होंडा यूनियन चुप बैठी है और ठेका मज़दूर रोज़ निकाले जा रहे हैं

honda worker

By प्रियंका गुप्ता  (October 6, 2019)

होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया कंपनी में अस्थाई मजदूरों को निकालने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है।

होंडा के मानेसर यूनिट में हर दिन निकाले जा रहे हैं ठेका मज़दूर लेकिन कथित तौर पर न तो यूनियन की ओर से कोई आवाज़ उठाई जा रही है और ना ही श्रम विभाग संज्ञान ले रहा है।

इस यूनिट में काम करने वाले एक अस्थाई मज़दूर ने नाम न ज़ाहिर होने की शर्त पर वर्कर्स यूनिटी को फ़ोन पर बताया कि 10 साल से काम करने वाले अस्थायी कर्मचारियों के लिए कोई भी आवाज नहीं उठा रहा है।

उन्होंने बताया कि होंडा कंपनी प्रबंधन मंदी का हवाला देते हुए रोज़ 10 से 15 ठेका मजदूरों को बाहर का रास्ता दिखा रहा है।

पिछले अगस्त में ही होंडा प्रबंधन ने बीते सप्ताह मानेसर प्लांट से 700 कांट्रैक्ट वर्करों को ग़ैरक़ानूनी रूप से निकाल दिया था।

य़ूनियन के द्रारा ठेका मजदूरों की अनदेखी

उस अस्थाई मज़दूर ने आशंका व्यक्त की है कि ‘कंपनी अपनी प्रोडक्शन डाउन दिखा कर दिवाली तक और ठेका मजदूरों को बाहर निकाल देगी।’

उन्होंने कहा कि ‘ऐसे हालात में ठेका मज़दूरों के साथ हो रहे इस अन्याय के ख़िलाफ़ होंडा की ट्रेड यूनियन की तरफ से भी कोई ख़ास कदम नहीं उठाया जा रहा है।’

उन्होंने कहा कि ‘निकाले गए मज़दूरों को यूनियन द्रारा भी काम वापसी के लिए एकजुटता दिखाने का कोई आश्वासन नहीं मिल रहा है।’

होंडा यूनियन को पूरे गुड़गांव और मानेसर क्षेत्र में बहुत ही संघर्षशील यूनियन माना जाता है और बड़े संघर्षों के बाद वहां यूनियन बन पाई है।

इसके लिए परमानेंट और ठेका मज़दूरों ने पुलिस की लाठी खाई और मुकदमे सके, कईयों ने अपनी नौकरियां भी गवाईं हैं।

अस्थाई मज़दूर का कहना था कि ‘इतनी मजबूत यूनियन होने के बावजूद ठेका मज़दूरों के पक्ष में कुछ नहीं किया जा रहा। इस कारण वो अपने बच्चों की स्कूल फ़ीस देने में भी असमर्थ हैं और रोज़मर्रा के खर्च उठाने के भी पैसे नहीं हैं।’

मज़दूर इस आस में बैठे हैं कि कंपनी द्रारा उनको वापस बुला लिया जाएगा पर लगातार हो रही छंटनी को देखते हुए फिलहाल ऐसे कोई भी आसार नहीं दिख रहे हैं।

सैलरी अब तक नहीं बढ़ी

ठेका मजदूरों का ये भी कहना है कि स्थाई कर्मचारियों के समझौते के तहत वेतन बढ़ जाता है पर ठेका मज़दूरों के वेतन में 4 सालों में भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।

बल्कि सैलरी बढ़ने की जगह उनके वेतन में प्रबंधन द्रारा लगातार कटौती की जा रही है।

उन्होंने बताया कि ‘स्थाई मजदूरों के वेतन में तो कंपनी 5,000 तक का इजाफ़ा किया पर जब बात ठेका मजदूरों की आई तो उनके वेतन में मामूली वृद्धि की।’

“इसके बाद ठेका मजदूरों ने भूख हड़ताल की जिसके बाद कंपनी ने 700 रुपये बढ़ाए। ऐसे में इन मजदूरों को अपना कोई भविष्य बनता नजर नहीं आता।”

ठेका मजदूरों की बार-बार रिज्वाइनिंग

मज़दूरों ने बताया कि दरअसल कंपनी को ठेका मज़दूरों को स्थाई न करना पड़े इसलिए कंपनी द्रारा ठेका मजदूरों की हर साल रिज्वाइनिंग करवाई जाती है ताकि इन ठेका मज़दूरों को परमानेंट न करना पड़े और उससे जुड़ी सुविधाएं न देनी पड़े।

उनका कहना है कि 2 महीने पहले ही 1500 मजदूरों को 11 महीने के ठेके पर रखा गया था पर 19 अगस्त को उन सभी मज़दूरों को निकाल दिया गया।

इसके साथ ही जो मजदूर 10-11 साल से काम कर रहे हैं उन्हें हर साल 3 से 15 दिन के अंदर रिज्वाइनिंग कराई जाती है।

लेकिन पिछले दो महीने से जो लोग निकाले गए हैं उन मज़दूरों कि रिज्वाइनिंग नहीं कि गई और नहीं ही वापस ज्वाइनिंग की कोई संभावना व्यक्त की गई।

मंदी का हवाला देकर जारी है छंटनी

बात सिर्फ होंडा कंपनी की ही नहीं है। लगभग पूरे ऑटो सेक्टर की जितनी कंपनियां हैं उन्होंने अपने प्लांटों में शिफ़्टें कर दी हैं और बड़े पैमाने पर छंटनी की है।

इसकी वजह से जो ऑटो कंपोनेंट मेकर कंपनियां हैं उनमें भी उत्पादन कम हुआ है और वहां भी बड़े पैमाने पर छंटनी जारी है।

माना जा रहा है कि मारुति सुज़ुकी अपने मानेसर, गुड़गांव और गुजरात के प्लांटों में एक शिफ़्ट का नियम लागू कर दिया है।

साथ ही मारुति ने अपने 3000 टेंपरेरी वर्करों की नौकरी से हमेशा के लिए छुट्टी कर दी है।

वहीं बीते जुलाई में जापानी ऑटो निर्माता कंपनी निसान ने चेन्नई के अपने प्लांट से 1700 वर्करों की छंटनी की घोषणा की थी।

अबतक सिर्फ गुड़गांव, मानेसर, धारूहेड़ा में ही 50,000 मज़दूरों को नौकरी से निकाला गया है।

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