ममता दीदी ने क्या वाक़ई नरेंद्र मोदी का बुढ़ापा खराब कर दिया? – नज़रिया

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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के तीसरी बार सत्ता में लौटने के साथ ही बीजेपी की करारी हार ने उस हवा पर पानी फेर दिया है जिसे बीते कुछ महीनों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में आएसएस और बीजेपी मिलकर बनाने की कोशिश कर रहे थे।

हालांकि बीजेपी के लिए सकून की बात हो सकती है कि उसने एक समय में राष्ट्रीय फलक पर सशक्त पार्टी रही कांग्रेस और 35 साल तक राज्य में एकछत्र राज करने वाले वाम मोर्चे का सूपड़ा साफ़ कर दिया है और 2016 के मुकाबले तीन गुना वोट बटोर कर (77 सीटें) प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई है। उसने असम में अपनी सत्ता बचा ली जबकि पुडुचेरी में गठबंधन में ही सही कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया।

पश्चिम बंगाल चुनाव को मोदी और शाह मंडली ने हाई वोल्टेज बना दिया था लेकिन ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस 213 सीटें (दो तिहाई बहुमत से भी अधिक) जीतकर बीजेपी को तीन अंक तक भी पहुंचने नहीं दिया। वहीं तमिलनाडु में भी डीएमके की अगुवाई वाले यूपीए गठबंधन ने 156 सीटें (दो तिहाई) हासिल कर बीजेपी को करारा झटका दिया है।

केरल में तो वाम मोर्चे ने क़रीब दो तिहाई बहुमत (91 सीटें) लाते हुए कांग्रेस गठबंधन को दोबारा सत्ता से दूर रखा और पिनराई विजयन की अगुवाई में बीजेपी का वो एक मात्र खाता भी बंद कर दिया जो पिछले चुनाव में उसने खोला था। यहां तक कि मेट्रो मैन कहे जाने वाले 88 साल के ई श्रीधरन भी बीजेपी की इज़्जत बचा नहीं पाए और अपनी ही सीट हार बैठे।

सबसे चौंकाने वाला नतीजा असम का रहा, जहां बीजेपी ने न केवल अपनी सत्ता को बरकार रखा बल्कि भारी बहुमत (126 में 75 सीटें) से जीत दर्ज की। जबकि बीते साल सीएए एनआरसी के ख़िलाफ़ पूरा असम बीजेपी के ख़िलाफ़ उबल पड़ा था और बेजीपी के नेताओं का घर से निकलना मुश्किल हो गया था। कांग्रेस ने यहां एआईयूडीएफ़ के मिलकर एक बड़ा महागठबंधन बनाया था और लग रहा था कि यहां बीजेपी से लोगों को नाराजगी और छोटे बड़े प्रभावशाली दलों के गठबंधन का उसे फायदा मिलेगा। लेकिन यहां उसे महज 50 सीटों से संतोष करना पड़ा। हालांकि सीएए एनआरसी आंदोलन का चेहरा रहे अखिल गोगोई जीत गए हैं। गोगोई पर तमाम संगीन धाराओं के साथ बीजेपी सरकार ने एक साल से जेल में बंद कर रखा है और उन्होंने सलाखों के अंदर से ही चुनाव लड़ा था।

इन पांच राज्यों (पुडुचेरी केंद्र शासित राज्य) में बीजेपी ने सबसे अधिक दांव पश्चिम बंगाल पर लगा रखा था। मोदी और अमित शाह के साथ साथ सरकार का पूरा मंत्रिमंडल पश्चिम बंगाल की रणभूमि में उतार दिया गया था। अकेले नरेंद्र मोदी ने 20 रैलियां आयोजित थीं और एक समय कहा जाने लगा कि जब देश में कोरोना से लोग मर रहे थे, मोदी पैसेंजर यात्री की तरह दिल्ली पश्चिम बंगाल अप डाउन कर रहे थे।

पश्चिम बंगाल में 200 पार का नारा देने वाली बीजेपी के दो अंकों में सिमट जाने के बाद अब हार का ठीकरा सीधे मोदी पर आ रहा है। विगत सात सालों में यह पहला चुनाव है जब हार की ज़िम्मेदारी सीधे मोदी पर आ रही है। वरना अभी तक कहा जाता था कि जहां जीत होती है तो उसका श्रेय मोदी को जाता है और जहां हार होती है वहां स्थानीय बीजेपी नेताओं पर ठीकरा फोड़ा जाता है।

सोशल मीडिया पर ऐसे मीम्स भी बनाए जा रहे हैं जिसमें मोदी की दाढ़ी मूंछ और सिर के बाल उस्तरे से सफाचट कर दिए गए हैं। सतीश आचार्य का एक कार्टून काफ़ी वायरल हो रहा है जिसमें रवींद्रनाथ ठाकुर मोदी को उस्तरा देते हुए दिख रहे हैं। दर असल इन पांच राज्यों में जबसे चुनाव की दुंदुभी बजी उससे पहले से मोदी ने अपनी दाढ़ी और बाल बढ़ाने शुरू कर दिए थे। और राजनीतिक तंज के रूप में कहा जाने लगा था कि दो सबसे बड़े और प्रभावशाली राज्य पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के चुनाव के लिए उन्होंने इन दोनों राज्यों के आइकन- रवींद्रनाथ ठाकुर और ई रामास्वामी पेरियार की तरह दिखने के लिए ऐसा किया था।

