क्या होता है जब रानी मधुमक्खी मर जाती है? मधुमक्खियों का एक अनोखा संसार

By कबीर संजय

मधुमक्खियों की दुनिया में कोई राजा नहीं होता है। लेकिन, रानी मक्खी के बिना जीवन संभव नहीं होता। मधुमक्खियों की दुनिया में जीवन की धुरी रानी मक्खी है।

इससे यह मान लेना ठीक नहीं कि उसकी जिंदगी ऐशो-आराम से भरी होगी। वह सबके ऊपर सिर्फ हुक्म चलाती फिरती होती। हर कोई उसके आगे शीश झुकाता होगा। नहीं, बिलकुल नहीं।

रानी होने की कीमत उसे बहुत ज्यादा परिश्रम करके चुकाना होता है। उसे हर दिन दो हजार तक अंडे देने होते हैं और ऐसा हर रोज करना होता है।

तीन से लेकर पांच सालों तक। इतने लंबे समय तक हर दिन इतने सारे अंडे देना, आप क्या समझते हैं आसान है। उसकी जान को जरा भी आराम नहीं होता।

हर समय अपनी सलामती की जानकारी भी पूरे छत्ते (बी हाइव) को देनी होती है। ताकि, सबको पता रहे कि हर काम ठीक से हो रहा है। तो क्या होता है जब मधुमक्खियों के किसी छत्ते की रानी मक्खी मर जाती है। आइये जानते हैं।

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इंसानों से हज़ारों सालों का रिश्ता

मधुमक्खियों का छत्ता हजारों सालों से इंसानों के अलावा भी कई जीवों को लुभाता रहा है। इसमें मौजूद मीठे शहद का आकर्षण इतना ज्यादा होता है कि लोग मधुमक्खियों के डंक से भी घबराना छोड़ देते हैं।

किसी दीवाने की तरह उन्हें बस शहद चाहिए होता है। खासतौर पर भालू। वे किसी उन्मादी की तरह शहद के छत्ते की तरफ खिंचे चले जाते हैं। फिर चाहें उनके ऊपर डंक मारने को तत्पर सैकड़ों मधुमक्खियां भिनभिनाती ही क्यों हो।

अमूमन तो वे उसके मोटे बालों के अंदर घुस ही नहीं पाती हैं। जो थोड़ी-बहुत नथुनों आदि में चिपकती भी हैं, उसे अमृत जैसे कीमती शहद के लिए बर्दाश्त तो किया ही जा सकता है।

शहद के लिए आज भी इंसान अपनी जान की कीमत चुकाते हैं। खासतौर पर सुंदर बन के डेल्टा में। जहां पर मधुमक्खियों का शहद चुराने के लिए जंगल की खान छानने के लिए जाने वाले लोग कई बार घात लगाकर बैठे किसी बाघ का शिकार बन जाते हैं। शहद उनकी जान ले लेता है।

एक शब्द इन दिनों बहुत ज्यादा प्रचलित है। हनी ट्रैप। यानी किसी चीज का लालच देकर किसी को फांस लेना। हनी ट्रैप की हर दिन नई कहानियों से आज के अखबार भरे होते हैं।

खैर, इंसान और इंसानों की बातें तो हर जगह बिखरी हुई है। इसलिए हम इंसानों की बातें ज्यादा नहीं करेंगे। उससे परहेज रखेंगे।

लाखों सालों के विकास क्रम में कीटों ने बहुत सारी ऐसी खूबियां विकसित की हैं, जिसके चलते वे लाखों सालों से धरती पर जमे हुए हैं। न सिर्फ उनका अस्तित्व बचा हुआ है बल्कि उन्होंने जीवन की अद्भुत मिसालें भी पेश की हैं। इंसेक्ट वर्ल्ड या कीट जगत सबसे ज्यादा विविधताओँ से भरा है।

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दुर्लभ सामूहिकता

जीवन के सुचारू संचालन के लिए कई इंसेक्ट ने जीवन के खास हुनर विकसित किए हैं। वे खास किस्म के श्रम विभाजन वाले समाजों में रहते हैं। जहां पर श्रम की अलग-अलग श्रेणियां मौजूद होती हैं जो अलग-अलग काम करती हैं।

