योगी आदित्यनाथ राज्य की सीमाएं सील कर मज़दूरों का भला कर रहे हैं?

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By राकेश कायस्थ

राजनेता जो भी काम करते हैं, वे सारे काम राजनीति से प्रेरित होते हैं। मजदूरों को घर तक पहुंचाने के लिए प्रियंका गाँधी का एक हज़ार बसों का इंतजाम करना ऐसा ही एक राजनीतिक कदम है।

अब सवाल ये है कि क्या प्रियंका गांधी को ऐसा नहीं करना चाहिए? क्या उन्हें संकट की इस घड़ी में उसी तरह सिर्फ अपने विरोधियों की ट्रोलिंग करनी चाहिए जिस तरह केंद्र सरकार के मंत्री कामकाज छोड़कर कर रहे हैं?

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हमेशा इस बात को अपनी यूएसपी बताते रहे हैं कि वे बहुत जल्दी और कई बार नियमों को ताक पर रखकर फैसले लेते हैं, ताकि जनता का फायदा हो। सार्वजनिक की जा चुकी एनकाउंटर नीति इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है।

बसों को मंजूरी देने के मामले में जान-बूझकर सरकारी नियमों का जो खेल खेला जा रहा है, उसका मकसद बहुत साफ है। चिंता परेशानहाल लोगों को घर पहुँचाने की नहीं बल्कि इस बात की है कि विरोधी क्रेडिट ना ले लें।

योगीजी के फैन उनकी इस अदा पर झूम रहे हैं कि देखो बाबा ने दो दिन रोक दिया और उसके बाद अब हरेक बस की डीटेल के साथ फिटनेस सार्टिफिकेट माँग रहे हैं। ठोको शैली की राजनीति के साथ बारीक खेल में भी मंज चुके हैं बाबा।

कल को योगीजी ये भी कह सकते हैं कि पहले सभी एक हज़ार ड्राइवरों के मेडिकल सार्किफिकेट जमा करवाये जायें कि वे कोरोना संक्रमिकत या किसी दूसरी और बड़ी बीमारी से ग्रसित तो नहीं हैं।

ड्राइवरों के स्वास्थ्य की गहन जाँच की जाएगी, उन्हें कोरेंटाइन में रखा जाएगा और उसके दो हफ्ते बाद मंजूरी देने पर विचार किया जाएगा।

यह सब तब हो रहा है, जब लोग हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं और रास्ते में मर रहे हैं।

आदतन आईटी सेल अपने काम में जुट गया है और भक्त हर फोटोशॉप को ब्रहवाक्य की तरह प्रचारित करने में लगे हैं।

प्रियंका गाँधी ने एक हज़ार बसें भेजी या पाँच? बस भेजने के नाम पर टेंपो या मेटाडोर तो नहीं भेज दिया? इन सब बातों का फैसला तब भी हो सकता है, जब मजदूर अपने घरों को पहुँच जाये।

योगी आदित्यनाथ अगर चाहें तो बसों के आवागमन में आनेवाली रूकावटों को दूर करके एक बड़ी लकीर खींच सकते हैं लेकिन उसके बदले उन्होंने वही रास्ता चुना है जो मौजूदा बीजेपी की राजनीतिक शैली रही है।

जानबझूकर देरी करना उच्च कोटि की नीचता है। ये वही देश है, जहाँ के आरबीआई से लेकर बीसों संस्थानों के उच्च पदों पर ऐसे लोग बैठे हैं, जिनके पास उसकी विशेषज्ञता दूर-दूर तक नहीं है।

स्वयं मोदीजी राडार विशेषज्ञ बनकर एयरफोर्स को इस बात निर्देश दे सकते हैं कि बादलों भरे मौसम में विमान किस तरह उड़ायें लेकिन विरोधी दल वाला अगर मजदूरों के लिए बसें चलवाना चाहे तो उसे अर्जी लेकर दरवाज़े पर अनंत काल तक खड़े रहना होगा।

(राकेश कायस्थ वरिष्ठ पत्रकार और व्यंगकार हैं। ये लेख उनके फ़ेसबुक पोस्ट पर प्रकाशित है और वहीं से साभार दिया गया है।)

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