लॉकडाउन में घर के लिए निकला प्रवासी मजदूर, परिवार ने मान लिया था मृत, अब 16 महीने बाद पहुंचा घर

Migrant-labour

रांची/सिमडेगा. आपको याद होगा कि कोरोना संक्रमण के चलते मार्च 2020 में पहली बार देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था. तब बेरोज़गारी और गरीबी के हालात में कई प्रवासी मज़दूर और गरीब लोग अपने राज्यों, गृहनगरों को लौटे थे. ऐसे कई मज़दूरों की दर्द भरी कहानियां सामने आती रहीं.

ताज़ा कहानी झारखंड के एक शख्स की है, जिसे उसके घर के लोगों ने मृत मान लिया था क्योंकि उस समय लॉकडाउन के बाद से ही उसका कोई पता नहीं चल रहा था. लेकिन अब वह व्यक्ति सिमडेगा में अपने घर लौट आया और उसने आपबीती सुनाई कि कैसे वो मानसिक असंतुलन का शिकार हुआ था.

मार्च 2020 में जब देश भर में लॉकडाउन लगाया गया, तब सिमडेगा के कुरदेग ब्लॉक के छत्तकाहू का रहने वाला मार्कस गोवा में था. एक महीने पहले फरवरी में ही वो नौकरी के लिए गोवा पहुंचा था.

लाखों प्रवासी मज़दूरों की तरह मार्कस ने भी गोवा से अपने घर की तरफ चलना शुरू किया. लेकिन मार्कस रास्ता भटककर तेलंगाना के खम्मम ज़िले में पहुंच गया. और वहां उसके साथ हालात ने एक और मुश्किल खड़ी कर दी.

45 साल के मार्कस को लॉकडाउन के हालात में खम्मम में न तो कोई पनाह मिली, न खाने पीने की कोई ठीक मदद मिल सकी और न ही उसे सही रास्ता बताने वाला कोई मिल पाया. कमज़ोरी के शिकार मार्कस को स्थानीय लोगों से दुत्कार अलग से मिली.

इन तमाम हालात में मार्कस ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और भटकता रहा. तब प्रशासन की नज़र उस पर पड़ी, तो डॉ. अन्नम श्रीनिवासन के एनजीओ को मार्कस की ज़िम्मेदारी दी गई.

करीब 16 महीने मानसिक विक्षिप्तता में गुज़ारने के बाद करीब 10 दिन पहले ही मार्कस को अपना नाम और पता याद आया. सिमडेगा के एडीजे एमके वर्मा ने बताया कि तब एनजीओ ने यहां संपर्क किया.

सिमडेगा प्रशासन ने मार्कस के परिवार के बारे में पता लगाकर पुष्टि की तो बीते गुरुवार को मार्कस अपने उस परिवार से फिर मिल सका, जो परिवार यह मान बैठा था कि मार्कस नहीं रहा. इस परिवार का मिलन जिसने देखा, उसकी आंखें भर आईं.

एडीजे और सीजेएम की मौजूदगी में गुरुवार को सिविल कोर्ट परिसर में मार्कस को उसके परिवार को सौंपा गया. बिछड़े हुए भाई देर तक गले लगकर लिपटे रहे. मार्कस की वापसी पर उसके परिवार ने डॉ. अन्नम के एनजीओ को फरिश्ता बताया जिसने मार्कस की हालत में इतना सुधार किया कि वो अतीत याद कर सका.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने यह पूरी खबर देते हुए यह भी लिखा कि एनजीओ ने मदद के तौर पर मार्कस को 25 हज़ार रुपये की रकम भी दी.

(साभार-टीवी9)

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