लेकिन, जैसे ऑर्केस्टा में कोई गिटार बजाता है तो कोई वायलिन। कोई ड्रम बजाता है तो कोई ट्रंपेट और सेक्सोफोन। पर हर कोई मिलकर एक सुरीले संगीत की रचना करते हैं। सबकी धुन एक होती है।

किसी समय कोई अपनी आवाज थोड़ी तेज कर लेता है। कोई थोड़ा तेज कर लेता है। लेकिन, वे सब मिलकर एक ही तरह से जुड़े होते हैं।

यह भी कह सकते हैं कि कई अलग-अलग जीवन मिलकर एक ही जीवित जंतु में तब्दील हो जाते हैं। जैसे कि मधुमक्खियां। जैसे की दीमकें। जैसे की चीटियां। यहां पर कड़े श्रम विभाजन वाला सामाजिक ढांचा मौजूद है। हर किसी को अपना काम करना है। उससे न इधर, न उधर।

मधुमक्खियों के छत्ते में आमतौर पर तीन तरह के श्रम विभाजन होते हैं। श्रमिक मक्खियां होती हैं जिनका काम फूलों से पराग-मकरंद लाने से लेकर छत्ते की साज-संभाल, सुरक्षा और बच्चों की देखभाल तक की पूरी जिम्मेदारी होती है।

ड्रोन मधुमक्खियां होती हैं। जोकि नर मधुमक्खी होते हैं और जिनका काम सिर्फ रानी मक्खी से मिलन तक सीमित होता है। वह भी जीवन में सिर्फ एक बार। किसी किसी ड्रोन मधुमक्खी को ही यह मौका मिलता है। जबकि, रानी मक्खी होती है।

जोकि ड्रोन मधुमक्खी के साथ मिलन करती है और एक बार में अपने शरीर के अंदर साठ लाख तक स्पर्म सहेज कर रख लेती है। इन्हीं स्पर्म से वह हर दिन पंद्रह सौ से दो हजार तक अंडे देती है। रानी मक्खी लगातार अंडे दे रही है। यानी छत्ते में सबकुछ ठीक है।

मिलन के लिए बाहर जाने के शुरुआती समय छोड़ दिया जाए तो रानी मक्खी अपना पूरा जीवन छत्ते के अंदर ही बिताती है। एक छत्ते में मौजूद ज्यादातर मधुमक्खियां उसके ही बच्चे होते हैं।

एक स्वस्थ रानी मक्खी पूरे समय छत्ते में घूम-घूम कर देखती रहती है और छत्ते के अंडे वाले खाने में जो भी खाना उसे खाली मिलता है, उसमें अंडा दे देती है। इस तरह से वह दिन भर अंडे देती रहती है। इसके साथ ही वह अपने शरीर से एक गंध छोड़ती है। जिसे रानी की गंध कहा जाता है।

रानी के शरीर की इस गंध को श्रमिक मक्खियां अन्य मक्खियों तक पहुंचाती है। रानी की गंध से पता चलता है कि छत्ते में सबकुछ ठीक है।

सारे कार्य-व्यापार ठीक उसी तरह से चल रहे हैं, जिस तरह से चलने चाहिए। कोई भी अड़चन नहीं है, कोई भी बाधा नहीं है। लेकिन, कई बार इसमें बाधा आ जाती है।

मान लीजिए कि किसी रानी मक्खी की असमय मौत हो गई। वह बीमार हो गई। वह बूढ़ी हो गई। तो फिर क्या होता है। रानी मक्खी की बीमारी, बुढ़ापे या उसकी मौत के बारे में पूरे छत्ते की मधुमक्खियों को तुरंत ही पता चल जाता है। उसकी गंध मिलनी बंद हो जाती है। या गंध क्षीण पड़ने लगती है।

