मानवाधिकार दिवस पर प्रदर्शनरत लोगों पर दिल्ली पुलिस का दमन, दबाव के बाद रिहा किया कार्यकर्ताओं को

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मानवधिकार कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर बर्बर हिंसा के साथ साथ अपने दो साथियों को गायब करने का भी आरोप लगाया

सभी के लिए ‘आज़ादी’,’समानता’ और ‘न्याय’ के थीम के साथ 10 दिसंबर को पूरी दुनिया में मानवाधिकार दिवस मनाया गया.

देश के भी कई हिस्सों में इस अवसर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जुलूस और मार्च निकाले.

देश की राजधानी दिल्ली में भी इस अवसर पर ऐसे ही एक सभा का आयोजन किया जाना वाला था.जिसकी अनुमति पुलिस द्वारा नहीं मिलने पर भी जब कार्यकर्त्ता सड़क पर उतरे तो पुलिस द्वारा उन पर लाठी चार्ज किया गया और साथ ही कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया गया.

कार्यकर्ताओं ने बताया की पुलिस ने उन पर बर्बर हमले किये. साथ ही साथ पुलिस पर एक प्रदर्शनकारी छात्र को गैरकानूनी रूप से गायब या अपहरण करने तक का आरोप लगा.

देर शाम जब ये खबर बाकी लोगों तक पहुंची कि पुलिस ने लगभग 50 से अधिक कार्यकर्ताओं को हिरासत मे लिया है और डीयू के एक छात्र के लापता होने की खबर फैली और छात्रों ने संसद मार्ग थाने के घेराव का कॉल किया तब जाकर पुलिस ने सभी को रिहा किया और एक नहीं बल्कि दो गायब छात्रों को भी सामने लाए.

मानवाधिकार दिवस के अवसर पर Campaign Against State Repression (सीएएसआर) जो छात्र, शिक्षकों और सामाजिक संगठनों का एक संयुक्त मंच है और देशभर में मानवाधिकारों के सवालों को उठाती है.

 जंतर-मंतर पर एक विरोध सभा का आह्वान किया था

आयोजकों के अनुसार इस सभा के लिए अंतिम समय में पुलिस ने अनुमति को रद्द किया और जब सभा-प्रदर्शन करने की कोशिश की गई तो दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर हमला किया और उन्हें हिरासत में लिया.

हिरासत में रही संगीता ने मिडिया से टेलीफोन पर बातचीत में कहा कि रात आठ बजे उन्हें बाकी सभी साथियों के साथ रिहा कर दिया गया.

जब ये छात्र हिरासत में थे और अपने साथियों को पुलिस द्वारा गायब करने के आरोप लगा रहे थे. तब शाम सात बजे न्यूज़क्लिक ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से संपर्क किया, जिसमें उन्होंने छात्रों के हिरासत में होने की पुष्टि की.

हालांकि उन्होंने गुम/गायब छात्र के सवाल पर कहा कि अभी इसकी जानकारी मिली है हम वैरिफाई कर रहे हैं.

छात्रों की हिरासत और पुलिस एक्शन पर उन्होंने बताया कि इनकी परमिशन 9 तारीख की रात में ही कैंसिल कर दी गई थी.

इसके बाद भी ये एक भीड़ के साथ विजय चौक तक पहुँच गए और जब पुलिस बल ने रोकने का प्रयास किया तो ये आक्रमक हो गए और इसमें हमारे पुलिस कर्मियों को चोटें भी आई हैं.

हालांकि उन्होंने बातचीत में इशारा किया कि सभी को जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा.

प्रदर्शनकारी संगीता ने पूरा घटनाक्रम बताते हुए कहा कि हम लोगों की जब अंतिम समय पर परमिशन कैंसिल हुई तो हम लगभग 60 की संख्या मे उद्योग भवन मेट्रो से एक जुलूस की शक्ल में आगे बढ़े.

पुलिस के पहले बैरिकैट से आगे बढ़े और दूसरे तक पहुंचे तो पुलिस ने हम लोगों के साथ आक्रमक व्यवहार किया और हम पर हमला किया.

