‘द जर्नी ऑफ द फार्मर्स रेबेलियन’ ऐतिहासिक किसान आंदोलन का अहम दस्तावेज : डॉ. दर्शनपाल

किसान आंदोलन के दौरान किसानों के संघर्ष और उनकी कहानियों को “द जर्नी ऑफ द फार्मर्स रेबेलियन”, नाम की पुस्तक में संजोया गया है और इसका बीते रविवार को राजधानी दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में विमोचन किया गया।

किसानों के संघर्ष और उनकी कहानियों को पुस्तकाकार देने में वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड जीरो और नोट्स ऑन द अकेदमी संयुक्त रूप से प्रयास किया है। और ये तीनों कलेक्टिव ने ही इस किताब को पब्लिश किया है।

इस कार्यक्रम का रिकार्डेड लाईव सुनने के लिए यहां दिए गए दो लिंक को क्लिक करें-पार्ट -1      पार्ट -2

किताब में उन किसान नेताओं के इंटरव्यू हैं, जिन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर मोर्चा खोला। कई महीनों तक चले किसानों के संघर्षों की कहानी भी पुस्तक में लिखी गई है।

पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान समेत देशभर के किसान संगठनों के संघर्ष के किस्से भी किताब में हैं।

कार्यक्रम में शामिल हुए क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता डॉ. दर्शन पाल ने  पुस्तक के उद्देश्य की सराहना की। उन्होंने कहा कि ये किताब ऐतिहासिक किसान आंदोलन का अहम दस्तावेज है।

अब सभी मेहनतकशों को एक होना है। यदि सब इकट्ठा हो जाएंगे, तो सभी फांसीवादी ताकतों को रोका जा सकता है। उन्होंने लेबर कोड का भी विरोध जताया, जो कि हिटलरशाही की ओर संकेत देता है।

कीर्ति किसान यूनियन के राजिंदर सिंह ने पंजाब के मौजूदा एग्रीकल्चर मॉडल पर कहा कि आज भी किसान को उनकी लागत का पूरा मूल्य नहीं मिल पा रहा है। बहुत सी जगह पर किसानों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता, कई जगह प्रदूषित पानी है और यही हालात रहे तो 2050 तक पंजाब के लोग बीमारियों से ग्रस्त होकर बच्चे पैदा करने लायक नहीं रहेंगे।

कार्यक्रम में आईं द वायर की सीनियर जर्नलिस्ट आरफा खानम शेरवानी ने कहा कि ये पुस्तक बहुत अच्छी है। किसान आंदोलन के वक्त गोदी मीडिया की नजर भी बनी हुई थी। वो किसी न किसी तरह से आंदोलन की छवि को नुकसान पहुंचने की फिराक में थे।

कभी किसान आंदोलन के पीछे आईएसआई, तो कभी खालिस्तानियों का हाथ बताया। मगर, महीनों तक चले किसानों ने केंद्र सरकार के तमाम षडयंत्रों को विफल कर दिया।


सुर्ख लीह के एडिटर पावेल कुस्से ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की बॉर्डर पर महीनों तक आंदोलन चला। किसानों ने सर्दी, गर्मी, बारिश, धूप-पात में कठोर तपस्या की। हर मुश्किल को झेला और सहा। किसानों को विश्वास था कि केंद्र की मोदी सरकार झुकेगी।

आखिरकार, केंद्र सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े। फिर भी किसानों को चौकन्ना रहने की जरूरत है। ये किसी न किसी तरह उद्योगपतियों को पहुंचाने के प्रयास में लगे रहते हैं। किसानों को अपने हक के लिए सदैव सजग और एकजुट रहना होगा।


जमीन प्राप्ति संयुक्त कमेटी की लीडर परमजीत ने कहा कि आने वाली पीढ़ी के लिए ये पुस्तक महत्वपूर्ण साबित होगी। जो लोग किसान आंदोलन में नहीं आ सके, वो भी इसे पढ़कर किसानों की लड़ाई को महसूस कर सकते हैं। परमजीत ने कहा कि पंजाब में दलित खेतीहर मजदूरों का संघर्ष आज भी जारी है।

आज भी वो एक तिहाई जमीन का हिस्सा लेने के लिए संघर्षरत हैं। पंजाब में दलित महिलाओं की स्थिति सामान्य महिलाओं से कहीं अच्छी है। वो पारिवारिक शोषण का शिकार नहीं होती हैं।


एमएएस की नोदीप कौर ने कहा कि किसान आंदोलन में मजदूरों का भी साथ रहा। किताब में इसका भी जिक्र है। वहीं तमाम जगहों पर मजदूरों का भारी शोषण होता है।

महीनों काम कराने के बाद जब हिसाब किया जाता है, तो पूरा हक नहीं मिलता है। किसानों के आंदोलन से मजदूरों को सीखने की जरूरत है।


सीनियर पत्रकार अरुण त्रिपाठी ने पुस्तक की तारीफ की। उन्होंने कहा कि छात्रों को भी ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए। आंदोलन में शामिल हुए किसानों की तमाम कहानी है। अंत में वर्कर्स यूनिटी के संदीप राउजी ने पुस्तक विमोचन में आए लोगों का धन्यवाद दिया। कार्यक्रम में दिल्ली समेत आसपास के शहरों से भी लोग आए। इसमें मजदूर संगठनों से जुड़े आंदोलनकारी भी थे।

इस किताब को यहां से मंगाया जा सकता है। मेल करें- [email protected]  या फोन करें  7503227235

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.