उसके अंडे देने के क्रम सही नहीं होते हैं। छत्ते के कार्यव्यापार प्रभावित होने लगते हैं। पूरे छत्ते को यह भान हो जाता है कि अब रानी मक्खी नहीं रही है। ऐसी स्थिति में छत्ते को तुरंत ही एक नई रानी मक्खी चाहिए।

रानी मधुमक्खी

क्योंकि, रानी मक्खी के बिना छत्ते का अस्तित्व बचा नहीं रह सकता है। वो नष्ट हो जाएगा। ऐसी स्थिति में श्रमिक मधुमक्खियां तुरंत अंडे से निकलने वाले लारवों में से दस-बारह अच्छे लारवों का चुनाव करती हैं।

इन चुनिंदा लारवों को एक खास प्रकार का खाद्य खिलाया जाता है, जिसे रॉयल जेली कहा जाता है। यूं तो अंडे से निकलने वाले सभी लारवों को यह रॉयल जेली खिलाई जाती है। लेकिन, बाकी लारवों को सिर्फ दो दिन तक रायल जेली का यह पौष्टिक खाद्य खिलाया जाता है।

जबकि, जिन लारवों को रानी मक्खी की तरह विकसित करने की मंसा होती है उन्हें परिपक्व होने तक रायल जेली खिलाई जाती है। यह पोषण से भरपूर एक खाद्य होता है। जिसे खाकर रानी मक्खी पूर्ण विकसित हो जाती है और उसके प्रजनन अंग भी विकसित हो जाते हैं।

कहावत है न कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती हैं। इसी तरह से एक छत्ते में सिर्फ एक ही रानी मक्खी रह सकती है। इसलिए विकसित होने के साथ ही रानी मक्खी दूसरी प्रतिद्वंदी रानी मक्खी से लड़ने लगती है।

ऐसा दूसरी रानी मक्खी के मरने तक चलता रहता है। इस तरह से सभी को मारकर सिर्फ एक ही रानी मक्खी छत्ते में बचती है। यह रानी मक्खी ऐसे लारवों को भी मार देती है जिन्हें रानी मक्खी की तरह बढ़ने के लिए पाला जा रहा होता है वे अभी परिपक्व नहीं हुए होते हैं। इस तरह से उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं बचता है।

अपना एकछत्र राज्य कायम करने के बाद रानी मक्खी छत्ते से बाहर निकलकर उड़ती है। इसी उड़ान के दौरान वह ड्रोन मक्खी के साथ मिलन करती है। ड्रोन मक्खी एक तरह की नर मक्खी होती है। जिनका काम सिर्फ मिलन करना ही होता है।

मधुमक्खी के छत्ते

इसके अलावा छत्ते के कामों में उनका खास उपयोग नहीं होता है। वे पराग एकत्रित करने और शहद बनाने जैसा काम भी नहीं करते हैं और अपने भोजन के लिए भी श्रमिक मक्खियों के ऊपर निर्भर रहते हैं।

रानी मक्खी के साथ मिलन का मौका किसी किसी ड्रोन को ही मिलता है। मिलन के बाद उसकी मौत भी हो सकती है। ड्रोन मक्खियों के पास डंक भी नहीं होता है।

रानी मक्खी आमतौर पर ही एक ड्रोन के साथ मिलन करती है। कभी कभी एक से ज्यादा ड्रोन से भी मिलन कर सकती है। लेकिन, इस तरह के मिलन से वह साठ लाख तक स्पर्म अपने शरीर में सुरक्षित कर लेती है और फिर छत्ते के अंदर चली जाती है।

इन्हीं स्पर्म के सहारे वह हर दिन पंद्रह सौ से दो हजार तक अंडे देती है और ऐसा वह तीन से लेकर पांच साल तक करती रहती है। अंडे देने के साथ ही वह एक खास गंध भी छोड़ती रहती है जिससे पूरे छत्ते में इस बात का भरोसा बना रहता है कि रानी ठीक-ठाक है और पूरा छत्ता सुरक्षित है।