महिलाओं और एलजीबीटीक्यू व्यक्तियों के साथ विशेष रूप से हिंसा की गई

उन्होंने बताया कि ये सब दोपहर दो बजे के आसपास की बात है. इस दौरान पुलिस ने हमारे साथ मारपीट की, बदसलूकी की, यही नहीं उन्होंने हम लोगों को गालियां तक दीं. इसके बाद हिरासत में लेकर दो अलग अलग जगह ले गए.

संगीत ने खुद को नजफगढ़ के इलाके के किसी थाने में रखने की बात बताई.

इसके बाद शाम चार बजे पुलिस ने कहा कि वो महिलाओं को छोड़ देंगे लेकिन पुरुषों को नहीं जाने देंगे जिसके बाद हम इसपर नहीं माने और कहा सब एकसाथ बाहर जाएंगे.

इसी दौरान हमें हमारे साथी गौरव के गायब होने की खबर मिली उनका फोन कोई और उठा रहा था। एक समय के बाद तो फोन उठाना भी बंद हो गया.

वे आगे बताती हैं कि ये खबर हमने कई जगह भेजी जिसके बाद कई छात्र संगठन संसद मार्ग थाने पर जुटने लगे. इसके बाद पुलिस हमारे गायब साथी को संसद मार्ग थाने में ही लाई.

तब हमें पता चला कि हमारा एक और साथी गायब था जिसे पुलिस अपने साथ लाई और छोड़ दिया. रात साढ़े आठ बजे हम सभी को रिहा कर दिया गया.

पुलिस के प्रदर्शनकारियों पर आक्रमक होने के आरोप पर संगीत ने कहा कि पुलिस के पास कैमरे हैं देखिए हमारे हाथों में क्या है?

हम शांति से अपना प्रदर्शन करना चाहते थे. क्या मानवाधिकार को लेकर सभा कारण जुर्म है?

पुलिस ने हमारी परमिशन कैंसिल क्यों की? हम तो जंतर मंतर पर शांति से सभा करना चाहते थे.

पुलिस पहले से हमें हिरासत में लेकर पीटने के लिए तैयार थी. उन्होंने पुलिस के व्यवहार को अमानवीय बताया और कहा कि महिलाओं और एलजीबीटीक्यू व्यक्तियों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया, पुरुष कांस्टेबलों ने उन्हें बाल पकड़कर घसीटा और कई लोगों पर शारीरिक हमला किया.

अर्धसैनिक बल के जवानों ने हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों पर भी बल का प्रयोग किया, जिससे कई प्रदर्शनकारियों को चोटें आईं.

सीएएसआर ने पुलिस के इस कृत्य को लोकतांत्रिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन कहा है. सीएएसआर के अनुसार विरोध करने के लिए जंतर मंतर के पास जुटे लोगों में छात्र, वकील, किसान, मजदूर, महिलाएं, एलजीबीटीक्यू और अन्य लोग शामिल थे.

सीएएसआर ने अपने बयान में कहा कि “इस अवसर पर जहां दुनिया संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) की 75वीं वर्षगांठ मना रही है. भारत जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करता है, उसकी सरकार कॉरपोरेट लूट की बढ़ती लहर के खिलाफ विमर्श को दबाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर हमला करती है.

बयान में कहा गया कि सरकार असहमति के किसी भी प्रयास को चुप कराने का प्रयास कर रही है, यहां तक कि असहमति के विचारों के डर से यूडीएचआर की एक पार्टी के रूप में अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का भी उल्लंघन कर रही है.

सीएएसआर ने सभी लोकतांत्रिक विचारधारा वाले, शांतिप्रिय, न्याय के प्रति जागरूक लोगों से 75वें मानवाधिकार दिवस पर लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन की निंदा करने, प्रदर्शन करने और लिखने का आग्रह किया है.

(न्यूज़ क्लिक की खबर से साभार)

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