरोध किया है। नीति आयोग और एक वर्किंग सब-ग्रुप द्वारा ये रिपोर्ट तैयार की जा रही है ।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नीति आयोग के पहले ड्राफ्ट में यह प्रस्ताव किया गया है कि प्रवासियों के लिए अंतरराज्यीय समन्वय तंत्र तैयार किया जाए और राज्यों के श्रम विभाग में एक माइग्रेशन विंग बने, जो इनकी समस्याओं का समाधान कर सके।

ड्राफ्ट में प्रवासी मज़दूरों का राजनीतिक समावेश करने और इनके मूल निवास (राज्य) और जिस राज्य में वे काम कर रहे हैं, इसका आंकड़ा तैयार करने के लिए कहा गया है।

श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री संतोष गंगवार द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल कम से कम एक करोड़ प्रवासी मज़दूरों को शहर छोड़कर अपने गांव की ओर लौटना पड़ा था।

इसे लेकर आलोचना के बाद श्रम मंत्रालय ने नीति आयोग से इस संबंध में एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा था।

इसके बाद बीते आठ फरवरी को गंगवार ने लोकसभा राष्ट्रीय प्रवासी नीति बनाने की घोषणा की थी।

मसौदा नीति में बताया गया है कि किस तरह ऐसे लोगों को राजनीतिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते उन्हें वोट देने में दिक्कत होती है और वे अपनी मांग राजनीतिक पटल पर नहीं रख पाते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रवासी मज़दूरों का राजनीतिक समावेश किया जाना चाहिए, ताकि राजनीतिक नेतृत्व को उनके लिए कानून बनाने या सुधार लाने के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके।

इसे लेकर श्रम मंत्रालय अपने विभाग में प्रवासियों के लिए एक विशेष यूनिट बनाएगा।

अंतरराज्यीय प्रवासी मैनेजमेंट संस्था का काम देश में पलायन करने वाले प्रमुख केंद्रों जैसे कि उत्तर प्रदेश और मुंबई, बिहार और दिल्ली, पश्चिमी ओडिशा और आंध्र प्रदेश, राजस्थान और गुजरात तथा ओडिशा और गुजरात पर नजर रखना होगा।

इसमें कहा गया है कि सभी राज्यों के श्रम विभाग में एक माइग्रेंट वर्कर सेक्शन होना चाहिए। इसके अलावा राज्य अपने एक नोडल ऑफिसर को पलायन किए राज्य में भेजें, ताकि वे श्रम अधिकारियों के साथ मिलकर प्रवासी मज़दूरों के लिए काम कर सकें।

इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में आपदा राहत कार्यों का लाभ प्रवासियों को देने पर जोर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सुरक्षाओं का भी लाभ देने के लिए कहा गया है।

ड्राफ्ट रिपोर्ट में ऐसे लोगों के कौशल का आंकड़ा तैयार करने, आधार के जरिये सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने और एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता देने का सुझाव दिया गया है।

नीति आयोग के वर्किंग ग्रुप की अब तक दो बैठकें हुई हैं. इस ग्रुप में स्वास्थ्य मंत्रालय, आवास और शहरी मामले, ग्रामीण विकास, सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यम, कौशल विकास और उद्यमशीलता, सड़क परिवहन और राजमार्ग तथा श्रम मंत्रालय के सदस्य शामिल हैं।

इसमें टाटा ट्रस्ट, सेंटर फॉर यूथ एंड सोशल डेवलपमेंट, दिशा फाउंडेशन, आजीविका ब्यूरो, दीनदयाल शोध संस्थान, मैनेजमेंट संसाधन एवं महा विकास संस्थान, इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग, यूएन-हैबिटैट और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।

ड्राफ्ट रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि बिखरा हुआ लेबर मार्केट किस तरह से सप्लाई चेन और मालिकों और वर्करों के बीच के रिश्ते को दुरूह बनाता है।

इसके मुताबिक, प्रवासी मजदूरों के लिए किसी तरह की यूनियन न होना भी उनके रोजगार के अस्थिर होने की एक मुख्य वजह है।

ड्राफ्ट में इसकी व्याख्या की गई है कि प्रवासी मजदूरों के लिए काम करने की जगह पर किसी तरह की कोई संस्था न होने की वजह से संबंधित राज्य का उनके साथ सीमित लगाव होता है।

उदाहरण के लिए, झारखंड और छत्तीसगढ में कम उम्र की प्रवासी मज़दूर लड़कियों की खरीद फरोख्त रोकने के लिए बनाई गई यूनिटों को स्टाफ की कमी समेत अन्य दिक्कतों का सामना करना पडता है।

इसमें यह भी कहा गया कि मनरेगा और राज्यों के इस तरह के कार्यक्रमों से प्रवासी मजदूरों की तादाद जानी जा सकती है, लेकिन यह काम भी ठीक से  और एक सीमा से ज्यादा नहीं हो सका है।

ड्राफ्ट के मुताबिक, इसकी वजह यह है कि संबंधित राज्य प्रवासी मजदूरों को स्किल डेवलपमेंट जैसी स्कीमों में शामिल करने को लेकर सक्रियता नहीं दर्शाते।

इसके साथ ही जागरूकता का अभाव और दुरूह कागजी कार्रवाई भी प्रवासी मजदूरों के इनसे जुड़ने में आडे आती है।

यही वजह है कि नई नीति में राज्यों में प्रवासी मजदूरों के लिए तैयार जनजातीय विभाग में ब्लॉक लेवल पर एक इंस्पेक्टर और डिस्ट्रिक्ट लेवल पर एक लेबर अधिकारी नियुक्त करने का प्रस्ताव रखा गया है।

कुल मिलाकर प्रवासी मजदूरों के लिए श्रम मंत्रालय की नई नीति पारदर्शी और उन्हें अधिकार दिलाने वाली होगी, जिससे प्रवासी मज़दूर केवल संबंधित राज्य के लिए कमाकर देने वाली श्रमशक्ति न रहें बल्कि जिनके हितों के प्रति उस राज्य की जवाबदेही भी हो।

(अनुवादक:दीपक भारती )

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.