उसका काम ठीक प्रकार से चल रहा है। रानी की यह गंध ही एक तरह से उसका मुकुट है या राज दंड है। जिसके जरिए वह पूरे छत्ते को नियंत्रित करती है।

लेकिन, जब छत्ता बहुत ज्यादा बड़ा हो जाता है। उसमें मधुमक्खियों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाती है तो यह गंध सभी के पास पहुंचना मुश्किल हो जाता है। इसके चलते नए छत्ते के निर्माण की जरूरतें प्रबल होने लगती हैं।

ऐसे समय में मधुमक्खियां एक खास तरह का बर्ताव करती हैं, जिसे स्वार्म बिहेवियर कहते हैं। स्वार्म बिहेवियर एक तरह की नैसर्गिक प्रक्रिया है, जिसके जरिए नए छत्ते का निर्माण होता है।

इसमें रानी मक्खी आधी श्रमिक मक्खियों को अपने साथ लेकर उड़ जाती है और उनके साथ नए छत्ते का निर्माण किया जाता है। इससे पहले पुराने छत्ते में नई रानी मक्खी के लिए आवश्यक परिस्थितियां तैयार कर ली जाती हैं।

खासतौर पर बसंत के समय इस तरह का स्वार्म बिहेवियर सामने आता है। क्योंकि, उस समय फूलों की भरमार होती है और मधुमक्खियों को पराग और मकरंद की कोई कमी नहीं रहती है।

इसलिए ऐसे समय में नए छत्ते का निर्माण तुलनात्मक तौर पर आसान रहता है। हालांकि, इस तरह का बर्ताव अन्य मौसमों में भी देखने को मिल सकता है।

श्रमिक मक्खियां

तो समझ गए। रानी की कितनी अहमियत है। नाम भले ही रानी का हो। लेकिन, काम उसका सबसे मुश्किल है। उसका जीवन हर समय चुनौतियों से भरा होता है। हर दिन अपना इंतहान देना होता है।

हर दिन अपनी संतति को आगे बढ़ाने की जुगत में भिड़े रहना होता है। ऐसा किए बिना एक दिन भी उसका गुजारा नहीं होता।

जैसे ही उसके अंडे देने की दर में गिरावट आती है, या उसकी सेहत खराब होने या आयु ज्यादा होने के संकेत मिलने लगते हैं, नई रानी मक्खी को बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

दरअसल, श्रमिक मक्खियां भी एक प्रकार की मादा मक्खियां ही होती हैं। लेकिन, लारवे की अवस्था में उन्हें पूरा पोषण नहीं मिलता है। जबकि, रानी मक्खी के लिए तैयार किए जाने वाले लारवे को ज्यादा पोषण उपलब्ध कराया जाता है।

ऐसे तैयार की गई वर्जिन बी या राजकुमारी पहले तो अपने साथ की अन्य राजकुमारियों को मार देती है। फिर ड्रोन से मिलन के लिए छत्ते से बाहर उड़ जाती है।

वहां से लाखों अंडे अपने शरीर में समेटकर लौटने पर अगर उसे पुरानी बूढ़ी रानी मक्खी छत्ते में मिलती है तो उसे भी मार दिया जाता है। इसे सुपरसीड करना कहा जाता है। इसके साथ ही वो अंडे देकर और अपनी गंध छोड़कर पूरे छत्ते को नियंत्रित कर लेती है।

आपने राजा के कारनामे तो बहुत सुने होंगे। लेकिन, मधुमक्खियों की दुनिया में उनका नामोनिशान नहीं होता है। राज यहां पर रानी मक्खी ही करती है। लेकिन, इस राज करने की भी उसे कम क़ीमत नहीं चुकानी पड़ती।

और अगर कभी असमय उसकी मौत हो जाए तो श्रमिक मक्खियां तुरंत ही नई रानी मक्खी तैयार करने की प्रक्रिया में जुट जाती हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पर्यावरण पर दिलचस्प तरीके से लिखते रहे हैं। उनकी एक बहुत बहुचर्चित किताब है चीताः भारतीय जंगलों का गुम शहजादा।)

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