हालांकि इस चुनाव को 2024 की बीजेपी की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है और कई विद्वान आने वाले समय में बीजेपी की आक्रमक राजनीति का अंदेशा जता रहे हैं।

कोलकाता विश्वविद्यालय में क़रीब तीन दशक तक पढ़ा चुके प्रोफ़ेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी का मानना है कि बंगाल चुनाव का एक ही संदेश है। धर्मनिरपेक्षता का एजेंडा वापस राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में आ रहा है। उदारवादी परिवेश जिंदाबाद। आरएसएस की विभाजनकारी राजनीति के पराभव की शुरुआत हो चुकी है।

अपने फ़ेसबुक पोस्ट में वो कहते हैं, “नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की बंगाल को हिंदू-मुसलमान के आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की लाइन बुरी तरह पिट गई है। तीसरे राउंड की समाप्ति के बाद यह है राजनीतिक संदेश। यह एक तरह से भाजपा-आरएसएस की बहुसंख्यकवादी राजनीति की गणधुलाई है।”

यह इस बात का भी संकेत है कि मोदी अपराजित नहीं हैं। वो कहते हैं, “मोदी का ध्वस्त व्यक्तित्व देखो- ममता से दो बार बुरी तरह हार चुके , केजरीवाल से दो बार हार चुके। केरल में वाम से हारे, तमिलनाडु में स्टालिन से हारे, उड़ीसा में नवीन पटनायक से हारे, राहुल गांधी के हाथों कई राज्यों में बुरी तरह हारे। इसके बावजूद आपको लगता है मोदी अपराजित हैं! इसे कहते हैं मोदी के बुद्धिहरण कला का असर।”

लेकिन साथ साथ वे यह भी कहते हैं कि “इस चुनाव में माकपा की बंगाल लाइन ध्वस्त हो चुकी है। वाम को मात्र साढे तीन प्रतिशत, कांग्रेस को ढाई प्रतिशत वोट मिले हैं। टीएमसी को 50 फीसदी से ऊपर वोट मिले, यह उसको मिले सबसे अधिक वोट हैं। भाजपा को 36 प्रतिशत वोट मिले हैं। यानी भाजपा से टीएमसी 14 फीसदी वोट आगे है। पोस्टल मतपत्रों में टीएमसी आगे रही, वाम के कर्मचारियों ने भी वाम को वोट नहीं दिए। यह है बंगाल लाइन का पराभव।”

प्रो. चतुर्वेदी का मानना है कि “कांग्रेस और माकपा को गंभीरता से वैचारिक मंथन करना चाहिए और नया एजेंडा बनाना चाहिए। उन्हें पुराने की कमजोरियों पर खुलकर बात करनी चाहिए और आज के युग के अनुरूप संगठन खड़ा करना चाहिए।”

हालांकि माकपा मं ये हलचल साफ़ दिखाई दे रही है। उसने केरल में दो बार के चुने हुए प्रतिनिधियों को टिकट नहीं दिया। जबकि पश्चिम बंगाल में अधिकांश नौजवानों को मैदान में खड़ा किया।

वो कहते हैं कि ‘पश्चिम बंगाल में माकपा ने भाजपा को वॉकओवर दे दिया। अब परिणाम पुष्ट कर रहे हैं। मैं विगत तेरह चौदह साल से लिख रहा हूं कि बंगाल में माकपा समापन की ओर जा रही है। यह बंगाल में माकपा की मुक्ति का चुनाव है। आम जनता को बहुत सताया था माकपा ने। यह उसका स्वाभाविक परिणाम है। वाम खत्म हो गया बंगाल में। जमानत जब्त हुई हैं अधिकांश की।’

अपने तर्क की पुष्टि करते हुए वो कहते हैं, “अजीब स्थिति है कि वाम के 27 प्रतिशत वोट कम हुए और भाजपा के लगभग इतने ही वोट प्रतिशत बढ़े। सन् 2016 में वाम-कांग्रेस की 72 सीट थीं, भाजपा की तीन, इसबार भाजपा को 77 सीटें मिली हैं। वाम कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। वाम-कांग्रेस की सभी सीट भाजपा के खाते में। गजब राजनीतिक ट्रांसफर है।”

इसके बावजूद बीजेपी की नैया पार नहीं हो पाई। वो कहते हैं कि बंगाल की जनता ने बंगाल में जय श्रीराम नारे की धुलाई कर दी और कहा जा रहा है कि ‘ममता ने मोदी का बुढ़ापा खराब कर दिया।’

लेकिन जैसी आशंका थी, उसके ऊपर राजनीतिक हिंसक हमले शुरू हो गए हैं। नतीजे आते ही हुगली में बीजेपी का ऑफ़िस जला दिया गया।

प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी का कहना है कि ‘बंगाल में भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं और जनता में जो जहर घोला है उसका परिणाम तो आना ही था। अब देखना होगा अमित शाह नरेन्द्र मोदी कैसे अपने समर्थकों की रक्षा करते हैं।’

वो कहते हैं कि सवाल यह है कि बंगाल के भाजपा नेता इस कोरोना काल में विस्थापित होकर बंगाल के बाहर कहां शरण लेंगे। उनके सामने दो ही विकल्प हैं, भाजपा छोड़ें या घर छोड़ें।

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