हल्द्वानी: स्थायीकरण की मांग को लेकर भोजन माताओं ने निकाला जुलूस,अमानवीय शासनादेश के खिलाफ रोष

mid day mill workers

अपनी विभिन्न मांगों को लेकर संघर्षरत भोजनमाताओं ने मंगलवार को हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में एकत्रित होकर सभा की। साथ ही शहर में जुलूस निकालकर अपनी मांगों को लेकर डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा।

भोजनमाताओं ने इस ज्ञापन में सभी भोजन माताओं को स्थाई करने, न्यूनतम वेतन लागू करने, अमानवीय शासनादेश रद्द करने तथा कोविड सेन्टरों में कार्यरत रही भोजनमाताओं को प्रोत्साहन राशि दिए जाने जैसी मांगों को पूरा किए जाने की अपील की।

प्रगतिशील भोजन माता संगठन की महामंत्री रजनी जोशी ने कहा, ‘भोजनमाताएं 18-19 सालों से बेहद कम मानदेय पर मात्र 2000 में भोजनमाता के काम के साथ-साथ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम (फाइलें इधर-उधर ले जाना, चाय पिलाना, पानी पिलाना, सुबह स्कूल खोलना व शाम को बंद करना), सफाई कर्मचारी का काम (पूरे स्कूल में झाड़ू लगाना, कुर्सी मेज साफ करना, शौचालय की सफाई करना), माली का काम (स्कूल में सब्जियां उगाना, फुलवारी लगाना, घास काटना) आदि काम कर रही हैं। भोजन माता एक गरीब परिवारों से आती हैं। उन पर अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। इतनी महंगाई के दोर में मात्र 2000 रुपये में कोई कैसे घर चला सकता है। यह सोचा जा सकता है। सरकार भजनमाताओं का मानदेय बढ़ाने की जगह भोजनमाताओं को निकालने के शासनादेश पारित कर रही है। यह बड़ी शर्म की बात है।’

रजनी जोशी ने आगे बताया, ‘भोजनमाताओं के तमाम संघर्षों और मुख्यमंत्री व अलग-अलग अधिकारियों को ज्ञापन में 15,000 न्यूनतम वेतन दिए जाने की मांग की गई थी। अब इतने समय बाद उत्तराखंड के शिक्षा सचिव अरविंद पांडे जी ने भोजनमाताओं का मानदेय 5000 रुपये किए जाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। यह प्रस्ताव भी कब तक लागू होगा अभी इसकी कोई चर्चा नहीं की जा रही है।’

प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की दीपा उप्रेती ने कहा कि भोजनमाताएं स्कूल में खाना बनाने के अलावा भी सारे छोटे-मोटे काम करती हैं। अधिकांश भोजन माताओं को काम करते हुए 20 साल के करीब हो चुके हैं ऐसे यह तर्क बेहद मूर्खतापूर्ण है कि आपके बच्चे स्कूल में नहीं पड़ते हैं इसलिए आपकी सेवा की जा रही है। किसी भी भोजनमाता के बच्चे 5 साल से अधिक प्राथमिक विद्यालय में नहीं पढ़ सकते हैं। भोजनमाताओं को स्कूल से हटाने की कार्यवाही पर रोक लगाने व न्यूनतम वेतन 15000 रुपये करने अपील की।

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