रेलवे यूनियनें बैठी रहीं, रेल निजीकरण के ख़िलाफ़ नौजवानों ने बिगुल फूंका

bihar railway protest

(Oct 25, 2019)

ये तस्वीरें इसी देश की हैं, दीवापली के महज दो तीन दिन पहले की। क्या आप ने ये तस्वीरें किसी न्यूज़ चैनल, अख़बार में देखी हैं?

हो सकता है कि आपने देखी हों लेकिन इतना बड़ा प्रदर्शन कहां हुआ है क्या अख़बार टेलिविज़न के भरोसे रहने वाले लोगों को ये पता है कि 25 अक्तूबर 2019 को मोदी सरकार के रेलवे के निजिकरण के ख़िलाफ़ ये प्रदर्शन बिहार के सासाराम रेलवे स्टेशन की हैं।

और ये प्रदर्शन रेलवे कर्मचारियों ने नहीं, बल्कि छात्रों युवाओं ने किया, जिन्हें निजीकरण के बाद नौकरियां नहीं मिलेंगी।

इस विरोध प्रदर्शन में शामिल सभी पढ़ने लिखने वाले और प्रतियोगिताओं की तैयारी करने वाले वे छात्र और परीक्षार्थी थे, जो अपनी नौकरी पाने के सुनहरे भविष्य पर सरकार द्वारा खुलेआम डाका डाले जाने की सुनियोजित हरकत से आक्रोशित थे।

इस ख़बर को मीडिया ने नहीं दिखाया इसके बावजूद फ़ेसबुक और व्हाट्सऐप पर ये प्रदर्शन वायरल हुआ।

क्यों हुआ प्रदर्शन

25 अक्टूबर के दिन सुबह 11 बजे सहसा हज़ारों छात्रों युवाओं ने सासाराम रेलवे स्टेशन जाम कर दिया। प्रदर्शनकारी मोदी सरकार से रेलवे को निजी कंपनियों के हवाले करने के फ़ैसले को फ़ौरन वापस लेने की मांग कर रहे थे।

जिन मीडिया और अख़बारों ने इस ख़बर को कवर किया उसमें भी प्रदर्शनकारियों को अराजक भीड़ बताने की कोशिश की।

हजाऱों की तादाद में जब प्रदर्शनकारी रेलवे पटरी पर धरना दे दिया तो पुलिस आई और लाठीचार्ज–आँसू गैस के गोले दागे। 18 आंदोलनकारी को गिरफ़्तार किया गया।

ऐसा ही प्रदर्शन नवादा और औरंगाबाद में भी हुआ।

इस दौरान रेल मंत्री ने बयान जारी कर निजीकरण की योजना को सिरे से नकार दिया जबकि सामने सामने रेलवे कारखाने, ट्रेनें, निजी हाथों में सरकार दे रही है। तीन लाख नौकरियों की कटौती की जा रही है।

जबसे मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने हैं उन्होंने सभी विभागों ‘100 डे एक्शन प्लान‘ का टार्गेट दिया है। इसके तहत क्षमता बढ़ाने के नाम पर अधिक से अधिक सार्वजनिक कंपनियों को बेचने की योजना है।

दुनिया भर में मचा है तूफ़ान

इस समय पूरी दुनिया में आम जनता सड़कों पर उतर रही है। दक्षिणी अमरीका के चिली से लेकर अरब के लेबनान, इराक़, ब्राज़ील में भीषण प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन कुछ पूंजीपतियों के हाथ में सिमटा इस देश का मीडिया बगदादी की हत्या का जश्न मना रहा है।

सासाराम की घटना ने उन रेलवे यूनियनों को भी सबक दिया है जो भाषणों में सरकार की चूल हिला देने की डींगें हांकते हैं लेकिन असल में कुछ नहीं कर रहे हैं।

रेलवे के निजीकरण के ख़िलाफ़ आख़िर कबतक रेल यूनियनें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेंगी, जबकि जनता ही उन्हें रास्ता दिखा रही है।

और वो रास्ता ये है कि ट्रेड यूनियनों को जनता का साथ लेना होगा और एक साथ पटरियों पर उतरना होगा।

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