लॉकडाउन के दौरान रास्ते में क़रीब 600 लोगों की मौत हुई, ज़िम्मेदार कौन है मीलॉर्ड!

workers rides on truck in up

By नयन ज्योति

शनिवार 16 मई प्रवासी मज़दूरों के लिए एक भयावह दिन साबित रहा। इस दिन यूपी और मध्य प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं में 33 मज़दूरों की मौत हो गई।

एनडीटीवी के अनुसार, ट्रक में सवार घायलों को औरैया सिविल हॉस्पीटल में दाखिल कराया गया।

घायलों में से एक मज़दूर ने बताया कि पुलिस ने ही उन्हें ट्रक पर बैठा कर रवाना किया था।

औरंगाबाद की रेल दुर्घटना के बाद यूपी के औरैया में 24 प्रवासी मज़दूर घर लौटने के संघर्ष में मारे गए, 37 मज़दूर गंभीर रूप से घायल। 16 मई सुबह 3 बजे एक खड़े ट्रक से डीएसीएम के टकराने से ये घटना हुई, जिनमें मज़दूर राजस्थान से बिहार और बंगाल घर लौटने की कोशिश कर रहे थे।

जिस ट्राला में मज़दूर बैठे थे उसमें चूने की बोरियां लदी थीं और टक्कर के बाद ये बोरियां मज़दूरों पर गिर पड़ीं।

एक अन्य सड़क दुर्घटना में मध्य प्रदेश में छह और यमुना एक्सप्रेसवे पर 3 लोगों की मौत हो गई।

लॉकडाउन के बाद कोरोना के अलावा मरने वालों संख्या आज लगभग 600 हो गयी है।

भुखमरी से 73, पैदल चलते थकान से 33, घर वापसी करते समय दुर्घटनाओं से 162, पुलिस की मार से 12, चिकित्सा न मिलने पर 53, आत्महत्या से 104, शराब के जुड़े 46, लॉकडाउन से जुड़े क्राइम के कारण 15, और 52 कई अन्य कारणों से।

इनमें से अधिकांश लोग मज़दूर वर्ग से आते हैं।

हालांकि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस तरह की मौतों की कुल संख्या 376 है। जबकि कोरोना से 15 मई तक 2,752 लोगों की जान जा चुकी है।

इस संक्रमण के शुरुआती दौर में आशंका थी कि अमीर भी मरेंगे, कि वायरस कोई धर्म, जाति, लिंग, वर्ग नहीं देखती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

क्योंकि अब 2 महीनों बाद सत्ता में बैठे लोगों ने सुनिश्चित कर दिया है और मज़दूर वर्ग के ऊपर इस संकट को पूरी तरह थोपने का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब उन्हें कोई चिंता नहीं।

यही कारण है कि लॉकडाउन में शहीद होने वाले मज़दूरों को कोई मुआवज़ा, कोई राहत की घोषणा कोई भी सरकार नहीं कर रही है।

कोरोना ने इस व्यवस्था के मूलभूत चरित्र को सामने लाकर रख दिया है।

इसमें मज़दूर वर्ग के लिए झूठे विकास और प्रगति के सपनों के आड़ में वेतन गुलामी, मौत और अंधकार से भरा हुआ भविष्य के अलावा कुछ भी नहीं।

यहाँ पूंजी का राज ही सत्य है और सरकार प्रशाशन पुलिस अदालत उसके रखवाले और समाज बीमार है।

यहाँ मज़दूर नागरिक ही नहीं है।

एनआरसी और कैब के ख़िलाफ़ आंदोलन में छोटे बच्चों को लेकर चिंतित न्यायपालिकाएं और ख़ासकर सुप्रीम कोर्ट जिस तरह चुप्पी साधे हैं, सरकार से मिलीभगत की बू अब साफ़ आने लगी है।

मज़दूर वर्ग के लिए, मज़दूर वर्ग द्वारा, पूर्ण सामाजिक आर्थिक राजनीतिक बदलाव से और पूंजीवाद के परे एक व्यवस्था में ही सबकी मुक्ति संभव है।

ये  दुर्घटना नहीं, हत्या है। कातिलों में सब सत्ता में बैठे लोग शामिल हैं जिन्होंने ऐसे मज़दूरों की मौत की परिस्थिति बनाई और लगातार बनाते ही जा रहे हैं।

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