बच्चों को नाश्ते में चाय-बिस्किट की जगह रोटी-चावल देने से आया कुपोषण में सुधार: सर्वे

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कर्नाटक के बेलगावी जिले के कुछ गांवों में मज़दूर और भूमिहीन लोगों के बच्चों में पोषण की मात्रा को जांचने के लिए एक सर्वे का आयोजन किया गया था। इस सर्वे से ये मालूम चला कि गांव के ज्यादातर बच्चे कुपोषित है।

पहले सर्वेक्षण में, खानापुर तालुक में 410 बच्चों के नमूने के आकार में से 106 गंभीर रूप से कुपोषित पाए गए। लेकिन नौ महीने के हस्तक्षेप के अंत तक इसे घटाकर 57 कर दिया गया। कित्तूर तालुक में, 360 में से 62 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित पाए गए। इसी अवधि के अंत तक यह संख्या घटकर 30 रह गई।

जागृति महिला ओक्कूटा के सदस्यों ने बेलगावी जिले के कुछ गांवों में खाने की आदतों पर घर-घर सर्वेक्षण में पाया है कि मज़दूर वर्ग की महिलाएं अपने बच्चों को नाश्ते के लिए बिस्किट और चाय दे रही थीं, जबकि पहले यही महिलाये अपने बच्चों को रोटी और चावल खिला कर काम पर जाती थी।

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जागृति महिला के सदस्यों ने माताओं को बिस्किट खिलाने से मना किया है। उसकी जगह घर की बनी रोटी या चावल देने का आग्रह किया है। साथ ही उनको इसका कारण भी बताया गया है।

The Hindu में आई खबर के मुताबिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे जागृति महिला ओक्कूटा समूह ने सर्वे के लिए कर्नाटक के बेलगावी जिले के 30 गांवों में बच्चों में कुपोषण से लड़ने के लिए अभियान चलाया है।

यह संगठन गांवों में कामकाजी माताओं के लिए बैठकों का आयोजन करेगा, जिसके माध्यम से उनको यहा बताया जायेगा की उनके बच्चों के लिए क्या खाना ज्यादा पौष्टिक है।

साथ ही पौष्टिक भोजन तैयार करने में माताओं को प्रशिक्षण देकर उनके बीच कुपोषण के बारे में जागरूकता पैदा की जायेगी।

सर्वे में 800 बच्चे थे शामिल

पहले चरण में कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर कुपोषित बच्चों का सर्वे किया। ओक्कूटा के लगभग 30 कार्यकर्ता कित्तूर और खानापुर तालुक के 30 गांवों में पिछले नौ महीने से काम कर रहे हैं।

सर्वेक्षण में लगभग 800 बच्चों को शामिल किया गया जो मज़दूर, भूमिहीन और अन्य उत्पीड़ित समुदायों से थे। कुपोषित बच्चों को WHO ग्रोथ चार्ट का इस्तमाल करके अलग किया गया था।

जिसमे मुख्य रूप से बच्चों की उम्र, ऊंचाई और वजन के आधार पर मापदंडों को निर्धारित किया गया। साथ ही गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की भी पहचान की गई और उनकी माताओं को विशेष ट्रेनिंग दी गयी।

पैक्ड फ़ूड में ज्यादा पोषण की गलतफहमी

संगठन द्वारा चलाये रहे पोषण प्रशिक्षण में बच्चों के स्कूल शिक्षको और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी जोड़ा गया।

संगठन के सह-संस्थापक शारदा गोपाल ने कहा कि  गरीब और मज़दूर वर्ग के लोगों की ये सोच है कि हमारे घर के रोटी-चावल के मुकाबले दुकानों से खरीदा गया पैक्ड फ़ूड ज्यादा पौष्टिक होता है।

ज्यादातर लोगों का मानना ​​था कि ज्यादा पोषण महंगे पैक्ड फ़ूड में होता है।

एक अन्य कार्यकर्ता राजेश्वरी जोशी कहती हैं, “हमें उन्हें बताना था कि घर का बना खाना खाना चाहिए। जिसमें अनाज, साग और दूध, सभी के बीच संतुलन होना चाहिए।

हर वर्ग का बच्चा कुपोषित

कार्यकर्ताओं ने कुछ माताओं को मूंगफली और गुड़ के लड्डू बनाने का प्रशिक्षण भी दिया। बदले में इन महिलाओं ने दूसरों को प्रशिक्षित किया, जिसके परिणाम स्वरूप जंक फूड के प्रति अधिक जागरूकता आई।

इन परियोजना ने दो दिलचस्प बाते निकाल के आयी हैं। राज्य सरकार प्रति सप्ताह दो अंडे की आपूर्ति करती है।

जिन बच्चों को प्रति सप्ताह 2 से 3 अंडे मिले थे, उनमें कुपोषण नहीं था। टीम ने पाया कि कुपोषण का स्तर लगभग सभी वर्ग और श्रेणी के बच्चों में पाया गया।

समूह के सह-संस्थापक गोपाल दाबड़े ने कहा, “हमारा प्रयास स्थानीय उपचार का पता लगाना था जो एक गरीब ग्रामीण महिला अपने लिए आसानी से उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके पा सके।”

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