गांव में भयंकर बेरोजगारी का संकेत: नरेगा से काम की आस लगाए बैठे रिकार्डतोड़ 3 करोड़ से अधिक परिवार

MGNREGS

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग़मीन रोजगार गारंटी स्कीम (MGNREGS) में मई महीने में एक नया रिकार्ड देखने को मिला।

साल 2006 से लागू इस योजना के तहत पहली बार रिकार्डतोड़ 3.07 करोड़ परिवारों ने रोजगार की मांग की, जो कि खतरे की घंटी है।

ग्रामीण इलाकों में कम से कम 100 दिन रोजगार की गारंटी के वादे पर बनी इस स्कीम में कोरोना काल के पहले (2015-19) के स्तर से रोजगार तलाशने वालों की संख्या में 43 फीसदी की बढ़त हुई है।

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The Print की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल मिलने वाली दिहाड़ी 209 रुपए, जो कि अकुशल मर्दों को मिलने वाली दिहाड़ी (337 रुपए) के मुकाबले बहुत कम है।

महंगाई के इस दौर में जहां खाद्य सामानों के बढ़ते दाम रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, वहां इन ग्रामीण परिवारों के सर के ऊपर मंडराता खतरा गहराता जा रहा है।

खेतिहर रोजगार के अलावा कामों की मजदूरी में बढ़त का मुद्रास्फीति की दर से हिसाब लगाए जाने पर ये पता चलता है कि इस साल जनवरी से दिहाड़ी का असल मूल्य लगातार कम होता आ रहा है।

डिमांड और सप्लाइ का खेल

एकबारगी बढ़ी इस रोजगार की मांग ग्रामीण इलाकों में मजदूरों की जरूरत से ज्यादा उपलब्धता और कमजोर डिमांड की तरफ इशारा करता है।

इसका मतलब ये निकलता है कि अभी भी कोरोना महामारी के समय अपने गांव वापस आए मजदूरों में से बहुत लोग अभी भी शहर वापस नहीं गए हैं, क्यूंकि शहरों में काम पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है।

बैंगलोर के अज़ीम प्रेमजी इंस्टिट्यूट से अर्थशास्त्र के प्रोफेसर राजेन्द्र नारायण का कहना है कि आमतौर पर MGNREGS में ज्यादातर महिलायें काम करती हैं, क्यूंकि मर्द शहर में कमाने गए होते हैं।

लेकिन फिलहाल आलम ये है कि MGNREGS में काम पाने के लिए मर्दों की भी लाइन लगी हुई है।

अप्रैल-मई MGNREGS के चरम महीने होते हैं जब सबसे ज्यादा काम होता है।

उन्होंने कहा कि 3.07 करोड़ की संख्या भी कम मूल्यांकित है क्यूंकि 32-34 फीसदी तक काम की मांग दर्ज नहीं होती है।

इसका मतलब कि ये संख्या असल में 4 करोड़ से भी ज्यादा हो सकती है।

खरीद में आई गिरावट

ग्रामीण भारत में सामान्यतः दोपहिया वाहनों की बिक्री शहरों से ज्यादा होती है।

लेकिन इस साल अप्रैल-मई तक दोपहिया गाड़ियों की बिक्री 2018 तुलना में 21 फीसदी कम रही।

वैश्विक मार्केट रिसर्च संस्था Nomura के अनुसार इस खरीफ मौसम में खेती की लागत में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, जबकि सरकार द्वारा ऐलान की गई न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में सिर्फ 5.8 फीसदी की बढ़त हुई है।

FMCG माने जल्दी उपभोग या इस्तेमाल होने वाले सामान जैसे कि खाने का तेल, आटा, साबुन, इत्यादि की बिक्री में भारी गिरावट देखी गई है।

गांव की हालत शहर से ज्यादा खराब

Hindustan Unilever Limited के अप्रैल महीने के आखिर में दिए गए एक बयान के मुताबिक मुद्रास्फीति अभूतपूर्व स्तरों को छू रही है।

FMCG सामानों के बाजार मूल्य के बढ़ोतरी दर में गिरावट आई है, जिसका अधिक असर ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है।

उपभोक्ता रिसर्च संस्था NielsenIQ ने जून के शुरुआत में कहा था कि ग्रामीण इलाकों में इस साल जनवरी से मार्च तक कुल बिक्री में 5.3 फीसदी की गिरावट आई थी।

इसके मुकाबले शहरों में कुल बिक्री में 3.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।

गैर-मुनाफा संस्था The/Nudge Centre for Rural Development (CRD) के जॉन पॉल ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में लोगों की संपत्ति में कमी आई है, कर्ज बढ़ा है और उत्पादक संपत्ति, जैसे कि जमीन में निवेश में भी कमी देखी गई है।

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